बेटी पढ़ाओ ,जीवन बढ़ाओ।
बेटी पढ़ाओ ,जीवन बढ़ाओ।
जो अपनी क़दर
न जान सके,
खुद ही को
न पहचान सके?
उसकी करनी
फिर बात क्या
उस हस्ती की
औकात क्या ?
जो तुंग शिखर सी
खड़ी रहे ,
विश्वास पर अपने
अड़ी रहे ,
हिमखंडों को दरिया करके
जीवन रण में
जो डटी रहे,
जो चमक उठे तलवार बन
उस रणचंडी को शत शत नमन!
जो हवनकुंड की
ज्योति हो,
जीवन उसका एक
मोती हो
जो बुझे नहीं
अखंड लौ सी
बढ़ चले निर्भीक सिंहनी सी
जो दमके दीपशिखा बन
उस रज़िया को शत शत नमन ।
खुद ही बाती
खुद ही तेल
जीवन जिसका नहीं
कोई खेल।
खुद ही नाव
खुद ही पतवार
जो आग का दरिया
कर ले पार ।
बरसे जो स्नेह फुहार बन
मानवता पाए नवजीवन।
उस मरियम को शत शत नमन।
आंखों से लक्ष्य
न ओझल हो,
गिर कर उठने का
साहस हो।
करुणा से जिसका नाता हो
जिसे फर्ज़ निभाना आता हो,
और लहू न हो पानी के सम
महके स्वेद बनकर चंदन,
उस शक्ति को शत शत नमन!