सुझाव एवम् सहायता करें तो दिल से करें......! जब किसी को सुझाव- सहायता, माँगने पर या बिन माँगे दी जाए उसको स्वीकार करना या ना करना सुझाव-सहायता लेने वाले का हक़ है.....! अपने सुझाव एवम् सहायता किसी के ऊपर बलपूर्वक ना थोपें....! उसकी अस्वीकृति पर दुःखी ना हों या ना ही कोई प्रतिक्रिया दें.....! जो भी करें, अगले को ख़ुशी, सुख और संतोष देने के लिए करें........!
प्रेम, रिश्ते, विश्वास और समर्पण बनाना बहुत आसान है, इन सबको एक ऊँचाई पर ले जाना भी शायद आसान है, बस मुश्किल है उन्हें उन ऊँचाइयों पर टिकाए रखना......!
हर छोटी बात पर प्रतिक्रिया ना दें....! जल्दबाज़ी वाली प्रतिक्रिया यानी बिना सोचे समझे दी प्रतिक्रिया क्रोध तथा अहंकार की ही निशानियाँ हैं.....! जब भी हम बिना सोचे समझे प्रतिक्रिया देते हैं, मतलब है हम अगले की बेइज़्ज़ती कर रहे हैं तथा खुद की ना-समझी प्रदर्शित कर रहे हैं.....! किसी को प्रतिक्रिया देने से पहले अपने गिरेबान में झांकें और अपने आप को परखें, हम में ऐसा क्या है जो अगले में नहीं....! अहंकार ना करें वो इंसान को अंधा कर देता है....! बात बात पर प्रतिक्रिया ना दें, बेवजह की प्रतिक्रियाएँ देने वाले खुद को ही हर पल अशान्त कर देते हैं.....!
मर्यादा, मानवता का वो सुन्दर गहना है, जो मनुष्य के संस्कारों एवं चरित्र की प्रतीति देता है......! दोस्ती हो, प्यार हो या कोई भी रिश्ता, अगर मर्यादा में रहकर निभाया जाए तो रिश्तों में मिठास और सभ्यता बनी रहती है....! अमर्यादित व्यवहार किसी रिश्ते या प्रेम की गहराई नहीं मगर असभ्यता का प्रतीक है.....! प्रेम तथा रिश्तों की गहराई तो सिर्फ़ सभ्य तथा मीठे व्यवहार में ही पाई जाती है.....!
जिस सेवा से नम्रता आए, देने का भाव आए तथा शीतलता आए, वह ही सच्ची सेवा है और वही क़बूल की जाती है.....! अहंकार से की हुई सेवा सब परमार्थी भाव जलाकर राख कर देती है......! सबसे बड़ा घाटे का सौदा बन कर रह जाती है वो सेवा....! सेवा तो हम खुद के स्वार्थ के लिए करते हैं, खुद के लिए किए किसी काम का अहंकार कैसा.....? याद रहे- सेवा तो बस निष्काम करें...!
अपनी योग्यता को अपने कार्य और अपनी करनी से सिद्ध करें....! किसी को छोटा दिखाकर या किसी के बारे में बातें करके उसे नीचा साबित करने से अपनी योग्यता नहीं बल्कि अपनी छोटी सोच सिद्ध करने समान है। अपनी योग्यता का दिखावा अगर करना भी है तो सिर्फ़ अपने कार्य क्षेत्र में रह कर करें.....! औरों के कार्य क्षेत्र में दखलअंदाजी ना करें...! कई बार वो हमारी योग्यता नहीं, ज़िद होती है। अपनी ज़िद या हठ को योग्यता से ना जोड़ें...! अपने ओहदे और बड़प्पन का दुरुपयोग ना करें.....! किसी को अपने से कमज़ोर या छोटा ना समझें....! कोई अगर हमारी हरकतों को चुपचाप बर्दाश्त करता है तो यह समझें कि वो हमारी इज़्ज़त करता है....! बड़पन तो किसी को ऊँचा दिखाकर अपनी योग्यता के संस्कारों से जोड़ने में है....!
हे मेरे मालिक! मैं नादान हूँ, दुनिया की कालिख कमाते कमाते, मैं भूल जाता हूँ कि मैं तेरी संतान हूँ.....! क्या सही क्या ग़लत, सब कुछ जानते हुए भी अनजान बन जाता हूँ और विपरीत दिशा में चलना शुरू कर देता हूँ......! हे मेरे रबा, मुझे सच की राह पर चलने की शक्ति दे, मुझे अपना प्यार और भक्ति दे, हर पल तेरी याद दे, और तेरा ही ध्यान दे...! मुझे बुरे कर्मों और गुनाहों से बचाना, मुझे सद्बुद्धि देना कि मैं हर पल याद रख पाऊँ कि मैं तेरी संतान हूँ और मैं तेरी बताई राह चल पाऊँ.....!
हर छोटी बात पर प्रतिक्रिया ना दें....! जल्दबाज़ी वाली प्रतिक्रिया यानी बिना सोचे समझे दी प्रतिक्रिया क्रोध तथा अहंकार की ही निशानियाँ हैं.....! जब भी हम बिना सोचे समझे प्रतिक्रिया देते हैं, मतलब है हम अगले की बेइज़्ज़ती कर रहे हैं तथा खुद की ना-समझी प्रदर्शित कर रहे हैं.....! किसी को प्रतिक्रिया देने से पहले अपने गिरेबान में झांकें और अपने आप को परखें, हम में ऐसा क्या है जो अगले में नहीं....! अहंकार ना करें वो इंसान को अंधा कर देता है....! बात बात पर प्रतिक्रिया ना दें, बेवजह की प्रतिक्रियाएँ देने वाले खुद को ही हर पल अशान्त कर देते हैं.....!
ग़लतियों से कभी ना डरें, क्योंकि जो काम करेगा तो ग़लतियाँ भी होंगी और फिर ग़लतियाँ इंसान से ही होती हैं.....! ग़लतियों से अगर सीखा जाए और सही रास्ता चुना जाए, फिर हर मुश्किल काम सरल होता चला जाता है....! खुद पर विश्वास रखें और याद रखें कि हमारे ऊपर हाथ किसका है.....! हर काम की शुरुआत मालिक का ध्यान करके करें, मालिक सारे कार्ज आपे संवारेगा, सद्बुद्धि भी देगा और हिम्मत भी.....! पीछे मुड़ कर ना देखें बस आगे बढ़ते चले जाएँ.....!