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Shruti Gupta

Others

3.5  

Shruti Gupta

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अपने बचपन को एक खत

अपने बचपन को एक खत

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तुम तो हो एक पागल चिड़िया

जिसे ज़िन्दगी परियों की कहानी लगती है,

तुम्हारी दुनिया गुड्डे गुड़ियों में सिमटी है

सबसे अच्छी साथी दादी- नानी लगती है


सोचती हो कि कागज़ का जहाज़

उड़ा लेने से

आगे जाकर पायलट बन जाओगी,

क्लास टेस्ट में एक नंबर कम आये तो

ज़िन्दगी के टेस्ट में फेल हो जाओगी


कठोर और मजबूत रहने की ठानोगी

न जाने कितने दोस्त बनाओगी ,

पर ज़रूरत होने पर कोई न होगा

रात को अकेले रोते खुद को पाओगी


वह दूध का गिलास और नाश्ता बुरा

लगेगा

पर माँ सुबह ज़बरदस्ती खिलाएगी,

कद्र होगी जब कोई ना टोकेगा

और रोज़ घर से खाली पेट जाओगी


अगर मैं तुम्हें मिल पाती तो बताती

यह दुनिया वह नहीं जो तुम्हें दिख पाती है,

यहाँ आये दिन दंगे-फसाद होते हैं

निर्भया की आबरू सड़कों पर बिक जाती है


समझाती कि हर कोई इंसान यार नहीं

एक पल की वो चाहत प्यार नहीं ,

पापा की वह ना असल में चिंता है

माँ की डाँट से बेहतर कोई दुलार नहीं


काश मैं तुमसे मिल पाती

काश लड़कपन की परिभाषा समझा पाती,

बचपन तो तुम्हारा एक तितली -सा है

शायद बाकी की ही ज़िन्दगी सँवर जाती


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