आत्म मन्थन
आत्म मन्थन
हर दर पर मिलती ठोकर है
गहन निशा सूर्योदय होकर है
हर दिशा दुःख पाकर, मन में प्रसन्नचित्त कैसे हो लूँ
मन करता किस्मत पर रो लूँ
धोखा मिला वो भी सही
धक्का मिला वो भी सही
मन में उलझन पाकर, घोड़े बेच कर कैसे सो लूँ
मन करता किस्मत पर रो लूँ
दुःख मन को सुख घोषित करके
लाख चिन्ताएं पोषित करके
अनन्त भार पाकर, चंचल मन मैं कैसे ढो लूँ
मन करता किस्मत पर रो लूँ
लाख बाधाएं पथ में पाकर
सुख दुःख की गाथा गाकर
चिन्ताओं के जग को पाकर मन विवेक को कैसे खो लूँ
मन करता किस्मत पर रो लूँ
विमुख समय अवस्था में आज
पूर्ण दुखों की त्रस्तता में आज
पूर्ण धरा दुःख में पाकर, मन बीती को कैसे बोलूँ
मन करता किस्मत पर रो लूँ
पूर्ण संसार दुःख में पाकर
हर दर पर ठोकर खाकर
मन स्थिति हल्की करने, अपनी बातें किसको बोलूँ
मन करता किस्मत पर रो लूँ
मन के इन लाख शीर्णो से
अंशुमाली की नव किरणों से
आप शरीर को ओझल पाकर, पूर्ण नतमस्तक कैसे हो लूँ
मन करता किस्मत पर रो लूँ