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झुमके पहनना बाज़ार में मुनासिब ना था मेरे दिल के अंदर कोई ग़ालिब सा था! झुमके पहनना बाज़ार में मुनासिब ना था मेरे दिल के अंदर कोई ग़ालिब सा था!
पर मैं बेशरम, उनकी भूली- बिसरी ग़लती हूँ और नाक कटाती हूँ जान- बूझकर। पर मैं बेशरम, उनकी भूली- बिसरी ग़लती हूँ और नाक कटाती हूँ जान- बूझकर।
कुछ ऐसे लोग जिन्हें वो जानती भी नहीं है वो भी उसे कभी बेशर्म तो कभी बेहया कह देते कुछ ऐसे लोग जिन्हें वो जानती भी नहीं है वो भी उसे कभी बेशर्म तो कभी ...