Kavita lekhan
वो काग़ज़ की कश्ती नदी में बहाना वो अमवा की डाली पे झूला झुलाना वतन.... वो काग़ज़ की कश्ती नदी में बहाना वो अमवा की डाली पे झूला झुलाना वतन....
अपनी सीरत को सँवारो बेटियों कुछ इस तरह टिक न पाए वहशियत भी सादगी के सामने अपनी सीरत को सँवारो बेटियों कुछ इस तरह टिक न पाए वहशियत भी सादगी के सामने