वो कौन था ?
वो कौन था ?
ये कोई कहानी नहीं , सत्य घटना है I मेरी ज़िन्दगी का एक अविस्मरणीय प्रसंग है , जो मैं अपनी पूरी ज़िन्दगी नहीं भूल सकती।
ये किस्सा 1994 का है। मेरी नयी नयी शादी हुई थी और हम मद्रास में रहते थे।
रात के 12 बजे थे मैं और मेरे पति बैठे टीवी पर मूवी देख रहे थे। अचानक मेरे पति जो इंडियन एयरलाइन्स में पायलट थे बोले "प्रीति भूख लगी है। "
"शाम को तो आपने कहा था कि भूख नहीं है इसलिए कुछ बनाया नहीं अब आप बोलो क्या बना दूँ ?" मैंने पूछा
दरअसल मेरे पति कैप्टन सुशील कुमार दोपहर 4 बजे ही कोलोंबो की फ्लाइट ले कर के आये थे और हम दोनों ने काफी लेट लंच किया था.. इसलिए शाम को खाने का इरादा नहीं था। पर अब रात के 12 बजे तक हम दोनों को ही भूख लग आई थी। मैंने फ़ौरन पुलाव की तैयारी की और कुकर गैस पर चढ़ा कर ड्राइंग रूम में आ गयी। हम दोनों हंस रहे थे की लोग क्या कहेंगे इतनी रात इनके यहाँ कुकर सीटी बजा रहा है।
साढ़े बारह बजे के करीब दरवाज़े पर घंटी बजी । उस वक़्त आज कल की तरह मोबाइल नहीं होते थे और हमारे घर लैंड लाइन भी नहीं था। इसलिए यदि किसी फ्लाइट के लिए सूचना देनी होती थी तो एयर पोर्ट से कोई आदमी आता था और पेपर देके जाता था।
मेरे ड्राइंग रूम में दीवान नहीं था इसलिए गद्दा ज़मीन पर बिछा रखा था जिसकी दूरी दरवाज़े से 10 कदम की थी जिस पर मेरे पति लेटे थे। मैं बस किचन से आई ही थी इसलिए दरवाज़े के पास ही खड़ी थी। घंटी बजने पर मैंने मैजिक आईं से झाँका तो बाहर करीब २४-२५ साल का एक लड़का ड्राइवर की यूनिफार्म में खड़ा था करीब ३० सेकंड तक मैंने उसे देखा फिर अपने पति को कहा " सुनो शायद मूमेंट कंट्रोल से कोई फ्लाइट की सूचना लेके आया है , आप दरवाज़ा खोलो। "
मेरे पति उठे और दरवाज़ा खोलने से पहले उन्होंने भी मैजिक आई से बाहर देखा तो उन्हें भी यूनिफार्म में लड़का नज़र आया , और शायद सेकंड भी नहीं लगा होगा उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया।
पर वहां कोई नहीं था !!! कोई भी नहीं !!!! हम दोनों हैरान थे की तीसरी मंज़िल से अचानक कोई कैसे इतनी जल्दी गायब हो सकता है I ना भागने की आवाज़, न किसी के चलने , की बस सन्नाटा था। ये फ़ौरन नीचे भागे पर कोई नही था। ऊपर आके ये छत पर गए जहाँ से भागने का कोई चांस ही नहीं था। मैं बहुत डर गयी थी I बार बार इन्हें अंदर चलने को कह रही थी। वो रात हमारी हैरानी में बीती।
सुबह उठे तो देखा ड्राइंग रूम का गद्दा खिड़की के पास रखा था। किचन में डब्बे खुले पड़े थे। मैं कांप रही थी। इन्होने मुझे शांत कराया " हो सकता है तुमने ही डब्बे खुले छोड़ गयी हो रात को और शायद ध्यान नहीं रहा हो। " ये बोले "और , ये गद्दा!!!!!! इसका क्या ?" मैंने पूछा I इन्होने मुझसे झूठ बोल दिया- "वो रात को मुझसे पानी फ़ैल गया था इसलिए मैंने गद्दा सरकाया था। " पर शायद ये भी घबरा गए थे।
10 बजे सूरी अम्मा आई काम करने। मद्रास में उस वक़्त सिर्फ एक अम्मा ही थी हमारे जानकारों में जो , हिंदी और तमिल जानती थी और मेरे अकेलेपन की साथी थी। जब भी मेरे पति लम्बी फ्लाइट पर जाते थे और दो दो दिन नहीं आते थे तब अम्मा ही मेरे घर आके सो जाती थी। मैंने अम्मा को रात का किस्सा सुनाया I पता नही क्यों पर अम्मा के चेहरे पर कई रंग आके चले गए , पर उसने भी मुझे बहला दिया " अम्मा कुछ नहीं तुमको वहम हुआ होगा। " पर मैंने महसूस किया कि वो कुछ परेशान हो गयी।
इनको दो दिन के लिए बॉम्बे जाना था पर ये जाना नहीं चाहते थे। मुझे अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे ,पर मेरे और अम्मा के काफी कहने पर मान गए। तय हुआ की अम्मा अपना संब काम निपटा कर मेरे पास ही आ जाएगी। ये बॉम्बे चले गये। दिन तो शांत ही बीता शाम को अम्मा आ गयी क्यूंकि मैं पिछली रात सोयी नहीं थी इसलिए मुझे जल्दी नींद आ गयी। अम्मा भी बरामदे में पंखे के नीचे बिस्तर लगा के सो गयी।
रात अचानक " गौं गौं "की आवाज़ सुन कर मेरी नींद खुल गयी। भाग के बाहर गयी तो देखा अम्मा जमीन पर पड़ी छटपटा रही थी बहुत घबरा गयी थी मैं। "अम्मा !!!! अम्मा !!! क्या हुआ? क्या हुआ? !!!! " कह कर मैं अम्मा को उठाने लगी पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई अम्मा का गला दबा रहा हो बड़ी मुश्किल से अम्मा ठीक हुई।
" रात जब मैं सो रही थी तो दरवाज़े पर घंटी बजी मैंने थोड़ी नींद में ही दरवाज़ा खोल दिया बाहर कोई नहीं था मैं फिर दरवाज़ा बंद करके सो गयी। सोते में किसी ने मेरा गला दबाया। " अम्मा बता रही थी। वो रात भी मैंने और अम्मा ने बैडरूम में अंदर से कुण्डी लगा कर जागते हुए बितायी। पूरी रात बाहर से अजीब अजीब आवाज़ें आतीं रहीं। मैं पूरी रात हनुमान चालीसा पढ़ती रही। सुबह सारा घर अस्त व्यस्त था। मेरे बदन में काटो तो खून नहीं था।
दिन शांति से बीत गया । शाम को मुझे डर लगने लगा कहीं अम्मा नहीं आई तो ? हे भगवान !!!! तब मैं क्या करूंगी? पर उस शाम अम्मा आई तो उसके पास कुछ तावीज़ था। उसने एक खुद बाँधा और एक मुझे बाँध दिया। फिर हम दोनों ही रात का इंतज़ार करने लगे रात ठीक साढ़े बारह बजे फिर घंटी बजी। अम्मा ने मैजिक आई से झाँका फिर मुझे बुलाया I मैंने देखा वही लड़का था जो उस रात था। फिर अम्मा ने अंदर से आवाज़ लगाई और तमिल में कुछ बोला ( हिंदी रूपांतरण ) " जाओ यहाँ से , यहाँ अब कोई नहीं रहता सब दूसरे घर में रहते हैं। " फिर उसने कॉलोनी के ही किसी घर का नंबर बोला। उसके 2 मिनट बाद ही जैसे सब शांत हो गया। बाहर कोई नहीं था। अम्मा से मैंने बहुत पूछा कि "ऐसा क्यों कहा आपने ? वो लड़का कौन था ? आपने किस घर का नंबर बताया ?" पर अम्मा तो जैसे बिलकुल चुप थी I सुबह वो चली गयी , मेरी तावीज़ भी ले गयी। दिन शांति से बीता शाम को पति आ गए। उन्हें मैंने सब बताया। वो रात शांति से बीती कुछ नहीं हुआ पर मैं बहुत डरी हुई थी।
