सत्याग्रह
सत्याग्रह
‘यहाँ क्या करने के लिए आए हो ?’- अज़ीम ने भदावर से पूछा।
‘क्यों मैं नहीं आ सकता क्या?’- भदावर बोला। भदावर सिर्फ 16 साल का मज़दूर बालक है जो काम की खोज में इधर से उधर भटकता रहता है। देखने में नाटा कद कुछ 5 फुट 4 इंच के आस-पास काला लेकिन गठीला शरीर शायद मजदूरी की देन।
‘हाँ वो तो है पर तुम तो मेरी जात के नहीं हो ?’- अजीम बोला।
‘अच्छा ऐसा क्या ? तो फिर हम चलते हैं। ’- भदावर
अज़ीम-‘ रुकों। ’
भदावर-‘ पर तुम ही तो अभी कह रहे थे की हमारा यहाँ कोई काम नहीं ?’
अज़ीम-‘तुम्हें यहाँ रहने का 500 रूपये तक मिल जाएगा और साथ में बिरयानी और रजाई भी।’
भदावर – 'सच में। ये तो दिहाड़ी से भी ज्यादा है हम दिन भर भी करे तो तीन- चार सौ से ज्यादा नहीं कमा पाते। ’
अज़ीम –‘इसी लिए तो।’
भदावर- ‘पर ये सब तो गलत है। हम तो आंदोलन के लिए आएं है।’
अज़ीम –‘अभी सिर्फ 16 के हो धीरे-धीरे सीख जाओगे।’
भदावर सोच में पड़ गया फिर थोड़ी देर बाद उसने नारे लगाने शुरू कर दिए जो सब लगा रहे थे।
4 दिन बाद
भले ही दिन के 1 बज रहे हो पर ठंडी के मौसम से लोग ठिठुर रहे थे शीत लहर और धूप का प्रभाव ही कुछ ऐसा था। भदावर को ठण्ड के कारण लघुशंका लगी। बस फिर क्या था लगे खोजने शौचालय। मैदान की बाई ओर मंत्री जी के मंच के पास लोगों से पूछ-पूछकर पहुँचे। लघुशंका करते वक़्त भदावर ने मंत्री जी के अंगरक्षकों की बात सुन ली। चुप-चाप साँस रोके हुए वहाँ से पतली गली से निकल गए। जाकर अज़ीम से बोला-‘भाई पता है मंत्री जी छुपकर बर्गर वडा-पाँव खा रहे है। ’
अजीम उसे अपनी वाणी धीमे करने का इशारा करते हुए कहता है। ‘तुम्हें कैसे पता चला और तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हों?’
भदावर –‘ मैंने मंत्री जी के अंगरक्षकों की बात सुनी कह रहे थे की अगले 10 मिनट मैं कोई पार्सल पीछे के रास्ते आएगा उसमें मंत्री जी का भोजन है। वो उन्हें लेना है ताकि मंत्री जी आराम से वो भोजन कर सकें। ’
अजीम-‘ और ऐसा उन्होंने एक दूसरे को शौचालय के पास ही आकर क्यों बोला ?’
भदावर-‘ वो लघुशंका कर रहे थे उनकी बातों से प्रतीत होता था वो जल्दी में थे ताकि उनका पार्सल ना छूट जाए। मैंने ये सब सुन लिया और दबे पाँव वहां से सरपट भाग लिया। ये कैसा सत्याग्रह जिसमें सत्य ही नहीं दुनिया को दिखा रहे हैं की अन्न का एक दाना भी ग्रहण ना करेंगे और इधर ये हाल है। ’
अजीम –‘ हाँ-हाँ ज्यादा ज्ञान ना बाटों अगर कर भी रहें है तो हमे क्या ? वो हमारे लिए बैठे हैं सरकार के इस द्विमुखी फरमान के खिलाफ़ उनके साथ होने से दबाव पड़ेगा और हमारी माँगे सुनी जाएँगी। ये बातें हमसे तो करदी सही है पर किसी और से मत कहना तुम्हारी जान पर बन सकती है हजारों लोग तुम्हारे खिलाफ हो जाएँगे। सामने बैठे इन लोगों की मंत्री जी के प्रति निष्ठा का भाव देखो। क्या वो तुम्हारी सुनी हुई बातों पर यकीन करेंगे ? कतई नहीं। ये सारे नेता-अभिनेता भी तो हमारे जैसे ही इंसान है जैसे हमारे मन में राग-द्वेष है वैसे ही उनके आचरण है। इसलिए सिर्फ चुप चाप साथ दो एक सच्चे दोस्त की तरह। ’
भदावर इस लंबे चौड़े बयान के बाद कोई बहसा-बहसी नहीं करना चाहता था। ज़हन में बहुत कुछ आया पर मुख पर कुछ नहीं।
अजीम इस लंबी चुप्पी को तोड़ने के लिए भदावर से उसके बचपन के बारे में पूछना शुरू करता है वो भदावर से कुछ दिनों पहले ही मिला था मित्रता घनिष्ठ करने के लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिलता।
अजीम –‘ कहाँ के रहने वाले हों और यहाँ कैसे पहुँचे?’
