amreen Khan

Children Stories

4.5  

amreen Khan

Children Stories

''टीचर्स डे ''

''टीचर्स डे ''

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नमन ने कांपती आवाज़ में कहा, “यह मेरी मां की है। अब मुझे आप में से मां जैसी ख़ुशबू आती है। ” कलेजा मोम हो गया नंदिनी का। ममता में भी एक ख़ुशबू होती है, महसूस कर लिया ज़रा-से बच्चे ने। किसी की परवाह किए बिना नमन को बांहों में भर रो पड़ीं नंदिनी!

नंदिनी ने जैसे ही क्लास में पैर रखा, प्रतिदिन की तरह उनकी नज़र सबसे पीछे के बेंच पर कोने में बैठे नमन पर पड़ी। क्रोध और घृणा के मिले-जुले भावों से उनके माथे पर त्यौरियां उभर आईं। नंदिनी इस छठी कक्षा की क्लास टीचर भी थीं और हिंदी भी पढ़ाती थीं। उन्होंने सबकी उपस्थिति दर्ज़ की। पढ़ाना शुरू किया। प्रतिदिन की तरह नमन को डांटने-फटकारने की इच्छा बलवती हुई, तो जान-बूझकर तेज़ स्वर में बोली “नमन!” नमन कांपता-सा खड़ा हो गया।

“कल जो पढ़ाया था, याद है?” नमन कुछ नहीं बोला। उन्हें टुकुर-टुकुर देखता रहा। नंदिनी और चिढ़ गईं। फिर डांटा, “कुछ पूछ रही हूं तुमसे, कुछ याद है?” नमन ने सिर नीचे झुका दिया। पूरी क्लास में बच्चों की हल्की-हल्की हंसी सुनाई देने लगी। “जाओ, एक कोने में जाकर खड़े हो जाओ। ” नमन अपनी बेंच से निकल कर क्लास के एक कोने में जाकर खड़ा हो गया। यह तो लगभग हर दूसरे-तीसरे दिन का रूटीन ही था। नंदिनी ने आगे पढ़ाना शुरू कर दिया। पूरे पीरियड नमन खड़ा रहा। बच्चे बीच-बीच में उसे देखकर मुस्कुराते रहे। नमन के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। एकदम चुपचाप पता नहीं किन ख़्यालों में डूबा क्या सोचता रहा। पीरियड ख़त्म होने पर नंदिनी सब बच्चों की नोटबुक्स लेकर, जिनमें नमन की भी थी, क्लास से निकल गईं। दिन में अपने फ्री पीरियड में वे स्टाफ रूम में बैठकर सब बच्चों की नोटबुक्स चेक करने लगीं। जैसे ही नमन की नोटबुक सामने आई, उनका चेहरा ग़ुस्से से तन गया। कोई चीज़ पूरी नहीं। गंदी हैंडराइटिंग। ‘ओह! कैसे मेरा पीछा छूटेगा इस गंदे लड़के से। ’ वे कॉपी एक तरफ़ रख अपना सिर चेयर पर टिकाकर सोचने लगीं, ‘बहुत ग़ुस्सा आता है नमन पर, नफ़रत-सी होती है, बाकी सब बच्चों के चेहरे पर कितनी ताज़गी-ख़ुशी, कितना उत्साह, शरारत दिखती है और ये रोनी सूरत लेकर बैठा रहता है। न पूछने पर कोई उत्तर, न बताने पर कोई प्रतिक्रिया। करने क्या आता है स्कूल, जब पढ़ाई में मन ही नहीं लगता और कितना गंदा रहता है। लगता है रोज़ नहाता भी नहीं है। इस स्कूल में इसका एडमिशन हो कैसे गया। किसी छोटे-मोटे सरकारी स्कूल में कहीं पढ़ लेता। हमारे इतने अच्छे स्कूल में यह आता भी कैसे है। बस, यह साल निकल जाए, मेरी जान छूटे इससे। कहीं फेल हो गया, तो पूरे साल फिर इसकी शक्ल देखनी पड़ेगी। ’