अगले दिन फिर मेरे पति को दस दिनों के लिए हैदराबाद जाना था और वो मुझे अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे , इसलिए सुबह की फ्लाइट से ही इन्होने मुझे दिल्ली भेज दिया और खुद हैदराबाद चले गए। घर पहुंच कर सबके बीच मैं उस हादसे को भूलने की कोशिश करने लगी। पंद्रह दिन बाद हम वापस आये। सब नार्मल था।
किसी से पता चला की जिस दिन हम लोग गए उस दिन कॉलोनी में किसी औरत का गला दबा के मार डाला किसी ने। पर किसने ये अभी तक पता नहीं चला है।
एक दिन शाम को चाय पीने के बाद इन्होने कहा चलो थोड़ा टहल कर आते हैं। हम दोनों कॉलोनी में टहल रहे थे कि एक आंटी मिलीं जिनको मेरे पति जानते थे I वो पहले उसी घर में रहती थीं जहाँ अब हम रहते थे। हम दोनों को देख उन्होंने अभिवादन किया I थोड़ी देर बातचीत के बाद अपने घर चलने का आग्रह करने लगीं , तो हमने उनके घर जाने का विचार किया।
हम उनके घर में बैठे थे I उन्होंने पानी ला के दिया और चाय बनाने चली गयीं। अचानक मेरी नज़र एक फोटो पर गयी I वो उसी लड़के की फोटो थी जो रोज़ रात को आकर घंटी बजाता था। मैंने वो फोटो अपने पति को दिखाई I उन्होंने भी उसे पहचान लिया I उनको गुस्सा चढ़ने लगा " आने दो आंटी को बताता हूँ परेशान कर रखा था इसने। "
इतने में आंटी चाय लेके आ गयीं I मेरे पति ने फोटो की तरफ इशारा कर के पूछा - ये लड़का आपका कौन है ?"
" ये मेरा बेटा है। "आंटी बोली
"इसने तीन दिन से परेशान कर रखा था I रोज़ रात को आकर घंटी बजाता था फिर भाग जाता था । ये बोले I
आंटी बोली .." पर ये घंटी कैसे बजा सकता है !!!! इसे मरे तो एक साल हो गया।" सुन कर हम दोनों के हाथ से चाय का कप गिरते-गिरते बचा I मेरे रौंगटे खड़े हो गए।
"आज से एक साल पहले ड्यूटी से लौटते हुए इसकी एक्सीडेंट में मौत हो गयी थी I तब हम उसी मकान में रहते थे जिसमे अब आप हो। पंद्रह दिन पहले उसकी बरसी थी । उसी दिन मेरी बहू को , किसी ने गला दबा कर मार डाला। " फिर वो रोने लगीं I रोते रोते उन्होंने बताया कि " मेरे बेटे की नयी-नयी शादी हुई थी , पर मेरी बहू किसी और को प्यार करती थी I इसलिए उसने एक दिन मेरे बेटे को ड्यूटी जाने से पहले नींद की गोली खिला दी , जिससे उसका एक्सीडेंट हो गया और उसकी मौत हो गयी। बहू उसकी मौत का एक साल पूरे होने का इंतज़ार कर रही थी। उस दिन उसकी बरसी पर यहाँ आई थी और रात में रुकी थी। पर सुबह देखा उसका किसी ने गला दबा दिया।" थोड़ा रुक कर आंटी बोली " एक दिन सूरी अम्मा आई थी और उसने बताया कि कैसे एक दिन पहले उसका गलादबाने की कोशिश की थी किसी ने .. , अगले दिन उसने हमारे घर का नंबर बताया था । तब मुझे पता चला कि वो और कोई नहीं मेरा बेटा था , जिसने आप लोगो को परेशान किया और मेरी बहू का गला दबाया। पर मेरी बात पर कोई यकीन नहीं करेगा इसलिए ये बात सिर्फ आप लोगों को बता रही हूँ। "
सुन्न दिमाग से हमने आंटी से विदा ली।
उसी क्षण से , मैंने उस घर में ना रहने का मन बना लिया I और उसी हफ्ते हमने वो मकान छोड़ दिया