भदावर –‘ हम लमजुंग, नेपाल के निवासी थे पर काम के खोज में भटकते-भटकते यहाँ आ पहुँचे। ’
अजीम-‘ अरे हमे लगा तुम बंगाल या मणिपुर साइड के हो पर तुम तो दूसरे देश के निकले चलो तुम पर इसका इतना प्रभाव नहीं पड़ेगा पर फिर भी तुम्हें काफी राहत मिलेगी इसके हटने के बाद। ’
भदावर-‘ तुम कहाँ से हो ?’
अजीम-‘ हम बांग्लादेश के बोगरा जिले से हैं। तुमने कभी अपने माता-पिता के बारे में नहीं बताया ?’
भदावर-‘ वो दोनों अब इस दुनिया में नहीं रहे। ’
अजीम-‘मतलब’
भदावर-‘ 25 अप्रैल 2015, को लगभग दोपहर के 12 बज़े बहुत जोर का भूकंप आता है। यह जलजला इतना तीव्र था की पलक झपकते ही आँखों के सामने अंधेरा छा गया। माता जी उस वक्त हमारे लिए खीर बना रहीं थी और हम पिताजी के साथ सुबह के नाश्ते का इंतज़ार कर रहे थे।
कुछ घंटो की मशक्कत के बाद जब मुझे होश आया तो मैंने अपने सामने माता-पिता को मृत पाया। चिकित्सक ने बोला की मुझे लगभग दो दिन बाद होश आया और मेरे पिता जी ने आज सुबह अपने प्राण त्यागे जबकि माताजी की मृत्यु उसी वक्त हो गयी थी। मेरे बचने का कारण मेरे माता-पिता ही थे उन्होंने भूकंप के वक़्त मुझे ढक लिया था ताकि ज़्यादातर मलबा मेरे सिर पर न लग सके। हम सिर्फ 12 साल के थे उस वक्त मूक दर्शक बनकर देखते रहे ये सब और कुछ कर भी ना सके।’ यह कहकर भदावर की आँखें नम हो गई और उसके नेत्र से अश्रुधारा बह निकली।
अजीम -‘ हम तुम्हारे लिए दुखी है। ’
दो मिनट के बाद अज़ीम ने फिर चुप्पी तोड़ी और बोला –‘ तुम फिर यहाँ तक कैसे पहुँचे?’
भदावर-‘ लगभग दो हफ्ते बाद 12 मई को फिर से भूकंप आता है इस बार दोपहर के एक बजे 7.3 पैमाने पर ये मेरे होश में दूसरा था लेकिन देश का तीसरा। जितनी भी देश भर में राहत सामग्री थी सभी अस्पताल मंदिर , स्तूप सब धराशाही हो गए गाँव के गाँव पाताल में समा गए। लाखों लोग मारे गए करोड़ों मेरे जैसे बेघर हो गए। जो लोगों का उपचार करते वो खुद उपचार के लिए तड़प रहे थे। एक शहर से दूसरे फिर दूसरे से तीसरे तीसरे से चौथा। हमे अगवा कर भारत लाया गया कुछ गुंडों द्वारा सभी ने नकाब पहने हुए थे। उन्होंने हमे लाकर यहाँ बेच दिया। ऐसे लाखों बच्चें और औरतों को अगवा कर भिन्न-भिन्न देशों में बेचा जाने लगा। फिर जिस मालिक को हमें बेचा गया वो हमें मारता पीटता और लोगो के सामने ज़लील करता था। मौका पाकर एक दिन उसकी कैद से बच निकले। तब से छोटे-मोटे काम करके हम अपना पेट पालते है। ’
अज़ीम ने उसे गले से लगा लिया। फिर कहा –‘चल मेरे चीते बहुत बहादुर है तू। ’
इतने भर में एक पत्रकार की नज़र भदावर पर पड़ती है –‘ भाई, कौन जात हो तुम?’
