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Ayush Jain

Children Stories

4  

Ayush Jain

Children Stories

समसुद्दीन

समसुद्दीन

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समसुद्दीन, जिससे लक्ष्मीपुरा के सारे बच्चे डरते भी थे और नफ़रत भी करते थे । कहने को तो वह एक सरकारी स्कूल का चपरासी था मगर मोहोल्ले मैं उसका अलग ही ख़ौफ़ था । 


स्कूल के पिछवाड़े से सटी एक सुनसान सड़क जो उन दिनो मोहोल्ले के बच्चों का क्रिकेट मैदान हुआ करता था । यूँ तो बहुत सारे नियम हमारे अपने थे पर एक नियम जो सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण था वो यह था कि अगर गेंद स्कूल में गयी तो मारने वाले को नयी गेंद लानी होगी क्यूँकि फिर वो गेंद कभी वापस नहीं आएगी ।


उस रोज़ दोपहरी आग बरसा रही थी और रोज़ की तरह हमारा क्रिकेट मैच चालू था, मैं तब १३ बरस का था और एक अच्छे खिलाड़ी के रूप मैं जाना जाता था । अंतिम ओवर चल रहा था और हमें बस १० रन ही चाहिये थे, पहली गेंद मेरे साथी से मिस हो गयी, मैं उसके पास गया और उसको कहा की मुझे स्ट्राइक दे । अगली गेंद पर उसने १ रन भागा और अब ४ गेंदों पर चाहिए थे ९ रन, एक और अच्छी गेंद आयी जो मुझसे मिस हो गयी । अब मुझपर दबाव बढ़ रहा था । अगली गेंद पर मैंने आगे बढ़कर गेंद को ६ रन के लिए मारने की कोशिश की पर गेंद ठीक से बल्ले पर नहीं आयी और सीधा स्कूल मैं चली गयी और हम मैच हार गए । 


अभी तो असली चुनौती शुरू ही हुई थी, मेरे पास २ रुपए नहीं थे की मैं नया गेंद ला सकूँ । मैंने एक योजना बनायी और बोला मैं गेंद अंदर से लेकर आऊँगा जो उस दिन से पहले कभी हुआ ही नहीं था । सब लोग मुझे आँखें फाड़ फाड़ कर देखने लगे, ६ फ़ीट की दीवार, एक लोहे का दरवाज़ा, एक तरफ़ समसुद्दीन जो बाहर ही खटिया डाल कर सो रहा था और दूसरी तरफ़ नयी पीली टी शर्ट और काले नेकर मैं खड़ा में । गेंद उसकी खटिया के पास दीवार से सटे मटके के पास पड़ी थी । चुनौती बड़ी थी मगर साहस मेरा भी कम नहीं था ।


तीन दोस्तों के कंधे के सहारे मैं दीवार फाँदने को तैयार था, जैसे ही मैं दीवार फाँदा, ज़मीं पर पड़े सूखे पत्तों की ज़ोर से आवाज़ हुई और मेरी साँसे थमने लगी, कुछ पल मानो सब रुक सा गया, तभी दरवाज़े से झांक रहे मेरे दोस्त ने मुझे आगे बढ़ने का इशारा दिया और मैं हल्के हल्के कदमों से आगे की ओर बढ़ा, अब गेंद मेरे सामने थी और समसुद्दीन खटिया पे सो रहा था, अब मेरे हीरो बनने का समय आ चुका था, मैं आगे बढ़ा जैसे ही मैंने गेंद उठाकर बाहर फेंकी, तभी एक छोटी सी कील पर टंगा लोटा मेरे हाथ से लग कर गिर गया और समसुद्दीन जाग गया, मेरी जान मेरे हाथ पे आ चुकी थी, डर से चेहरा लाल और माथा पसीने से भर गया था तभी मुझे बाहर से आवाज़ आयी "भागो" और मैं सीधा दरवाज़े की तरफ़ दौड़ा, पीछे मुड़कर देखा तो समसुद्दीन हाँथ मैं बांस का डंडा लेकर पीछे दौड़ रहा था, मैं उस दिन एक अलग ही रफ़्तार मैं भाग रहा था, मैं जल्दी जल्दी दरवाज़े पे चढ़ा और दूसरी तरफ़ कुंदने को ही था कि मेरी टी शर्ट दरवाज़े के ऊपर लगे नुकीले हिस्से मैं फँस कर फट गयी । मगर मैं बाहर आ चुका था और समसुद्दीन हार चुका था । 


मैं उस दिन का हीरो बन गया ।


उस दिन के बाद भी ज़िंदगी ने आज तक कई समसुद्दीनों से मिलाया पर मैं अपने साहस से हमेशा ही जीतता आया ।आपके रास्तों मैं भी कई समसुद्दीन आए होंगे या आगे आएँगे आपको हमेशा साहस से काम लेना होगा और बिना रुके आगे बढ़ते रहना होगा ।



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