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Ravi Shah Innocent

Others

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Ravi Shah Innocent

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याद करो वो दिन

याद करो वो दिन

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जब हम पूरा पूरा दिन घर से बाहर खेलते रहते थे, कभी छुप्पम - छुप्पाई तो कभी पकड़म - पकड़ाई, वो गिल्ली डंडा और फिर याद है क्रिकेट में जिसका बैट होगा वही सबसे पहले बैटिंग करेगा। एक वो ही ऐसा दौर था जब क्रिकेट मैदान के साथ साथ नोट्बुक में भी खेला जाता था।

याद करो वो गर्मियों की छुट्टियाँ जो हमने मामा और मौसी के घर बिताई थी, वो गर्मी के दिनो में शाम को एक साथ बैठ आम चूसना!

याद करो वो दिन जब बचपन में हमारी भी एक गैंग हुआ करती थी जो प्लानिंग करती थी सामने वाले को कैसे निपटाना है।पल मेंदुश्मनी पल में दोस्ती हुआ करती थी उन दिनो।

याद है वो रविवार जिसका हमें पूरे सप्ताह इंतजार रहता था और उस दिन हम पूरा दिन टीवी देखते थे जिसमें हमारे सबके पसंदीदा कार्यक्रम शक्तिमान, श्री कृष्ण, रामायण हुआ करते थे, जब टीवी की बात हुई है तो यह कैसे भूल सकते  उन दिनो हर घर  टीवी नहीं होता था तब तो पूरे मोहल्ले में  एक टीवी हुआ करता था और पूरा मोहल्ला साथ बैठ के देखता था।

याद  है हम सबके पसंदीदा कॉमिक बुक चाचा चौधरी जिनका दिमाग़ कम्प्यूटर से भी तेज चलता था।

याद है वो दिन जब पेप्सी प्लास्टिक  के पैकेट में आती थी, तब फ़्रेंड रिक्वेस्ट Facebook पर नहीं बल्कि दोस्त ले के जाया करते  थे, याद है वो दिन जब ईमेल नहीं था और खबरें डाकिया लाता था, आज  एक घर  में 5 स्मार्ट फ़ोन है उन दिनो पूरे मोहल्ले में एक टेलिफ़ोन हुआ करता  था जिस पर पूरे मोहल्ले वालों  के फ़ोन आते थे।

याद है वो दिन जब शाम को महिलायें अपनी अलग टोली  में पुरुष अपनी अलग टोली में बैठ चर्चा करती थी और हम बच्चे अपनी ही मौज में खेलते रहते थे।

आज जहाँ ढेरों निजी स्कूल हैं तब पूरे गाँव एक सरकारी स्कूल हुआ करता था, जहाँ सब मिल  कर रहते थे, ना ऊँच नीच का भेद ना एक दूसरे से कोई प्रतिस्पर्धा हम तो बस अपने बचपन को मज़े से जी रहे  थे तब।

ना जाने वो बचपन के दिन कहीं खो से गये हैं, आज आधुनिक दौर में, आज सब कुछ चार दीवारों में बंद सा गया है जीवन हमारा ।



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