भदावर –‘ भूख। ’
पत्रकार अचम्बित रह गया उसे बेईज्ज़ती सी महसूस हुई फिर नज़रंदाज़ करते हुए उसने पूछा –‘ नाम क्या है तुम्हारा ?’
‘भदावर’
पत्रकार-‘ आपकी आँखों में आँसू क्यों है ? ज़रुर आप आहत होंगे इस फैसले से ?’
भदावर-‘ हमे नहीं पता। ’
पत्रकार-‘ तो जैसा की आप देख सकते है ऐसे फरमान से हमारे साथी अपनी स्थिरता खो बैठे है। कौन देश से आये है आप ? और यहाँ पर कैसे आये ?’
भदावर-‘ हम नेपाल से है 2015 के भूकंप ने हमारा हमसे सब कुछ छीन लिया था रोते-गाते बचते-बचाते काम की खोज में हम यहाँ पहुँच गए। ’
पत्रकार-‘ तो मैं अपने श्रोतागणों से कहना चाहूँगा की लोग कई बार मज़बूरी और त्रासदी के कारण भी सीमा लाँघ कर आ जाते है। जी आप कितने साल के हैं और कब भारत आए ?’
भदावर-‘ हम 16 के है और लगभग 12 के होंगे जब हमे भारत लाया गया। ’
पत्रकार-‘ लाया गया ? मतलब ?’
भदावर-‘ हमे अगवा कर भारत लाया गया वरना हमे सरहद का क्या भान। किसी तरह से जान बचाकर हम यहाँ अपना पेट पालते है। ’
पत्रकार-‘क्या? तो अपने उन्हें सजा दिलाई ?’
भदावर-‘ हमे उनमें से किसी के बारे में नहीं पता क्योंकि वो खुफ़िया तरीके से अपने कार्य करते है। एक कड़ी को अपनी अगली व पिछली कड़ी के बारे में कुछ ज्ञात नहीं होता। ’
पत्रकार-‘ देखिये ये कितना दुखद घटना है। पर आप तो उन देशों से नहीं है जिनसे लोगो को वापिस भेजा जा रहा है। ’
अज़ीम बीच में बात काटकर कहता है –‘ अगर भदावर जैसा कोई इन 3 देशों से हुआ तो ?’
अजीम की बात सुन पत्रकार को लगा की उसे मसाला मिल गया अब वह इसकी अपने मुख्य कार्यक्रम में रिपोर्ट करेगा। वह वहां से चल देता है।
अजीम-‘ इससे बच के रहना ये फिर आ सकता है तुम्हारे पास। ’
एक हफ्ते बाद
मंत्री जी की धीरे-धीरे हालत बिगड़ रही थी लेटे-लेटे उनकी सेहत में गिरावट आने लगी, ताकत बचाने के लिए वे हमेशा शांत रहते और जनता में रोष उग्र होने लग गया। जो शांति रूप से चल रहा था वो उग्र हो चला बसे फूक दी गई। मामले को हाथ से निकलता देख पुलिस ने सब तरफ से घेराबंदी कर दी। घेराबंदी होते देख नेताजी लड़की का कपड़ा पहन कर भाग खड़े हुए वहाँ से और किसी तरीके से ये रोष समाप्त हुआ। बाद में जब अस्पताल लाया गया तो बताया गया वे फूड-पोइसोनिंग के शिकार है। बस फिर क्या शहर भर में हाहाकार मच गया की ये कैसे हो सकता है।
2 साल बाद
तीन महीने तक ठेकेदार से पगार ना मिलने पर सभी मज़दूर हड़ताल पर चले गए। भदावर भी उनमें से एक था।
अज़ीम –‘ ठेकेदार साहब हम मज़दूर आदमी है दिहाड़ी पर जीते है अगर पगार नहीं मिलेगी तो हम कैसे अपना गुजर-बसर करेंगे ?’
