Om Narayan Aasmaan

Children Stories

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Om Narayan Aasmaan

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शेर बाबा

शेर बाबा

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बहुत समय पहले की बात है। एक शेर था। वह बहुत सज्जन था। वह तब तक शिकार नहीं करता था जब तक बहुत जरूरी न हो जाए। ऐसी बात नहीं थी की वह डरपोक और कामचोर था बल्कि वह सारे जानवरों को अपने ही जैसा समझता था। जहाँ सारे शेर अपने आपको शेर कहने में गर्व महसूस करते और सारे जानवरों को तुच्छ समझते थे। वहीं वह कभी अपने आप को दूसरे जानवरों से अलग नहीं समझता था। और यही सोचता था कि सबका अपना अलग - अलग महत्व है और सभी को भगवान ने किसी न किसी मकसद से बनाया है। उसने तीन नियम बनाए थे जिसका वह सख्ती से पालन करता था और दूसरों को भी पालन करने के लिए कहता था। पहला नियम यह था कि कभी माँ और बच्चे का शिकार मत करो? इसके पीछे उसका तर्क था कि माँ का शिकार करने से बच्चा भूखा मर जाएगा। फिर आने वाले समय में भोजन के लिए प्रॉब्लम आएगी क्योंकि जब बच्चे ही नहीं बचेंगे तो जानवर कहाँ से मिलेंगे। और जहाँ तक बच्चों की बात है वे बहुत मासूम होते हैं। उन्हें अपना हित और दुश्मन कुछ पता ही नहीं होता। वो अपने शिकारी को ही अपना माँ और बाप समझने लगते हैं और उसके बाद भी उन्हें कोई मार दे तो उससे बड़ा कायर कोई हो ही नहीं सकता। दूसरा नियम यह था कि भोजन को बर्बाद मत होने दो। जितना खा पाओ उतना खाओ और बाकी दुसरे को खा लेने दो। नहीं तो बचा हुआ भोजन ख़राब हो जायेगा। और दुसरे जानवरों के खिलाने से फायदा यह रहेगा कि खाने के बाद वो जानवर शिकार नहीं करेगा जिससे आने वाले समय में भोजन की दिक्कत नहीं होगी। तीसरा नियम यह था कि आपस में मत लड़ो और एक दूसरे की मदद करो और उन शेरों को भी भोजन उपलब्ध कराओ जो बूढ़े हैं और शिकार नहीं कर सकते। इन तीनों नियमों का पालन केवल वही करता था। दूसरे शेर किसी भी नियम का पालन नहीं करते थे। वे नियम के पालन करने का ढोंग जरूर करते थे और कभी नहीं कहते थे कि वे गलत करते हैं। लेकिन जब वह नहीं होता था तो गलत करने से नहीं चूकते थे। चूंकि शेर बाबा उनको अपने सामने गलत करते देखता नहीं था इसलिए वह यही समझता था कि सारे शेर उसके द्वारा बनाए गए नियम का पालन करते हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं था। हाँ, सारे शेरों ने उसकी सज्जनता के कारण उसका एक अलग नाम जरूर रख दिया था। जो था 'शेर बाबा'।

        

