साहित्य की सेवा ही मेरी लेखनी का उद्देश्य है।
मातृभूमि की रक्षा की खातिर, दामन अपनी मां का जो छोड़ा तुमने। मातृभूमि की रक्षा की खातिर, दामन अपनी मां का जो छोड़ा तुमने।
प्रसन्नचित्त,परमानंद में लिप्त, बावरा-सा मन लिए फूल हूं मैं। प्रसन्नचित्त,परमानंद में लिप्त, बावरा-सा मन लिए फूल हूं मैं।
मैं-मैं की राग से, मौन पड़े अनुराग काया मिले राख में, मैं की लगे जो आग। मैं-मैं की राग से, मौन पड़े अनुराग काया मिले राख में, मैं की लगे जो आग...