मैं एक तवायफ
मैं एक तवायफ
तवायफ,
हाँ, यही नाम है मेरा।
बेचती हूँ ख़ुद को,
ज़िंदा रहने के लिऐ।
लेती हूँ मर्दों से पैसे,
उनका पसीना सूँघने के लिऐ ।
बुझाती हूँ उनकी वासना की आग,
ताकि ज़िंदा रहे इस व्यापार का वज़ूद।
चाह कर भी नहीं छोड़ पाती,
मेरे पुरखों का निशाँ अभी भी है मुझ पर मौज़ूद।
कभी किसी का खिलौना,
तो कभी किसी का खाना।
कभी पानी की तरह बुझाना,
तो कभी आग की तरह जलाना।
कभी फूल,
तो कभी काँटा,
कभी ख़ुश्बू
तो कभी बदबू,
कभी जन्नत,
तो कभी जहन्नुम।
रोज कुछ नया नाम मिलता है मुझे,
रोज ये व्यापार खाता है मुझे।
बस कुछ बदलता नहीं,
तो वो है मेरा नाम,
मेरा और मेरे पुरखों का काम।
अपना लिया है मैंने अब इसे,
छूट चुकी हूँ मैं ख़ुद से।
छोड़ दिया है ख़ुद को,
कहीं किसी बिस्तर पर।
बस पाया है अब अपने जिस्म को
किसी मर्द की बाहों में या सीने पर।
आँसू तो बह चुके है,
बस पत्थर टूटना बाक़ी है।
मर तो चुकी हूँ,
बस जिस्म का जलना बाक़ी है।
हो जाऊँगी ख़त्म कुछ दिनों में,
टूट जाऐगा नाता मेरा दुनिया से।
पर एक चीज़ हमेशा ज़िंदा रहेगी,
और लड़कियों की इज़्ज़त इस बाज़ार में बिकेगी,
मेरी जैसी और जाने जाऐगी,
ये गलियाँ हमेशा सजी रहेगी।
भूल जाऐंगे लोग मुझे,
मिलेगी मेरे जैसी बहुत उन्हें।
पर मैं ख़ुद को याद रखूँगी,
एक तवायफ,
हाँ यही नाम है मेरा।