स्नेह का सम्बंध

स्नेह का सम्बंध

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"सुनो जी,लड़के वाले बड़े चालाक हैं,कहते हैं दहेज भी नहीं चाहिए और शादी भी अच्छे से होने चाहिए ।" कहते हुए दीनानाथ जी की पत्नी जैसे ही किचन की ओर मुड़ी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दिया।

दीनानाथ जी जैसे ही दरवाजा खोले सामने होनेवाले समधी साहब अभिवादन की मुद्रा में खड़े मिले।

"अरे !समधी साहब आप?आइए-आइए बैठिए,---"सुनती हो सुनीता ,देखो कौन आए हैं",दीनानाथ जी ने पत्नी को आवाज लगाई।

"अरे नहीं आपलोग परेशान मत होइए,मैं बैठने नहीं आया,बल्कि ये कहने आया हूँ कि शादी में अतिरिक्त खर्च करने की आवश्यकता नहीं है।मिलकर खर्चे जोड़ लेते हैं और आपस में खर्च शेयर कर लेते हैं,ताकि किसी पर भार न होने पाए।जब बेटा -बेटी को हम समानता का दर्जा देते हैं,तो शादी-विवाह पर सिर्फ बेटी का पिता ही क्यों परेशान हो।विवाह सौदे का नहीं स्नेह का संबंध है।"

इतना सुनकर दीनानाथ जी और उनकी पत्नी की आंखों से खुशी के आँसू निकल पड़े।



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