लघुकथा लेखक
ये कैसा शहर है कि सहर ही नहीं होता अपने सब है पर कोई अपना नहीं होता। ये कैसा शहर है कि सहर ही नहीं होता अपने सब है पर कोई अपना नहीं होता।
गुफ़्तगू तो होती होगी पर शायद धीरे धीरे गुफ़्तगू तो होती होगी पर शायद धीरे धीरे
माना इश्क पैसे की चीज नहीं है माना इश्क पैसे की चीज नहीं है