घर जाकर भी नंदिनी अपने पति संजीव और सोलह वर्षीया बेटी रिया से रोज़ की तरह नमन की शिकायत करने लगीं, तो रिया ने हँसकर कहा, “मम्मी, आपके तो दिलोदिमाग़ पर छाया रहता है आपका फेवरेट स्टूडेंट नमन। ” नंदिनी ने बनावटी ग़ुस्से से कहा, “चुप रहो रिया, सुबह उसकी शक्ल देखते ही ग़ुस्सा आ जाता है। रोनी शक्ल! कभी भी फ्रेश नहीं दिखता, पता नहीं कैसे माता-पिता हैं। क्या सिखा रहे हैं?” नंदिनी रोज़ घर पर भी नमन को कोसती रहती थीं। उन्हें नमन से नफ़रत व चिढ़ होती जा रही थी।

त्रैमासिक परीक्षाओं में नमन हर विषय में फेल हुआ, तो प्रिंसिपल सारिका ने नंदिनी को बुलाया और नमन का नाम उन्होंने लिया ही था कि नंदिनी शुरू हो गईं, “मैम, इस लड़के का मन पढ़ाई में ज़रा भी नहीं लगता। यह इस क्लास तक पहुंचा भी कैसे? मैं तो अभी स्कूल में नई आई हूं, पर यह पिछली क्लास में पास भी कैसे हुआ है?” सारिकाजी सौम्य स्वभाव की बहुत ही शांत महिला थीं। स्कूल की प्रसिद्धि में उनके सौम्य स्वभाव का विशेष योगदान था, उन्होंने कोमल स्वर में कहा, “नंदिनी, यह नमन का पांचवीं क्लास का रिज़ल्ट है। एक बार नज़र डाल लो। ” नंदिनी ने जैसे-जैसे नमन की पिछली रिपोर्ट्स पर नज़र डाली, उनके चेहरे का रंग बदलता चला गया। नमन! इतना मेधावी छात्र था! हर विषय में इतना होशियार! स्कूल की बाकी गतिविधियों में भी इतना आगे! नंदिनी जैसे हैरत में डूबी थीं। यक़ीन ही नहीं हो रहा था। सारिकाजी ने गंभीर स्वर में कहा, “तुम्हारे जॉइन करने से अभी कुछ ही दिन पहले नमन की मां का देहांत हो गया था। पिता अकेले हैं। इस समय अस्वस्थ भी हैं। दोनों अकेले रह गए हैं। घर-गृहस्थी, नमन की देखरेख करनेवाला कोई भी नहीं है। ख़ुद ही तैयार होकर स्कूल आ जाता है। आसपास के लोगों की मदद से जितना हो सकता है, अभी चल रहा है। दोनों नमन की मां के जाने के दुख से अभी तक उबर नहीं पाए हैं। नमन की मां थीं, तो नमन बहुत अच्छे छात्रों की श्रेणी में आता था। हम टीचर्स हैं। हमारा कर्तव्य है कि अपने स्टूडेंट्स के गिरते मनोबल को उठाकर जीवन में आगे बढ़ने में उनकी मदद करें। मुझे उम्मीद है कि आप मेरी बात समझ ही गई होंगी। ”

नंदिनी के मुंह से कुछ नहीं निकला। आँखें भर आई थीं। “जी मैम, थैंक्स। ” कहकर सीधे वॉशरूम में गईं। आँखें अजीब-सी ममता में भीगी जा रही थीं। सारिका मैम ने नमन के बारे में बताकर उनका मार्गदर्शन बहुत ही उचित ढंग से किया था।

उस दिन जब नंदिनी घर पहुँचीं, तब संजीव और रिया उनके चेहरे पर छाई उदासी व गंभीरता देख हैरान हुए। डिनर के समय उन्हें हँसाने की कोशिश करते हुए रिया ने कहा, “क्या हुआ मम्मी? आज इतनी चुप? नमन नहीं आया था क्या?” संजीव ज़ोर से हँस पड़े, पर नंदिनी की आंखों से अचानक बह चली अश्रुधारा देखकर पिता-पुत्री चौक गए। संजीव ने पूछा, “क्या हुआ नंदिनी? तबियत तो ठीक है?”

