औरत ही तो है
औरत ही तो है
कभी गौर किया है औरत जात पर
औरत कांच की तरह पारदर्शी है,
इसमें आप देख सकते हैं अपना प्रतिबिम्ब, जी हां, अपनी ही छवि
देख सकते हैं, औरत के भीतर।
जितना अधिक प्यार से
इस कांच की सतह को पोछेंगे,
उतना ही अधिक चमकदार
आपका प्रतिबिम्ब दिखेगा उसमें।
कभी महसूस तो करो कि
औरत के अंदर कौन छिपा है?
क्या आप नहीं छुपे होते हैं
विभिन्न रूपों में?
जन्म से लेकर मृत्यु तक
आपकी छवि ही तो होती है,
किसी न किसी रूप में
उसकी लज्जा के अंदर है।
मर्यादा आपकी छिपी है औरत में
अगर आप जिद से इसे तोड़ते हैं,
कांच ही तो है चरमरा जाएगी
आपकी सुंदर छवि धूमिल हो जाएगी।
कांच की सतह पर जम जाएगी
आपके कुविचारों की मिट्टी,
आपकी छवि आपका मन
कुम्हला नहीं जाएगा।
सोचो तो सही, समझो तो सही
औरत कांच है, फूल सुंदर सी,
और ममता की मूरत भी
इसके बीज से ही तो अस्तित्व है।