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ना मंज़िल थी ना कोई मुकाम था गुमनामी की रहो पर बेपरवाह जा रहे थे हम ना मंज़िल थी ना कोई मुकाम था गुमनामी की रहो पर बेपरवाह जा रहे थे हम
तुम्हारे अत्याचार से मानवता शर्मशार है तुम्हारे अत्याचार से मानवता शर्मशार है
इस खूबसूरत एहसास को क्या नाम दूँ इस खूबसूरत एहसास को क्या नाम दूँ