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जिस सेवा से नम्रता आए, देने का भाव आए तथा शीतलता आए, वह ही सच्ची सेवा है और वही क़बूल की जाती है.....!
अहंकार से की हुई सेवा सब परमार्थी भाव जलाकर राख कर देती है......!
सबसे बड़ा घाटे का सौदा बन कर रह जाती है वो सेवा....!
सेवा तो हम खुद के स्वार्थ के लिए करते हैं, खुद के लिए किए किसी काम का अहंकार कैसा.....?
याद रहे- सेवा तो बस निष्काम करें...!
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