"माँ - ममता का आँचल"
"माँ - ममता का आँचल"
कजरी घटा से झलके, ज्यों स्वर्णिम दिनकर प्रभा,
अतीव मनोहारी लगे, मुझे माँ की रूप-आभा ,
पल्लवित जीवन,मात-पितृ की सघन छाँव,
उत्तरदायित्व समर्पित हैं, सब उनकी ही ठाँव,
उनकी ममता, स्नेह, त्याग असीम-अपरिमित,
जीवन संघर्ष-उद्योग उनके, सब बच्चों के निमित्त,
संस्कारजन्य माँ देती दृढ़ता, संघर्षों में अटूट संबल,
अतुलित- उल्लासित रहूँ मैं, कर्म-पथ पर अविचल,
चित्रों में रचे-बसे, स्मृतियों के वे अनमोल पल,
बालपन के मधु-हर्षोल्लास, कर देते भाव-विह्वल,
देख-देख रीझती हूँ, स्वयं को तुम्हारी गोद में,
शैशव के उन अप्रतिम, अमोल क्षणों की ओट में,
कल्पनाओं में मेरी, माँ इक बालिका-वधू सी,
बनी जब दुल्हन वो, पंद्रह बरस की नन्हीं सी,
पीढ़ियों का अंतराल उभरता जब मध्य हमारे,
रहे ठोस प्रयत्न, ना उभरें विघटन की दीवारें,
माँ संवाद तुम्हारे मुझसे ना रहे अति मुखरित,
किंतु अंतस में तुम्हारी चिंता औ'प्रार्थनाएं चिन्हित,
मेरा सब लाड़-प्यार और दुलार है तुम्हीं से,
मेरे सब मान-मनौवल और तकरार भी तुम्हीं से,
खोकर जीवन से अपने, पितृ की गहन छत्र-छाया,
इर्द-गिर्द तुम्हारे ही, मेरा जीवन है सिमट आया,
संभव नहीं प्रतिदान, किंतु मन-प्राण संलग्न हैं,
उत्तरदायित्व करूँ पूर्ण, यथासंभव यही प्रयत्न हैं,
हैं अभिन्न अंग, कोई यत्न पृथक हमें न कर सके,
परिस्थितियाँ ना करें, मुझे कभी विमुख कर्तव्यों से,
कोई शब्द नहीं इतने सक्षम, दें अर्थ उसे जो है निश्चल,
पावन स्नेहसिक्त माँ का आँचल, लहलहाये अविकल