एक दिन शेर बाबा शिकार की तलाश में निकला। खोजते - खोजते काफी टाइम बीत चुका था। भूख बहुत तेज लगी थी। शरीर भी थक चुका था इसलिए वह एक जगह बैठ गया। तभी उसे एक बंदरिया दिखाई दी जो एक बेर के पेंड़ के नीचे गिरे हुए बेर को उठा - उठा कर खा रही थी। शेर ने आस पास देखा तो कोई नहीं था। वह चोरी - चोरी आगे बढ़ने लगा और जैसे ही वह उसके नजदीक पहुँचा तुरंत झपट्टा मारकर गर्दन दबोच लिया। दो मिनट भी नहीं लगा कि वह मर गई। फिर वह उसको वहीं खाने लगा। जब भूख शांत हो गया तो उसने सोचा कि अब इसको ले जाकर उसे उन दोनों बूढ़े शेरों को दे देना चाहिए जो शिकार नहीं कर पाते। वे भी भूखे होंगे, खाएंगे तो उनका भी पेट भर जायेगा। वह शिकार को ले जाने के लिए उठाने ही वाला था तभी उसको एक बन्दर का बच्चा उसकी तरफ आते हुए दिखाई दिया। जो उसी बंदरिया का था जो पेंड़ के पीछे एक पानी के गड्ढे में पानी पीने के लिए गया था। बंदर के बच्चे को देखते ही वह समझ गया कि उसने इस बच्चे की माँ को मार दिया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने इतना बड़ी भूल कैसे कर दिया। वह कैसे आज उस बच्चे को नहीं देख पाया और उसकी माँ को मार दिया। वह दूसरे शेरों को समझाता था आज उसने वही गलती खुद कर दी। वह दुसरे शेरों को क्या जवाब देगा? बच्चे को पास आता देख वह शिकार को वहीं छोड़कर एक जगह जाकर छिप गया। बच्चा आया। अपनी माँ को उस हालत में देखकर वह कुछ समझ नहीं पा रहा था कि उसकी माँ को क्या हो गया? । आस - पास खून बिखरा पड़ा था। शरीर का आधा पार्ट खाया हुआ था। वह अपनी माँ को उठाने का प्रयत्न करने लगा मानो कह रहा हो कि वह पानी पीकर आ गया, उठो अब कहीं और चलो। लेेेकिन उसे कोई रेस्पॉन्स नहीं मिल रहा था। वह यही बार - बार कर रहा था। शायद उसे लग रहा था कि ऐसा करने से वह उठ जाएगी लेेेकिन उसे नहीं मालूम था कि वह मर चुकी है और अब नहीं उठेगी।                       

शेर बाबा को यह दृश्य बहुत दर्दनाक लगा।

वह सोचने लगा कि अब बच्चे का क्या होगा? अब इसे कोई जानवर मार देगा और यदि जानवर से बच गया तो भूखा मर जायेगा और इसका जिम्मेदार वही होगा। क्या वह इस बच्चे की मौत का जिम्मेदार बनेगा? नहीं ! तो क्या करेगा? वह इसको पालेगा। इसलिए वह बच्चे को उठाया और पालने के लिए ले आया।

                               

 जैसे ही वह अपने स्थान पर पहुँचा। बाकी शेर बंदर को खाने के लिए दौड़े। बंदर शेर बाबा के पीछे छिप गया। लेकिन फिर भी वे सब नहीं मानें और उसे खाने के लिए दहाड़ते हुए आगे बढ़ने लगे।यह देखकर शेर बाबा बाकी शेरों को बोला, "अब एक कदम भी कोई आगे बढ़ा तो ठीक नहीं होगा।"


तभी एक शेरनी बोली, " इसका मतलब तु इस बच्चे को अकेले खायेगा। लेकिन पहले तो तु कह रहा था कि किसी के बच्चे को खाना सबसे बड़ी कायरता होती है। आज तु खुद इसे खाने के लिए लाया है। कहाँ चली गई तेरी बहादुरी? "


 " मैं इसे खाने के लिए नहीं लाया हूँ, मेरी बात समझने की कोशिश करो ", शेर बाबा बोला.


"खाने के लिए नहीं लाया है तो इसको किस लिए लाया है? आखिर यह हमारे किस काम का है?" जंगली बोला।


 शेर बाबा बोला , " बात यह है कि आज मेरे से बहुत बड़ी गलती हो गई। ये बंदर का बच्चा गया था पानी पीने। मैं इसको देख नहीं पाया और इसकी माँ को अकेला जानकर मार दिया। मारने के बाद यह आया और अपनी माँ को उठाने की कोशिश करने लगा। तब मुझे पता चला कि मैंने भूल से इसकी माँ को मार दिया। लेकिन फिर सोचा यदि इस बच्चे को किसी ने पाला नहीं तो ये मर जाएगा इसलिए मैं इसको पालने के लिए उठा लाया।


