कल्पना रामानी

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कल्पना रामानी

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टाट का पैबंद

टाट का पैबंद

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“आहा! कितना शानदार भवन बनवाया है सुमि! आनंद आ गया... बहुत बहुत बधाई सखी” गृहप्रवेश के अवसर पर न आ सकने पर खेद प्रगट करती हुई निर्मला बोली।

"कोई बात नहीं निम्मो, सबकी अपनी-अपनी व्यस्तताएँ होती हैं।" कहते हुए सुमि ने निम्मो का हाथ अपने हाथ में लिया और बड़े उत्साह के साथ बातें करती हुई पूरा घर दिखाने लगी।


“सुमि, क्या तुमने जॉब छोड़ दिया है”? घर की साज सज्जा से प्रभावित निम्मो ने पूछा।

"नहीं तो..."

“फिर इतने बड़े घर की साज-सज्जा, रख-रखाव पर कैसे ध्यान दे पाती हो”?

सुमन कुछ कहती उससे पहले ही निर्मला की नज़रें अचानक उसके शयनकक्ष की दीवार पर अटक गईं तो हैरत में पड़कर बोली-

“अरे सुमि, यह क्या, अपने शयनकक्ष में तुमने यह एक दराज वाला इतना छोटा सा दर्पण, क्यों लगा रखा है? क्या तुमने अलग से शृंगार-कक्ष नहीं बनवाया? इतने सुंदर घर में यह तो मखमल में टाट के पैबंद जैसा महसूस हो रहा है”


"इसमें हैरानी की कोई बात नहीं निम्मो, अगर यह टाट का पैबंद न होता तो क्या मेरा घर मखमल बना रह सकता था? चलो नाश्ता करते हैं।"


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