ठेकेदार –‘ देखो ! सबको सबके पैसे मिल जाएँगे दो-तीन दिन लगेंगे बस। ’
हर मज़दूर की लगभग ऐसी ही अनुनय-विनय करने पर भी ठेकेदार बारी-बारी से टरका देता। 10-15 दिन तक जब पगार नहीं मिली तब मज़दूर आग बबूला होने लगे।
ठेकेदार –‘ श्याम और वेणु जाकर इन मज़दूरों की अच्छे से सुताई करो। बड़े दिन से सरदर्द का कारण बने हुए है। ’
ठेकेदार की बात सुनकर दोनों बाउंसर धरनास्थल पर उत्पात मचाने लगे। एक-एक करके सारे मज़दूरों को डंडो से मारने लगे। ये सब देख कर भदावर का खून खौल उठा। उसने पास में रखी दो ईंट उठाई और दोनों के सर पर दे मारी जब तक की दोनों बाउंसर बेहोश नहीं हो जाते। उनके माथे और सर से खून का बहुत तेज़ी से रिसाव हो रहा था।
भदावर ने तेज़-तर्रार नज़रों से ठेकेदार को देखा और ईंट लेकर उसकी तरफ दौड़ा। ठेकेदार ने जैसे ही भदावर को अपने पास आता देखा तो उसे सांप सूंघ गया। डर के मारे उसने अपनी पिस्तौल निकाली। पिस्तौल को निकलता देख भदावर ने ईंट फेंककर उसके हाथ पे मारी। ईंट की चोट से ठेकेदार के हाथ से पिस्तौल गिर गयी। पिस्तौल को गिरा देख भदावर तेजी से छलांग लगा कर पिस्तौल को अपने हाथों में लेकर सीधे ठेकेदार के सामने आ खड़ा होता है।
गोली तनी देख ठेकेदार सहम जाता है और कहता है –‘ भ-भ –भ –भदावर हमे जाने दो दरअसल बात ये है की ऊपर से ही पैसा नहीं पहुँचाया गया है। जब हमपर आयेगा तभी तो हम देंगे वैसे भी आर्थिक-मंदी के कारण बिल्डर पैसे नहीं दे रहा उसे पहले काम चाहिए फिर वो पैसे देगा।
अगर ये काम खत्म हो गया तो हम खुद तुम्हें आकर पैसा देंगे। ये हमारा वादा है। ’
भदावर-‘ मज़दूर हूँ मजबूर नहीं। समझ ले ठेकेदार। ’
भदावर की वीरता देख सबने उसे खूब सहारा उसे लेबर यूनियन का उपाध्यक्ष बना दिया गया।
उपाध्यक्ष जैसे बड़े पद की गरिमा रखने के लिए उसने लोक विज्ञान पढ़ना शुरू किया। चाणक्य नीति, विदुर नीति, महात्मा गाँधी की जीवन शैली, मार्टिन लुथेर किंग, कार्ल मार्क्स, ओशो, 48 लॉस ऑफ़ पॉवर, एक से बढ़कर एक किताबें। वह समय के साथ लोक-व्यवहार में निपुण होता चला गया।
10 साल बाद
अजीम –‘ क्या तुम सही फैसला ले रहे हो भदावर। आगे मज़िले बहुत मुश्किल है। तुम कोई पार्टी ज्वाइन कर लेते। तुम्हें अच्छा-खासा सपोर्ट मिलता। ’
भदावर-‘ जहाज़ सबसे ज्यादा सुरक्षित बंदरगाह पर रहता है। तूफानों से बचा रहता है पर ये जहाज़ का कार्य नहीं है। उसे तो भंवर से टकराना ही होता है लोगों से दूजे पार पहुँचाना ही होता है। ’
अज़ीम-‘ जैसी तुम्हारी मर्ज़ी जनता इंतज़ार कर रही है तुम्हारा बाहर। ’
भदावर मंच पर जाकर बोलता है –‘ क्या आप खड़े है न्याय के साथ ? क्या आप खड़े हैं अत्याचार करने वालों पर पूर्ण विराम लगाने के लिए ? क्या आप मिलकर इस शहर की आबों-हवा बदलने में मेरी मदद करेंगे। मैं जानता हूँ दिल्ली बहुत दिलेर है। ’