" वाह भई वाह! तु कैसा जानवर है? पहले कहता है कि उस जानवर को नहीं मारना चाहिए जिसके पास बच्चा है। फिर उसको मारता भी है और कहता है कि भूल हो गई। फिर कहता है अब ये बच्चा बिना माँ के मर जायेगा इसलिए इसको पालने के लिए उठा लाया। तु ये सब फालतू में क्यों सोचता रहता है, हमारा काम ही है इन लोगों को मारकर खाना। इससे क्या फर्क पड़ता है किसी के पास बच्चा है या नहीं। हम सब बराबर इनको मारकर खाते रहते हैं। अभी कल इसने ( जंगली की ओर संकेत करते हुए ) एक हाथी के बच्चे को मार कर खाया था। यह चतुर जिसे तुम बहुत शरीफ समझते हो परसों एक हिरन के बच्चे को मारकर खाया था। और मैं खुद उन प्राणियों को खाता रहता हूँ जो पकड़ में आ जाते हैं चाहे वो माँ हो या बच्चा। तुझे क्या लगता था कि हम तेरे से कहते हैं कि हम माँ बच्चे का शिकार नहीं करते हैं तो क्या वास्तव में नहीं करते हैं। हम सब बराबर माँ बच्चों का शिकार करते रहते हैं। हम तो केवल तेरे से झूठ बोल रहे थे। और पता नहीं किस गलत और सही के फेर में तू पड़ा रहता है। तूने इसकी माँ को मार दिया तो इसमें कौन सी गलत बात है, अब उसके बच्चे को भी मार दे और यदि तुझसे नहीं मारा जा रहा है तो मुझे दे दे मैं इसको मारकर खा लूंगा " दुर्जन बोला।


शेर बाबा यह सुनकर बहुत दुखी हुआ और बोला, " मैंने कह दिया है कि मैं इसे पालने के लिए लाया हूँ तो मैं इसे पालूँगा। माना कि तुम सब के लिए कुछ भी गलत नहीं है लेकिन मेरे लिए गलत 'गलत' है और सही 'सही'। मैंने पहले ही इसके माँ को मारकर एक गलत काम कर दिया है, और यदि इसको नहीं पाला तो इसको कोई मारकर खा जाएगा फिर इसकी भी मौत का जिम्मेदार मैं ही

बनूंगा जो मैं नहीं बनना चाहता।


दुर्जन बोला, " लेकिन हम इसे पालने नहीं देंगे क्योंकि ये दूसरी जाति का है, इसके रहने से हमारे बच्चे बंदरों जैसा डरपोक हो जाएंगे। "


शेर बाबा बोला, " कई शेर एक बंदर के साथ रहने से डरपोक हो सकते हैं तो एक बंदर कई शेरों के साथ रहकर निश्चित रूप से बहादुर हो जायेगा। तो इसमें टेंशन लेने की जरूरत नहीं क्योंकि हमारे बच्चे डरपोक नहीं बल्कि यह बंदर बहादुर बनेगा। "


दुर्जन बोला " ज्यादा होशियार बनने की कोशिश मत कर, हम तेरी इज्जत करते हैं तो इसका मतलब ये नहीं तेरे जो मन में आएगा तु वो करेगा। नहीं मानेगा तो हम अभी इसे छीनकर खा जायेंगे।"


शेर बाबा तड़क कर बोला, " तु इसको खायेगा? खाकर दिखा, देख मैं तेरे को न खा जाऊँ तो कहना।"

 चतुर शेर बाबा से बोला, " क्यों इतना तड़क रहे हो, तुम्हें इसको पालना है तो पालो, अब तुम्हें कोई नहीं बोलेगा। लेकिन तड़को मत ।"



फिर वह सारे शेरों को शेर बाबा के पास से दूर भगाया और खुद भी पीछे - पीछे गया। कुछ दूर जाने पर सारे शेरों ने रूक कर चतुर से पूँछा, " जब हम लोग उस बंदर के बच्चे को मारकर खाने जा रहे   थे तो तुमने क्यों मना कर दिया?"

 चतुर बोला , " तुम लोग समझते नहीं हो, लेकिन ये बात तो जानते ही हो कि शेर बाबा आधा पागल है और जस्बाती भी। जो कहेगा वो करके रहेगा। इसलिए मैंने सोचा कि फालतू में खून ख़राब करने से क्या फायदा?

और जहाँ तक उस बंदर के बच्चे की बात है वह तो बिना मारे ही मर जाएगा क्योंकि शेर बाबा के पास दूध तो है नहीं और कोई शेरनी बंदर के बच्चे को दूध पिलाएगी नहीं।


 दुर्जन बोला, " वाह भई! क्या तुमने दिमाग़ लगाया? ऐसे थोड़े ही तेरा नाम चतुर है। हा हा हा हा !"

