याद करो वो दिन
याद करो वो दिन
याद करो वो दिन
जब हम पूरा पूरा दिन घर से बाहर खेलते रहते थे , कभी चूप्पम - चूप्पाई तो कभी पकडम - पक्डाई , वो गिल्ली डंडा और फिर याद हे क्रिकेट में जिसका बेट होगा वही सबसे पहले बेटिंग करेगा । एक वो ही एसा दौर था जब क्रिकेट मैदान के साथ साथ नोट्बुक में भी खेला जाता था ।
याद करो वो गर्मियों की छुट्टियाँ जो हमने मामा और मौसी के घर बिताई थी , वो गर्मी के दिनो में शाम को एक साथ बेठ आम चूसना !
याद करो वो दिन जब बचपन में हमारी भी एक गैंग हुआ करती थी जो प्लानिंग करती थी सामने वाले को केसे निपटाना है । पल में दुश्मनी पल में दोस्ती हुआ करती थी उन दिनो !
याद है वो रविवार जिसका हमें पूरे सप्ताह इंतज़ार रहता था और उस दिन हम पूरा दिन टीवी देखते थे जिसमें हमारे सबके पसंदीदा कार्यक्रम शक्तिमान , श्री कृष्ण , रामायण हुआ करते थे , जब टीवी की बात हुई हे तो यह केसे भूल सकते उन दिनो हर घर टीवी नहीहोता था तब तो पूरे मोहल्ले में एक टीवी हुआ करता था और पूरा मोहल्ला साथ बेठ के देखता था !
याद है ?हम सबके पसंदीदा कोमिक बुक चाचा चौधरी जिनका दिमाग़ कम्प्यूटर से भी तेज चलता था !
याद हे वो दिन जब पेप्सी प्लास्टिक के पेकेट में आती थी , तब फ़्रेंड रिक्वेस्ट फ़ेस बूक पर नही बल्कि दोस्त लेके ज़ाया करते थे, यादहे वो दिन जब ईमेल नही था और खबरें डाकिया लाता था , आज एक घर में 5 स्मार्ट फ़ोन हे उन दिनो पूरे मोहल्ले में एक टेलिफ़ोनहुआ करता था जिस पर पूरे मोहल्ले वालों के फ़ोन आते थे !
याद हे वो दिन जब शाम को महिलायें अपनी अलग टोली में पुरुष अपनी अलग टोली में बैठ चर्चा करती थी और हम बच्चे अपनी हीमौज में खेलते रहते थे !
आज जहाँ ढेरों निजी स्कूल हे तब पूरे गाँव एक सरकारी स्कूल हुआ करता था , जहाँ सब मिल कर रहते थे , ना ऊँच निच भेद ना एकदूसरे से कोई प्रतिस्पर्धा हम तो बस अपने बचपन को मज़े से जी रहे थे तब !
ना जाने वो बचपन के दिन कही खो से गये हे आज आधुनिक दौर में , आज सब कुछ चार दिवारों में बंध सा गया हे जीवन हमारा ।
