अब बदलाव ज़रूरी है
अब बदलाव ज़रूरी है
फूल नहीं तू जो मुरझा जाये,
तितली नहीं जो किसी की दबोच में आये |दान की बछिया नहीं, ना किसी के मन बहलाने का सामान है,
तू आग है, तूफ़ान है, नियती का रोष है...दुर्गा है, काली है,तू ही
वहाँ से निकली तू नयी शुरुआत है,द्रौपदी मत बन,
जो कोई दांव में तुझे हार जाये ,
सीता मत बन,
जो खुद की रक्षा भी न कर पाये ,
अहिल्या मत बन,
जो बिना गलती के सजा पाये ,
राधे सा प्रेम ना कर,
कि श्याम के इंतज़ार मे खुद को मिटाये |
पार्वती की ज़िद बन ,
जो शिव को भी तपस्या से निकाल
विवाह के मंडप पे ले आए... सती
जो खुद मिटे तो पूरी दुनिया को
धरा बन, जो भू
नहीं सिखायेंगे अब हम तुझे
गलत को चुपचाप सहना,
ना तुझे दान करके
अपने फ़र्ज़ से हाथ झाडेंगे
नही बनायेंगे तुझे वो पानी
जो जहाँ जाये वहां ढल जाये
नहीं लेंगे हम तुझसे अब
तेरी खुशियों की कुर्बानी,
नहीं बनाना अब तुझे चाँद सा शी
जा तू सूर्य की तपन बन
नहीं बनाना अब तुझे फूलों सा को
जा खुद की रक्षा कर सके वो कांटा बन ,
जो हाथ तुझ पे उठे,
उन्हे पहली बार मे ही रोक दे..
जो गंदी नज़रे तुझपे डाले कोई,
खुद उसकी आँख नोच ले..
नहीं कहेंगे की डोली में
जाके सीधे अर्थी में आना,
नहीं कहेंगे की दुसरों के लिए
खुद की हस्ती मिटाना
पढ़ाएंगे लिखाएंगे
तुझे दुनिया से लड़ने के
लायक बनायेंगे ,
बहुत हार चुकी बेटी मेरी धरा की
अब उन्हें सक्षम बनायेंगे , नया वक्त, नया समाज,
अब हम खुद अपने दम पे लाएंगे।