सारे शेरों ने भी हँसा, " हा हा हा हा , हा हा हा हा , हा हा हा हा !"

            

शेर बाबा बैठकर सोच रहा था कि बच्चे के लिए दूध कहाँ से इंतजाम करे। तभी उसके दोनो शेर मित्र आये जो काफी      बूढ़े थे। शिकार करने में अक्षम थे और जो शेर बाबा शिकार करता था उसी को खाते थे। क्योंकि और कोई अपना शिकार किसी को खाने ही नहीं देता था। पहला मित्र शेर बाबा से पूँछा , " क्या सोच रहे हो मित्र?"

 शेर बाबा बोला, "कहीं से इस बच्चे के लिए दूध का इंतजाम हो जाता तो ठीक था "

पहला मित्र बिला, " ये बहुत आसान काम है यदि कर सकते हो तो बताऊँ "

शेर बाबा बोला, " तुम बताओ मैं इसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हूँ।"

 पहला मित्र बोला, " तुम किसी शेरनी के पास जाओ और बोलो कि वह तुम्हारे बच्चे को दूध पिलाए जिसके बदले तुम उसके बच्चों के लिए मांस का इंतजाम करोगे।"


शेर बाबा बोला, " क्या कोई शेरनी इस बात को मानेगी? जब सभी इस बच्चे के पाले जाने के खिलाफ थीं "

 दूसरा मित्र बोला, " फ्री में कोई नहीं पिलाएगा लेकिन जब बदले में मांस पाने का नाम सुनेगी तो तुरंत तैयार हो जायेगी।

शेर बाबा एक शेरनी के पास बच्चे को लेकर गया। बच्चे को देखकर शेरनी तुरंत समझ गई कि यह बंदर के बच्चे को दूध पिलाने के लिए कहेगा। लेकिन उसने भी सोच लिया था कि वह इसके लिए तुरंत शेर बाबा को न बोलेगी। क्योंकि शेरनी होकर एक बंदर के बच्चे को दूध पिलाना उसके शान के खिलाफ था। शेर बाबा शेरनी से बोला, " तुम मेरे बच्चे को दूध पिलाओ मैं तुम्हारे बच्चे के लिए मांस का इंतजाम करूंगा "

मांस का नाम सुनते ही शेरनी को सौदा करना फायदेमंद लगा लेकिन उसे यकीन नहीं हो रहा था कि क्या वह इतने मांस का इंतजाम कर पाएगा इसलिए वह जोर जोर से हँसने लगी और बोली, " जो अपने खाने के लिए जानवरों का जल्दी शिकार नहीं करता वह हमारे बच्चों के लिए मांस का इंतजाम करेगा। यकीन नहीं होता।"

शेर बाबा बोला, " यह तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मैं जो कहता हूँ वो करता हूँ, तो इसलिए यकीन न करने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है।"


 शेरनी बोली, " बात तो तेरा सही है कि जो तु कहता है वो करता है। ठीक है, मैं तेरे बच्चे को दूध पिलाऊंगी। लेकिन मांस में कमी नहीं होनी चाहिए । जितना मेरे बच्चे खाएंगे उतना तुमको खिलाना पड़ेगा और जिस दिन मांस नहीं मिला उस दिन दूध भी नहीं मिलेगा। "

शेर बाबा शेरनी की बात मान गया।

              

 शेरनी बंदर के बच्चे को दूध पिलाने तो लगी लेकिन उसके साथ वह भेदभाव करती थी। वह हमेशा उसको तुच्छ समझकर उससे घृणा करती थी। उसके बच्चे जब उसके ऊपर लोटते तो तो वह उनको प्यार करती थी लेकिन जब बंदर लोटता तो उसको डांट कर भगा देती थी। वह केवल दूध पिलाने से मतलब रखती थी और बाकी टाइम उसको अपने से दूर ही भगाती रहती थी। वह अपने बच्चों को उसके साथ खेलने भी नहीं देती थी। वह चाहती थी कि उसके बच्चे उससे नफरत करें और ऐसा हो भी रहा था। शेर बाबा शेरनी की इन हरकतों को देखता था लेकिन कुछ नहीं बोलता था।क्योंकि वह समझता था कि दोनों कि जाति अलग थी इसलिए जो चाहिए वो एक्सपेक्ट करना एक बेवकूफी थी। किसी तरह दूध ही मिल जा रहा था वही बहुत था। किसी तरह एक वर्ष बीता। बंदर अब भोजन करने लगा था और दूध पूरी तरह से छोड़ चुका था।अब बंदर केवल खेलने के लिए शेरों के बच्चों के पास जाता था।

