औरत (स्त्री)
औरत (स्त्री)




यूँ तो करती है सभी से प्यार औरत
फिर भी नज़रों में गिरी है यार औरत
हम निकल कर औरतों के पेट से ही
बोलते हैं, है बहुत बेकार औरत
मुस्कुराए तो हसीं इक फूल है ये
हो जो गुस्सा तो बने तलवार औरत
उसके बिन सब सूना सूना लग रहा है
यानी घर का होती है श्रृंगार औरत
चुपके चुपके आँसुओं को पी गयी है
सहती आयी है तुम्हारी मार औरत
पहले तू अपना गिरेबाँ देख ज़ालिम
बाद मैं कहना उसे बदकार औरत
मैं ये समझूँगा कि जन्नत मिल गयी है
आए जीवन में जो अच्छी यार औरत