ये सड़के क्यों नहीं सोती हैं?
ये सड़के क्यों नहीं सोती हैं?
जब थकान उलाहना देती है
आतिथेय नींद बन जाती है
फिर मन दुखड़ा रोकर पूछती है
ये सड़कें क्यों नहीं सोती हैं...?
कोई दरिया का पानी झार गया
चट्टानों से लड़कर सिंधु भी हार गया
बगिया से दाना चुग-चुग कर
पक्षी भी अपने घर-द्वार गया
तब फिर उबासी ऊब कर पूछती है
ये सड़कें क्यों नहीं सोती हैं...?
कुछ रिश्ते यूँ सो जाती हैं
कुछ नाते भी सो जाती हैं
जब दर्द की काली रातों में
बरसातें भी सो जाती हैं
तब मन हारकर पूछती है
ये सड़कें क्यों नहीं सोती हैं...?
कोई आता है इन राहों पर
कोई जाता है इन राहों पर
कोई थककर क्षण भर रुक जाता है
फिर चलता बनता इन राहों पर
बोझिल पथ पथिक रोककर कहती है
ये सड़कें क्यों नहीं सोती हैं...?
अभी सावन घर आया था
कुछ मीठी यादों को बुलवाया था
फिर झूला डाल नीम के पेड़ पर
सूना-सूना ही झुलवाया था
सूना चौखट सूना आँगन
सूना खेत खलिहान हुआ
इस सूनेपन की ओखल में
वो नींद कूटकर कर पूछती है
ये सड़कें क्यों नहीं सोती हैं...?