वे सब बंदर को परेशान करते थे लेकिन वह फिर भी जाता था। एक दिन बंदर खेलने के लिए गया हुआ था, सभी शेर के बच्चे इसको पंजा मार - मारकर भाग रहे थे तो इसने भी एक शेर के बच्चे को पंजा मार दिया और एक पेंड़ पर चढ़ गया। यह दृश्य वहीं पास में खडे दुर्जन को नागवार गुजरा कि एक बंदर का बच्चा एक शेर के बच्चे को कैसे पंजा मार सकता है? बंदर तो शेरों का मार खाने के लिए ही बने होते हैं; तो इसका मतलब ये तो नहीं कि अब बंदर भी शेरों को मारें। इसलिए वह अपने घमंड में झट से पेंड़ पर चढ़ गया और बंदर को पकड़ कर लाकर जमीन पर पटक दिया। सारे शेर के बच्चे उसे काट - काटकर भागने लगे। वह खुद भी काट रहा था। बंदर चिल्लाया। आवाज़ सुनकर शेर बाबा आया। पहले वह शेर के बच्चों को वहां से भगाया और फिर तीसरे शेर को पटक कर काटने लगा। इतने में बंदर शेर बाबा के पीठ पर बैठ गया। दुर्जन को पिटता देख उसके मित्र झगड़े को छुड़ाने लगे। दुर्जन बोला, " ये तुमने ठीक नहीं किया,तुमने एक बंदर के लिए मुझको मारा जो दूसरी जाति का प्राणी है और हम तुम्हारे जाति के हैं। क्या तुम इतना भी भूल गए?। शेर बाबा बोला, " ये जानवर तुम्हारे लिए केवल एक बंदर से ज्यादा और कुछ नहीं है लेकिन मेरे लिए मेरे बच्चे से कम नहीं है और जब तक मैं जिन्दा रहूँगा इसे कोई छु भी नही सकता।" 

" तुम देखना इसको मैं जल्द ही मारुँगा, तुम कब तक इसकी रखवाली करोगे। तुम इसकी वजह से हम सबके दुश्मन बने हुए हो इसलिए इसको मार दुँगा तो सारा खेल खत्म हो जायेगा। 'न रहेगा बाँस न बजेगी बांसुरी'।" , तीसरे शेर ने बोला.

               

 शेर बाबा बिना कुछ बोले बंदर को लेकर वहाँ से अपने अड्डे पर चला आया। और सोचने लगा कि इससे पहले वे सब इसको मारें उसे इसे ले जाकर किसी बंदर के ग्रुप में छोड़ आना चाहिए। अब कुछ बड़ा भी हो गया है उनके साथ आराम से रह जाएगा। वैसे भी ये जगह बंदर के लिए ठीक नहीं है। कभी भी कोई शेर इसे मार सकता है और इसके मर जाने के बाद वह क्या कर लेगा ! दुर्जन   सारे शेरों को एकजुट करके बोला, " आज हम एक बंदर की वजह से आपस में लड़ रहे हैं और इस लड़ाई को खत्म करना है तो हमें इस बंदर को मारना होगा। इसलिए उस बंदर के ऊपर हमें नजर रखनी होगी और जैसे ही वह कहीं अकेला मिले उसको वहीं तुरंत मार दो। उसके मर जाने के बाद शेर बाबा कुछ नहीं कर पायेगा। "

 सारे शेर हाँ में हाँ मिलाए। दोनों बूढ़े शेर ये बात जाकर शेर बाबा को बताए। शेर बाबा तुरंत उसको लेकर बंदरो के बीच में छोड़ने के लिए निकल गया। तभी दुर्जन शेर बाबा को ढूंढ़ते हुए आया और उन दोनों बूढ़े शेरों से पूँछा कि वह कहाँ गया। उन दोनों ने जवाब दिया कि वे नहीं जानते। वह हर जगंह ढूंढा लेकिन न शेर बाबा को पाया और न ही

