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बड़े शहरों के गरीब लोग

बड़े शहरों के गरीब लोग

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बड़े शहरों के गरीब लोग !

हाँ मैंने बड़ी करीब से देखा है

बड़े शहरों के इन लोगों को

जो दिखते तो अमीर हैं

पर असलियत में गरीब हैं

कुछ लोग तो समय के मारे हैं

कुछ परिवारहीन बेचारे हैं

कुछ तो अनायास ही दुःख दर्द पाले हैं

पैसे होते हुए भी बदनसीब हैं


ये शायद कागज के

चंद टुकड़ों को जिंदगी

समझ बैठे हैंअसली जिंदगी कहाँ हैं,

शायद ये होश भी खो बैठे हैं

सुबह उठना ऑफिस जाना, बॉस की बात सुनना

एसी में बैठ के पुरानी ठंडी हवा को झेलना

शाम को काम के प्रेशर में मायूस होके लौटना

फिर छोटी छोटी बातों पर बीवी को डांटना

बच्चों को प्यार करने की जगह फटकारना

दिन रात यूँ ही बीतते चले जाते हैं

जिंदगी क्या है शायद समझ नहीं पाते हैं


अगर नजर गाँव की तरफ दौड़ते हैं

तो अक्सर चेहरा खिला हुआ ही पाते हैं

वह पर भले ही कोई अपना सगा न हो

लेकिन सभी दिलों को छू जाते हैं

कोई भी मिलता है तो हालचाल पूछ लेता है

बिना पूछे भी गाँव -देश सब जगह की हाल भी बता देता है

लोग सुबह उठाते हैं और खेतों पर काम भी करके आते हैं

खाना खाकर आराम भी करते हैं और

दूसरों से मिलने भी निकल जाते हैं।

सुबह शाम पेड़ों के नीचे की ताजी हवा लेना

नदियों के किनारे सुन्दर दृश्यों को देखना

जैसे जिंदगी की दौड़ यहां आके रुक सी जाती हो

मानों स्वर्ग की खुशहाली आके छा जाती हो


न किसी के हुक्म का तानाबाना होता है

यहॉँ घर में एकसाथ बैठकर खाना होता है

इनके माथे पर चिंता- दुःख की रेखाएं कम होती हैं

शायद जिंदगी इनकी समझ में आ चुकी होती है

इनके पास कागज के टुकड़े तो बहुत कम हैं

लेकिन दुनिया में शायद ये सबसे अमीर हैं

क्योंकि ख़ुशी इनके चेहरों पर अक्सर हुआ करती है

जरूरत पड़ने पर दूसरों की मदद भी कर देते हैं

बड़े शहरों की इस भागती भीड़ में ये कम ही दिखता है

हाँ ये शहर बड़े हो सकते हैं पर

यहाँ पैसा तो है पर सुकून नहीं

परिवार तो है पर समय नहीं

जिंदगी तो है पर ख़ुशी नहीं हाँ ये बड़े शहरों के गरीब लोग हैं ।








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