बस अब अपने लिए जीना चाहूँ
बस अब अपने लिए जीना चाहूँ
ममता का आज क़त्ल किया,रिश्तों को कुचल दिया
कहने को सब है मगर,तू ने ही नज़र चुरा लिया
ना रुकूंगी तेरे कहने से,ना डरूंगी तेरे ठोकर से
अब…… मैं हूँ आप शक्ति
मैं ही दुर्गा मैं ही अब भवानी हूँ
ना निर्बल,ना कमज़ोर हूँ ,ना तेरे हाथ कठपुतली हूँ
ना तेरा हाथ, ना तेरा साथ, ना ज़रूरत, ना सुनू तेरी बात
मैं ही दुर्गा, मैं ही अब चंडिका हूँ
बचपन का क़र्ज़ ना है अब तुझपे
मुझे क्या तेरे शान और शौकत से
प्यार ही माँगा था जो तुझसे
वोही कम था तेरी झोली में
मैं अब मेरी शक्ति आप हूँ
मैं ही दुर्गा, मैं ही अब काली हूँ
खुले आसमान में उड़ना है मुझे
कौन हूँ मैं, अपने आप से मिलना है मुझे
हर लकीर में नयी कहानी लिखना चाहूँ
दुनिया से अब यह कहना चाहूँ ,मैं सिर्फ़ एक औरत हूँ
मैं ही दुर्गा… और मैं ही अब माँ शक्ति हूँ
बस अपने लिए जीना चाहूँ
मैं ही दुर्गा, मैं ही अब सरस्वती हूँ
अपने लिए बस जीना चाहूँ
बस अब अपने लिए जीना चाहूँ