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Sushma Sengupta

Others

3  

Sushma Sengupta

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बच्चे बड़े हो जाते हैं मांयें कभी बड़ी नहीं होतीं

बच्चे बड़े हो जाते हैं मांयें कभी बड़ी नहीं होतीं

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पाँच वर्ष का पिन्टू

खिलखिलाता हुआ आगे आगे

भाग रहा है

और प्रतिमा

दाल-चावल का कटोरा लिये

उसका पीछा कर रही है ,

पिन्टू खिलखिलाकर

ओर तेज़ भागता है ,

अन्ततः प्रतिमा आगे से घूमकर

पिन्टू को पकड़ ही लेती है

और दाल-चावल का एक कौर

उसके मुँह में ठूँस देती है और

गाती है,

"एक कौर कौवा का -

"एक कौर हाथी का -

"और..और..और..

एक कौर..पिन्टू का -

पिन्टू दुनिया का

सबसे प्यारा बच्चा है..है ना ?

प्रतिमा यह नाटक

तब तक करती रहती है, जब तक

वह पिन्टू को

पूरा दाल-चावल

खिला नहीं लेती है ,

 

पिन्टू दस वर्ष का 

पीठ पर स्कूल-बैग लादे

दरवाज़े से चुपचाप निकलने का

प्रयास करता है ,

तभी हाथ में दूध का गिलास लिये हुए

पीछे से माँ की आवाज़ आती है 

"अरे चोर रुक जा वहीं

बिना दूध पिये ही भाग रहा था

यह ले  पी इसे !"

पिन्टू तमाम नखरे दिखाकर

आखिरकार हार मान कर

मुँह बनाते हुए

किसी तरह दूध पी लेता है..!"

 

पिन्टू अठारह वर्ष

कालेज जाने को तैय्यार है ,

माँ के हाथ में दूध का गिलास देख कर

चिढ़कर कहता है "माँ मैं अब

बच्चा नहीं रहा 

अठारह बरस का हो गया हूँ

कोई दूध-पीता बच्चा नहीं हूँ !"

माँ मुस्कुराकर कहती है

"तो क्या हुआ

मेरे लिये तो तू बच्चा ही है 

अच्छा,

दूध अच्छा नहीं लगता, तो

छोड़ दे उसे..मैने तेरे लिए

खीर बनाई है..यह ले

यह तो तुझे पसन्द है न..

खा ले जल्दी से ,

पिन्टू मुँह बनाता हुआ

किसी तरह खीर निगल लेता है

और सोचता है

" माँ कब तक ऐसी बचकानी हरकतें

करती रहेगी...कब तक

मुझे बच्चा समझती रहेगी 

माँ कब बड़ी होगी..!

 

पिन्टू

पच्चीस वर्ष का 

अब पिन्टू नहीं

प्रहलाद कुमार शर्मा...

आफ़िस जाने की तैय्यारी में व्यस्त है

प्रतिमा पिन्टू का टिफ़िन लेकर

दरवाजे़ पर तैनात है 

कहीं पिन्टू बिना टिफ़िन लिये ही

आफ़िस न चला जाए ,

पिन्टू चिड़ कर कहता है 

"माँ अफ़िस में खाने के लिए

बहुत कुछ मिल जाता है ,

और फिर

मुझे अपना वज़न भी तो

कम करना है़.."

माँ आँखें फाड़कर कहती है..

"अब और कितना दुबला होना

चाहता है तू ?

मुँह सूखकर छुहारा हो गया है 

पिन्टू फिर झल्ला उठता है

"माँ तुम समझती क्यों नहीं..मैं

अब बच्चा नहीं रहा...बड़ा हो गया हूँ"

प्रतिमा मुस्कुराकर कहती है

"मेरे लिए तो बच्चे ही हो "

पिन्टू सोच रहा है

"आखिर माँ कब बड़ी होगी "

पिन्टू नहीं जानता है, कि

बच्चे बड़े हो जाते हैं...

माएं कभी बड़ी नहीं होतीं...!

 

पिन्टू चवालीस वर्ष का हो चुका है 

माँ, नगर के एक जाने-माने

अस्पताल के आई. सी. यू. में भरती

जीवन की आखिरी सांसें

गिन रही है ,

आज पिन्टू के कान में

माँ की वही आवाजें गूँज रही हैं 

आज वह चाहता है, कि

माँ उसे रात भर जागने के लिये

डाँटे और

घर जाकर सोने के लिए हिदायत दे 

पिन्टू जानता है कि आज भी

माँ ने आँख खोली तो यही कहेगी

कि बेटा तू थक गया होगा 

घर जाकर आराम कर 

मैं बिलकुल ठीक हूँ 

क्योंकि

बच्चे बड़े हो जाते हैं..

मांयें कभी बड़ी नहीं होतीं...

  

 

 


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