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अमृत छलका वेदनाओं के मंथन पर तुमने ऐसे देखा कि देख भी न पाए। अमृत छलका वेदनाओं के मंथन पर तुमने ऐसे देखा कि देख भी न पाए।
जो प्रतिदिन सींचती स्वयं को गंगाजल से जो प्रतिदिन सींचती स्वयं को गंगाजल से
आज हमारा कल इतिहास होने को चल गया है जो नया है वो लोगों में बस गया है। आज हमारा कल इतिहास होने को चल गया है जो नया है वो लोगों में बस गया है।