बंदर को। उसने सारे शेरों को यह बात बताई। सारे शेरों ने भी ढूंढा लेकिन कोई नहीं पाया। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह बंदर को लेकर कहाँ चला गया।

 जंगली बोला, " मुझे लगता है कि हमनें बंदर को मारने के लिए धमकी दिया था इसलिए वह उसे कहीं छोड़ने गया होगा।"

  एक शेरनी बोली , " मुझे लगता है कि वह खुद बंदर के साथ यह जगह हमेशा के लिए छोड़कर चला गया।

  चतुर बोला, " वह नहीं जा सकता क्योंकि वह चला गया तो दोनों बूढ़े शेरों को खाना कौन खिलाएगा? वे दोनों भूखे मर जायेंगे और वह उन्हें मरने के लिए कभी अकेला नहीं छोड़

सकता। इसलिए जब तक ये दोनों यहाँ हैं तब तक तो वह कहीं नहीं जा सकता।"

 कुछ समय बाद शेर बाबा एक बंदरो के झुँड के पास पहुँच गया। फिर अपने बंदर को बंदरों के ग्रुप में भेजने की कोशिश करने लगा लेकिन बंदर जाने के लिए तैयार ही नहीं था बल्कि वह उनको देखकर भागता था। ग्रुप वाले सारे बंदर इस बंदर को अपने ग्रुप में लेने के लिए आगे बढ़ रहे थे लेकिन यह बंदर उनसे दूर भाग रहा था। इसलिए शेर बाबा बंदर को वहीं छोड़कर तेजी से भागा और कुछ दूर जाने के बाद पीछे मुड़कर देखा तो बंदर उसे दिखाई नहीं दिया। उसने सोचा कि वह अब आ नहीं पाएगा इसलिए मजबूर होकर उसे बंदरों के साथ रहना पड़ेगा। ग्रुप वाले बंदर उसे अकेला देखकर तुरंत उसे अपने ग्रुप में शामिल कर लेंगे। इसलिए बिना चिंता किये वह घर चला आया।

 जैसे ही वह घर आया, दुर्जन ने उससे पूँछा कि बंदर कहाँ है।

शेर बाबा बोला, " क्या करोगे बंदर को? "

दुर्जन बोला, " तुमसे मैंने पहले ही बता दिया था कि मैं उसे मारकर खाऊँगा। इसलिए आज उसे खाने के लिए ढूढ़ रहा हूँ।"

शेर बाबा बोला, " तुमने उसे मारने में बहुत देर कर दिया। अब तुम उसे भूल जाओ। मैं उसे उसकी जगह पर अभी छोड़कर आ रहा हूँ। अब तुम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।"

दुर्जन बोला, " तुमने ऐसा करके ठीक नहीं किया।"

इतना कहकर दुर्जन अपने ग्रुप के शेरों के पास गया और सबको सारी बात बताई। सारे शेरों ने कहा कि अब उन्हें उसे भूल जाना चाहिए क्योंकि अब वह मिलेगा है नहीं, कहाँ - कहाँ वे सब उसे ढूढ़ेंगे ?

              

 कुछ घंटे बीते ही थे। शेर बाबा का एक बूढ़ा मित्र और शेरनी का एक बच्चा जिसके साथ बंदर दूध पीता था साथ में घूम रहे थे। तभी शेरनी का बच्चा एक बंदर को देखा और पहचान गया। यह वही बंदर था जिसे शेर बाबा छोड़ कर आया था।

वह बूढ़े शेर से  बोला, "अंकल देखो वह बंदर यहाँ घूम रहा है। पकड़ो उसे।"

 बूढ़ा शेर जैसे ही उसे देखा, सोचने लगा , " इसे तो शेर बाबा बंदरों के पास छोड़कर आया था तो यह कैसे यहाँ आ गया? कहीं ऐसा तो नहीं यह वहाँ से वापस आ गया।"

फिर दिमाग दौड़ाया और समझ गया, " यह वही बंदर है। यह शेर बाबा के बिना नहीं रह पाया होगा और उसे खोजते - खोजते यहाँ वापस आ गया। इससे पहले बाकी शेरों को पता चले उसे शेर बाबा को ये बात बता देनी चाहिए नहीं तो इन सबको पता चल गया तो ये सब उसको मारकर खा जायेंगे।"

वह जैसे ही दौड़ा शेर बाबा को बताने के लिए तुरंत शेरनी का  बच्चा पूँछा, "अंकल आप उसे पकड़ोगे नहीं?"

