प्रेम प्रमाण
प्रेम प्रमाण
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कितने अनकहे दिन थे
महीने साल बीतते रहे
कभी कुछ कहा ही नहीं गया
इसी बीच तुम आई
तुम्हारे आने से होठों ने बुदबुदाना सीखा
और आँखों ने व्यक्त करना
इस मध्य बहुत सारी अनकही बातें कही गईं
वह भी बिन कहे
बिन सुनें
बिना किसी जिरह के
और फिर एक वक़्त के बाद भूला दी गईं
फिर भी मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि,
मेरा प्रेम सच्चा था
क्योंकि, सच्चे प्रेम का कोई प्रमाण नहीं होता ............