मैं भीतर ही भीतर अपने अंदर फैले सन्नाटे से घुट रही थी| तमाम नाते रिश्ते छूट चुके थे| ‘पीली कोठी’ ख्व... मैं भीतर ही भीतर अपने अंदर फैले सन्नाटे से घुट रही थी| तमाम नाते रिश्ते छूट चुके...
लेखक : मिखाइल बुल्गाकव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : मिखाइल बुल्गाकव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास