अपने गाँव की होली
अपने गाँव की होली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली
रंगो की तरह दोस्तों से भरी थी अपनी झोली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की गोली।
चांदनी रात में सब मिलकर तूफानी करते थे
किसी की नहीं सुनते थे मनमानी करते थे
दुनियां के दुःख सुख से बेपरवाह होते थे
अपने ही गीत होते अपनी ही होती बोली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली।
आज इसके कल उसके उपले तोड़े जाते
लाख बचाता कोई पानी के मटके फोड़े जाते
बाहर रखा सामान और के घर पंहुचा दिया जाता
शाम ढलते ही जब दोस्तों की बनती थी टोली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली।
गुलाल लगाने एक दूसरे के घर जाते थे
जहां चलता गाना बजाना नाचने लग जाते थे
जात पात का भेद नहीं कहीं भी पकोड़े खा आते थे
तब रंग और पिचकारी थी नही थी बंदूक की गोली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली।
छुपकर एक दूसरे को रंगों से जब भिगोते थे
रंगों से रंगे चेहरे तब देखने लायक होते थे
घर आते तो घरवाले बहुत हँसा करते थे
जब चेहरे पर रंगों से बनी होती थी रंगोली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली।
नीम के पेड़ के नीचे जब महफ़िल सजती थी
मेरे गाँव में खुशियाँ ही खुशियाँ बसती थी
मेरे गाँव की खुशियों को किसी की नज़र ना लगे
"राज" तेरे गाँव पिंडोरा में यूँही मनती रहे हर होली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली।
