सरकारी लाइसेंस
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सिद्धांश एक दिन अपने पुराने शिक्षक से उनके घर पर मिला। उसने बड़े ही अदब से उनके पैर छुए, शिक्षक ने पूछा- 'और क्या चल रहा है?'
उसने बड़े सहजता से जवाब दिया कि "आचार्य जी एक कम्पनी में सुपरवाइजर की नौकरी मिली है, नून - लकड़ी का अच्छा इंतज़ाम हो गया है तो सोचा आपका आशीर्वाद ले लूँ।"
"अरे! यह तो बहुत अच्छी बात है, खुश रहो, हें हें हें...."
तभी ड़ोरबेल बजी.. किर्रररररर....
"पिता जी कोई आया है 'गाड़ी' से, लगता है पुलिस है"
"प्रणाम गुरू जी, मैं हूँ संतोष राठौड़।"
शिक्षक मुक्तेशवर जी ने कहा- "हाँ-हाँ, संतोष,और क्या हालचाल?"
"बढ़िया, इसी शहर में तबादला हुआ है, सी.ओ. की पोस्ट पर, आपकी याद आई तो चला आया।"
"बड़ा अच्छा किया।" सिद्धांश जो अभी-अभी आया था उसने कहा-"आचार्य जी अब चलता हूँ,बाद में आऊँगा।"
" ठीक है, अरे,संतोष के लिये चाय-पानी का इंतज़ाम करो, विनय!...सुक्खन के यहाँ से खस्ता वाली 'न म की न' तो ले आओ मेरा प्रिय शिष्य आया है।"
