अल्फ़ाज़
अल्फ़ाज़
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ख्यालों में अक्सर तुम्हारी तारीफों के चश्मे बहते हैं,
पर आज महफ़िल में सामने तुम हो, और..
मेरे सब अल्फ़ाज़ खामोश बैठे हैं...
ज़माना पीठ पीछे लाख कमियां निकलता होगा,
पर हम उनमें से हैं जो तुम्हारी हर खामी को भी खूबी कहते हैं,
पर आज महफ़िल में सामने तुम हो, और..
मेरे सब अल्फ़ाज़ खामोश बैठे हैं...
सुना है लफ्ज़ जज्बात की कीमत गिरा देते हैं,
तभी हम इनका सहारा कम लेते हैं,
शायद नज़रों से समझ लोगे हर रोज इस सोच में रहते हैं,
आज महफ़िल में सामने तुम हो, और..
मेरे सब अल्फ़ाज़ खामोश बैठे हैं...