 बूढ़े शेर ने बोला, " पहले जाकर दूसरे शेरों को भी बुला लाएं फिर हम सब साथ में पकड़ेंगे। "

इतना कहकर बूढ़ा शेर तेजी से शेर बाबा की ओर भागा। बूढ़े शेर को भागते देख शेरनी का बच्चा बोला, " मैं भी जा रहा हूँ सबको बताने।"

 इधर बूढ़ा शेर शेर बाबा को बंदर के वापस आने की जानकारी दिया। उधर शेरनी के बच्चे ने भी सारे शेरों को बंदर के वहाँ होने के बारे में बता दिया।

दुर्जन ने सारे शेरों से बोला, " शेर बाबा उस बंदर को छोड़ आया था। लेकिन फिर भी बंदर वापस आ गया। इससे यह साफ पता चलता है कि भगवान ने हमें दोबारा मौका दिया है उस बंदर को मारने का। इसलिए इस बार हमें यह मौका जाने नहीं देना है चाहे इसके लिए हमें शेर बाबा को ही क्यों न मारना पड़े।"

जंगली बोला, " हम एक बात अच्छी तरह से जानते हैं कि वे दोनों बूढ़े शेर शेर बाबा के साथ रहते हैं इसलिए यह हो सकता है कि वे हमारा साथ न दें और उसका साथ दें तो क्या करोगे?

चतुर बोला, " वे दोनों हमारे साथ हैं या शेर बाबा के साथ आज सब पता चल जाएगा। अगर उसका साथ देंगे तो वे भी मारे जाएंगे। दुर्जन , " तुम सही कह रहे हो चतुर। जो भी बंदर को बचाने के लिए बीच में आएगा वह मारा जाएगा। अब देर मत करो। बंदर को  पकड़ने के लिए दौड़ो नहीं तो शेर बाबा दोबारा उसे कहीं छोड़ आएगा।"

सारे शेर बंदर को पकड़ने के लिए दौड़ने लगे जिसमें दुर्जन सबसे आगे था। इधर से शेर बाबा बंदर को बचाने के लिए दौड़ा। दुर्जन बंदर के पास पहुँचने ही वाला था कि शेर बाबा बंदर को उसके आगे से झपट लिया और आगे बढ़ गया। दुर्जन शेर बाबा का पीछा करने लगा। दुर्जन को रोकने के लिए दोनों बूढ़े शेर उसका पीछा करने लगे। और बाकी शेर बूढ़े शेर के पीछे थे जो बंदर को शेर बाबा से छीनने के लिए दौड़ रहे थे और सोच रहे थे कि बूढ़े शेर उनके साथ हैं और वे शेर बाबा का पीछा कर रहे हैं। कुछ समय बाद आधे से ज्यादा शेर बहुत पीछे छूट गए इसलिए वो वहीं पर बैठ गए। केवल चार शेर थे जो बूढ़े शेरों के पास पहुँचने वाले थे और दुर्जन शेर बाबा के पास पहुँचने वाला था। लेकिन जैसे ही बूढ़े शेरों ने देखा कि पीछे वाले शेर उनसे आगे निकलने वाले हैं तो वे उन्हें आगे बढ़ने से रोकने लगे। चतुर ने एक बूढ़े शेर से पूँछा, " तू हमारे साथ है तो हमें क्यों शेर बाबा को पकड़ने से रोक रहा है।"

बूढ़ा शेर बोला, " मैं किसी के तरफ नहीं हूँ, मैं केवल सच्चाई की तरफ हूँ।"