नंदिनी कोहनी टेबल पर टिका हाथों में मुंह छुपाए रोए जा रही थीं। बहुत पूछने पर नमन के बारे में बताया, तो माहौल उदास हो गया। वे कह रही थीं, “बड़ी ग़लती हुई मुझसे, बिना जाने हाल ही में अपनी मां को खो चुके बच्चे के साथ कितनी रुखाई से पेश आ रही थी। अपने आप पर शर्म आ रही है मुझे। ” एक अपराधबोध नंदिनी के मन-मस्तिष्क पर हावी होता जा रहा था। रात भर नमन का उदास चेहरा नंदिनी की आंखों के आगे आता रहा और वह ममता से भीगी अपनी आँखें पोंछती रहीं। बेचैनी से सुबह होने की प्रतीक्षा करती रहीं।

अगले दिन नंदिनी जब क्लास में आईं। उनकी नज़र नमन पर पड़ी। बच्चों की समवेत फुसफुसाहट सुनाई दी, जिसकी उपेक्षा कर नंदिनी ने नमन को अपने पास बुलाया। नमन डरता हुआ उनके पास आकर खड़ा हो गया। नंदिनी ने उसके उलझे, कुछ गंदे बालों पर हाथ फिराया। नमन की आंखों में डर और हैरानी दोनों दिखे नंदिनी को। नंदिनी ने स्नेहपूर्वक पूछा, “नमन, होमवर्क किया?” नमन ने कुछ जवाब नहीं दिया। बच्चे हँसने लगे। नंदिनी ने उन्हें घूरा, तो सब शांत हो गए। फिर कहा, “यहीं रहो नमन, मेरे पास। मैं कुछ पूछती हूं, तो बताना। ” नमन बिल्कुल चुप रहा। नंदिनी ने जान-बूझकर कुछ आसान से प्रश्‍न पूछे, जिसके सब बच्चों ने ख़ूब उत्साह से उत्तर दिए, पर नमन चुपचाप खड़ा रहा। शांत, उदास!

तीन-चार दिन यही क्रम चलता रहा। नंदिनी नमन को अपने पास ही खड़ा करतीं। उसके सिर पर हाथ फेरतीं, उसका कंधा थपथपातीं, उसे उत्तर देने के लिए प्रोत्साहित करतीं। फिर नमन से बहुत स्नेहपूर्वक कहतीं, “अब नमन बताएगा। ” एक दिन नमन ने भी जवाब दे ही दिया। उसकी चुप्पी टूटी, तो नंदिनी ने बच्चों के साथ मिलकर तालियां बजाईं। नमन को ख़ूब शाबाशी दी।

धीरे-धीरे नमन में एक सुखद परिवर्तन दिख रहा था। नंदिनी का दिल भर आया। अब नमन कुछ साफ़-सुथरा रहने लगा था। उसकी नोटबुक्स भरने लगी थीं। पीछे की बेंच से कब नंदिनी के सामने बेंच पर बैठने लगा, किसी को पता ही नहीं चला। हर प्रश्‍न पर हाथ खड़ा करता, सही जवाब देता, तालियां बजतीं, तो नमन के चेहरे पर एक चमक उभर आती। जिस दिन नमन जवाब देकर नंदिनी को देखकर मुस्कुराया, नंदिनी का दिल ममता से भर उठा। मन ही मन पहले स्वयं को धिक्कारा। ‘कितने दिन इस बच्चे के साथ रुखाई से पेश आई। मां के जाने के ग़म में डूबे बच्चे को कितना डांटा-फटकारा। छिः बहुत पाप हुआ!’ पर नमन की भोली मुस्कुराहट में नंदिनी का ममतापूर्ण हृदय डूबता चला गया। अब नमन अन्य बच्चों के साथ बातें करता भी दिख जाता था। अब नंदिनी की पूरी नज़र, पूरा ध्यान नमन पर रहता था। कई बार उसके लिए कुछ खाने के पैकेट भी ले आतीं और अपने पास बुलाकर चुपचाप दे देतीं। अब दोनों के बीच एक अनूठा रिश्ता अपनी जड़ें मज़बूत करता जा रहा था।

