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ABHISHEK KUMAR SINGH

Others

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ABHISHEK KUMAR SINGH

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'बेमानी रिश्ते'

'बेमानी रिश्ते'

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रिश्तों की कोई परिभाषा है,

या रिश्ते यूं ही बन जाते हैं ?

जबरदस्ती कोई रिश्ते बनाता है

या रिश्ते खुद-ब- खुद बन जाते हैं ?

अजीब हैं ये रिश्ते भी जो अजनबी भी होते हैं।


दिखावों के जंगल आदमी एक सियार है,

रिश्तों की आड़ में नोचने तो तैयार है,

उधार की जिंदगी में रिश्ते भी महफूज़ नहीं हैं,

वक़्त की चादर में लिपटे- से ये उबलते हैं,

एक ही झटके में ये पतंग की डोर- से टूट जाते हैं।


रिश्तों को बचाना भी एक हुनर ही है

दिमाग भी कसरत करता सोचता है

कहीं रिश्ते बेमानी ना हो जाएं जुगत लगाता है,

एक से एक दाँव-पेंच जड़ता है कि

मतलब गर सध गया तो किनारा करो, 

नहीं तो सधने तक इसे ओढ़ते रहो,

रिश्ते तो दरअसल रिश्तों से ही पता चलता है।

पर जब टूटते हैं तो इसमें आवाज़ नहीं होती

फिर भी हर किसी को इसकी दरकार होती है।


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