ऐ हवा
ऐ हवा
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हवा, आज तू चल इस कदर,
कि झूम उठे सारा शहर ,
हवा, आज तू चल इस दिशा,
कि हर तरफ छोड़ अपनी निशाँ।
हवा, तू चल और चलती चल,
ना हो विकल और बहती चल,
हँसती , नाचती , इठलाती,
बलखाती, पुराने दिनों को
फिर से दोहराती।
वो पुराने दिन, जो हमसे छूट गए,
कोई आंधी-सी जिन्हें हमसे लुट गए।
हवा तू चल और एहसास दे
अपनी मौजुदगी का,
अब मैं भी चलूँ और बदलूँ
तस्वीर अपनी ज़िदगी का ।।