घर आकर भी नंदिनी का ध्यान नमन में रहता। वह बच्चा है, घर जाकर पता नहीं क्या खाने के लिए मिलता होगा। पिता अस्वस्थ हैं। क्या करता होगा। नंदिनी की हर कोशिश थी कि वे नमन के लिए जितना संभव हो, उतना कर दें। नंदिनी नमन के बाकी विषयों की पढ़ाई के बारे में भी बाकी टीचर्स से पूछती रहती थीं। नंदिनी के विनयपूर्वक आग्रह करने पर बाकी टीचर्स भी नमन पर अतिरिक्त ध्यान देने लगी थीं।

छमाही परीक्षा में नमन ने सबको हैरान कर दिया। बहुत ही अच्छे अंक प्राप्त किए थे। सारिका ने नंदिनी को फिर बुलाया, कहा, “वेलडन नंदिनी! मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। एक बच्चे को अपना स्नेह व मार्गदर्शन देकर उसका जीवन संभाल लिया तुमने। आई एम प्राउड ऑफ यू नंदिनी!”

नंदिनी बहुत ख़ुश हुईं। ज़रा-सा स्नेह ही तो मिला उसे मुझसे। जैसे एक मुरझाया हुआ फूल खिल उठा है। इस उदास बचपन को सींचने के लिए स्नेह कितना आवश्यक था!

नंदिनी ने नमन को बुलाकर चॉकलेट्स और मिठाई दी। नमन ने “थैंक्यू मैम!” कहते हुए जब उनके चरण स्पर्श किए, तो वे निहाल हो गईं। अब नमन नंदिनी से अपने पिता के बारे में भी बात करने लगा था। उसने बताया था कि उसके पिता पहले से अब ठीक हैं। जल्दी ही काम पर जाना शुरू करेंगे।

टीचर्स डे आनेवाला था। सब बच्चे आपस में बात करने लगे कि क्लास टीचर को क्या देंगे। स्कूल में छोटा-सा प्रोग्राम होता था। टीचर्स के मना करने के बाद भी स्टूडेंट्स टीचर्स को कुछ गिफ्ट देते ही थे। कुछ बच्चे नमन का मज़ाक भी उड़ा रहे थे कि यह क्या देगा, इसे तो मैम ही कुछ न कुछ देती रहती हैं। टीचर्स डे पर बच्चों ने कुछ प्रोग्राम पेश किए, कुछ कविताएं सुनाई गईं, एक-दो नाटक भी हुए, प्रोग्राम अच्छा रहा। फिर बच्चे टीचर्स को गिफ्ट्स देने लगे। नमन के हाथ में भी पुराने अख़बार में लिपटा हुआ एक पैकेट था। बच्चे हँसने लगे, “कुछ पुरानी चीज़ उठकार ले आया है। ”

नमन ने चुपचाप अपना पैकेट बहुत ही संकोच के साथ नंदिनी के आगे कर दिया, “मैम, आपके लिए!” नंदिनी ने इतने उपहारों में सबसे पहले नमन का दिया पैकेट खोला। नज़र आंसूओं से धुँधला गई। एक पुरानी साड़ी! नमन ने कांपती आवाज़ में कहा, “यह मेरी मां की है। अब मुझे आप में से मां जैसी ख़ुशबू आती है। ” कलेजा मोम हो गया नंदिनी का। ममता में भी एक ख़ुशबू होती है, महसूस कर लिया ज़रा-से बच्चे ने। किसी की परवाह किए बिना नमन को बांहों में भर रो पड़ीं नंदिनी! एक सन्नाटा पसर गया, जिसने भी यह दृश्य देखा, आँखें भीगने से रोक न सका। टीचर्स डे पर एक गुरु-शिष्य के स्नेह-सम्मान का जीता-जागता उदाहरण सबके सामने था।



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