इतना कहते ही चतुर समझ गया और बोला, " और सच्चाई शेर बाबा की तरफ है, इसका मतलब उसने तुम दोनों को भी सच्चाई सिखा ही दी। फिर तो तुम दोनों को को खत्म करना जरूरी है, नहीं तो और शेर भी इस सच्चाई के चपेट में आ जाएँगे। और फिर हमारा घर भालू बंदरों का अड्डा

 बन जाएगा।

 फिर वह अपने साथी शेरों से बोला," खत्म कर दो इन दोनों को।"  

साथी शेर उन बूढ़े शेरों को काटने लगे। दुर्जन शेर बाबा से आगे निकल गया और रास्ता रोककर बोला, " अब तु भागकर कहाँ जायेगा, सीधे से बंदर मुझे दे दे।"

 शेर बाबा बोला, " बंदर बाद में लेना पहले तु मेरे से निपट ले, जिन्दा बचा तो ले लेना।"

  दुर्जन बोला, " तु मेरे को क्या मारेगा पहले एक बार पीछे तो देख ले।"

उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि सारे शेर उन दोनों बूढ़े शेरों का गर्दन पकड़कर काट रहे थे और घसीट रहे थे। वह दौड़ा उनको बचाने के लिए लेकिन जब तक वह पहुँचा वे मर चुके थे। अब वह चारों तरफ से घिर चुका था। 

दुर्जन ने शेर बाबा से बोला, " तुम इस बंदर को मुझे दे दो तो हम तुम्हें छोड़ देंगे।"

शेर बाबा बोला, " इस बंदर को बचाने के चक्कर में मेरे दोनों दोस्त मर गए तो तुमने कैसे सोच लिया मैं तुम्हें इसे दे दुँगा? यह तो अब एक नहीं तीन लोगों की अमानत है इसलिए मेरे जीते जी तुम इसको कभी नहीं पाओगे "

चतुर बोला, " ये कभी नहीं सुधरेगा, इसे मारकर बंदर को छीन लो।"

सभी उसे काटने लगे और बंदर को छीनने की कोशिश करने लगे।शेर बाबा बार - बार खुद को सामने करके बंदर को छिपा लेता लेकिन वे सब कुछ देर में शेर बाबा को घायल करके गिरा दिए और बंदर को छीनने लगे। बंदर इन शेरों से डरकर शेर बाबा को कसकर पकड़ा हुआ था और जान बचाने के लिए उससे चिपक रहा था।  शेर बाबा जानता था कि वह मरने वाला है इसलिए उसे अफ़सोस हो रहा था कि वह बंदर को बचाने में फेल हो गया और उसके दोनों मित्र भी मर गए। किसी भी तरफ से उसे उसको बचाने की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी। फिर भी वह दम न होते हुए गिरे अवस्था में भी तेजी से दहाड़ मारकर उसको बचाने के लिए हाथ पैर चला रहा था। उसने तय किया था कि जब तक शरीर में एक भी साँस रहेेगी तब तक वह उसकी रक्षा करेेगा।

 तभी उसी समय उधर से हाथियों का झुंड गुजर रहा था। जैसे हाथियों ने यह देखा कि कई शेर मिलकर एक शेर को काट रहे हैँ  तो वे सब दौड़कर आए और उन दुष्ट शेरों को वहां से भगाकर काफी दूर खदेड़ दिया। चुंकि, हाथी ज्यादा थे इसलिए सारे शेर डरकर भाग गए। शेर बाबा घायल हो चुका था उसका वहाँ से उठने का मन नहीं कर रहा था लेकिन उसने बंदर को अभी सही जगह नहीं पहुँचाया था, इसलिए हिम्मत जुटा कर उठा। हाथियों और भगवान को धन्यवाद बोला और आगे बढ़ने लगा। कुछ दूर जाने के बाद उसे पेंड़ो के पास एक बंदरों का झुंड दिखाई दिया। झुंड को देखकर वह और तेजी से चलने लगा और कुछ ही मिनट में वहाँ पहुँच गया। उसको देखकर सारे बंदर पेंड़ पर चढ़ गए और वहीं से शेर और बंदर को बहुत ध्यान से देखने लगे शेर एक पेंड़ के नीचे बैठ गया। वह इतना घायल हो चुका था कि उसे बैठा नहीं जा रहा था इसलिए वह वहीं लेट गया और फिर कभी नहीं उठा। 


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