उडती किताबें और झा सर
उडती किताबें और झा सर
एक रात की बात है, हमारे स्कूल में सभी बच्चे और अध्यापक- अध्यापिकाएँ स्कूल में रात भर ठहरे थे। शाम का खाना खाकर मैं और मेरे दोस्त पुस्तकालय में गए थे। शाम को हम सब ने बहुत मज़े तो कर ही लिए थे, इसलिए हम कुछ पुस्तकें पढ़ने के लिए गए थे। पुस्तकालय पहली मंजिल पर था, तो हम एक दूसरे को हंसाते- हंसाते सीढ़ियों से गए। पुस्तकालय का दरवाजा बंद था। हमने जैसे ही दरवाजा खोला वैसे ही हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अंदर क्या होगा ....?
यदि नहीं तो कहानी पढ़ते रहिए........!!!
सारी पुस्तकें उड़ रहीं थीं। हम सब हैरान हो गए। फिर हमने जाकर हमारी अध्यापिकाओं को बुलाया। वे भी डर गईं। फिर हम पूरे पुस्तकालय में देखने लगे कि यह कौन कर रहा है। कुछ समय तक हर जगह शांति.... हर जगह सन्नाटा था.... ।थोड़ी देर बाद, एक बच्चा चिल्लाया, "अरे! झा सर आप!!" सब डर गए। सब झा सर के पास गए। वे हमारे विज्ञान के अध्यापक हैं। उन्हें देखते ही सबने बोला "अरे सर! आपने तो हमें डरा ही दिया।" फिर उन्होंने कहा," आप सब तो डर गए। मैंने एक ऐसा धागा बनाया है जो किसी को नहीं दिखाई देगा। मैंं उसी को जांच रहा था जिससे यह किताबें उड़ रही थीं। आप सब बताइए यह कैसा है?"
"तो आपको पता है हमने क्या उत्तर दिया?"
हम सब ने बोला कि यह" डरावना" है। हम सब हंसने लगे। फिर रात के खाने का समय हो गया और हम सब खाना खा कर अपने-अपने कमरों में चले गए।
