सैंडल

सैंडल

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सुबह की चिलचिलाती हैदराबादी धूप में शिखा आज फिर दूर से ही नज़र आ रही थी।एक बड़े से इंटरनेशनल कॉल सेंटर की छोटी सी एम्प्लोई, आज फिर क़दम ताल मिला अपने ऑफिस की ओर बढ़ रही थी।कुछ पैसे बचा लेने के लिए उसका ऐसे पैदल ही ऑफिस आना जाना हुआ करता था।

“अब ऑफिस पहुँचने के बाद तो कुर्सी से उठने का मौका मिलता नहीं है, इस बहाने मैं रोज़ ४० मिनिट ऑफिस तक वाकिंग कर लेती हूँ” ऐसा वो कह दिया करती थी,जब कोई उसे पसीने में लथपथ देख लिया करता था। 

लेकिन आज शिखा लंगडाती हुई ऑफिस आ रही थी। नहीं, कोई चोट नहीं लगी थी, दरअसल उसकी फ़ेवरेट सैंडल टूट गई थी और इस तरह लंगड़ाते हुए ऑफिस आना उस के लिये पब्लिक एम्बेरिस्मेंट का कारण बन गया था। आँख से आंसू आने ही वाले थे कि शिखा ने अपने अमित को फ़ोन लगाया।

अमित, सपनों, आद्रता और चक्काजाम की नगरी, मुंबई में रहता था। दोनों पिछले डेढ़ साल से लॉन्ग-डिस्टेंस रिलेशनशिप में थे। फ़ोन अमित की पेंट की जेब में टुनटुनाता रहा। वो तो किस्मत अच्छी थी कि आगे गोरेगांव का तीन मिनट वाला सिगनल आ गया।

अमित ने तुरंत शिखा को कॉलबेक किया।

अमित ने बोला, क्या हुआ? जैसा कि वो पहले ही जानता था कि हर बार की तरह कोई छोटी सी ही बात होगी जिसे शिखा ऐसे बताएगी कि दुनिया की सबसे बड़ी आफ़त उस पर आई हो।

शिखा ने भी कह दिया, “कुछ नहीं, अभी क्या बताऊँ?” अमित इस “अभी क्या बताऊँ” का मतलब भी अच्छे से समझता था कि वो चाहती है कि उसकी समस्या को ज़रा और ज़ोर देकर पूछा जाए। तो उसने फिर तपाक से कहा

“देखो बताना तो तुम्हें है ही, इस लिए जल्दी बताओ”

शिखा ने अपने बचकाना और थोड़े रोने वाले अंदाज़ में कहा “कुछ नहीं, वो मेरी फ़ेवरेट रेड वाली सैंडल थी न, वो टूट गई“। अमित को बड़े अच्छे से अंदाज़ा था कि इसके आगे ये बात-चीत क्या रूप लेने वाली है।

अमित के पास पहले से ही इस बात का जवाब था – “अच्छा , वो वाली, वो सैंडल पता है तुम्हें क्यों टूट गई?

“क्यों टूट गई मतलब? पुरानी हो गई थी बहुत, घिस गई थी इसलिए टूट गई”

अमित ने कहा – “नहीं, दुनिया में हो रही हर छोटी-बड़ी घटना के पीछे एक ख़ास कारण होता है, कुछ भी बस ऐसे ही नहीं हो जाता।


शिखा बोली, तुम कहना क्या चाह रहे हो?

“यही कि तुम्हारी सैंडल आज इसलिए टूट गई क्योंकि मैं कुछ दिन से सोच रहा था कि तुम्हें क्या गिफ्ट दूं। पता नहीं क्या हुआ, मैं कल ही तुम्हारे लिए ये प्यारी सी सैंडल ले के आया था, और आज देखो तुम्हारी पुरानी सैंडल एक्सपायर हो गई”।

शिखा को यकीन नहीं हुआ, सच्ची?

हाँ मैंने सोचा था सरप्राइज दूंगा, लेकिन अभी तुम्हारी सैंडल टूट गई तो सोचा बता ही दूं। लेकिन मुझे अब समझ आया कि मुझे कल तुम्हारे लिए गिफ्ट लेने का इतना मन क्यों कर रहा था, मैं बोलता हूँ न “आवर लव इज़ डिवाइन” ।

तभी फ़ोन कट गया। नेटवर्क ज़ीरो हो गया था। शिखा चलते चलते अपने ऑफिस की लिफ्ट में पहुँच गई थी। उधर गोरेगांव का सिगनल भी ग्रीन हो गया था और अमित भी आगे निकल पड़ा।

इधर कपिल, शिखा का टीम लीडर, जो रोज़ शिखा के ऑफिस आने का इंतज़ार किया करता था, सीढ़ियों पर सिगरेट फूँक रहा था। शिखा नंगे पैर, हाथ में सैंडल लिए ऊपर आ रही थी।

कपिल ने शिखा को देखते ही सिगरेट बुझा दी। और बड़े अदब से पूछा

“क्या हुआ”?

इस रोज़मर्रा के अनमने सवाल पर सिखा को गुस्सा तो ऐसा आया कि उस टूटी सैंडल से कपिल का मुंह तोड़ दे। लेकिन अपने आप को शिखा ने कंट्रोल किया और अदब की चाशनी में डुबोकर कहा

“दिख नहीं रहा” ?     

‘अच्छा, सैंडल टूट गई है। चलो, पास में ही तो मार्केट है, अभी चलते हैं। आई वुड लाइक टू गिफ्ट यु अ न्यू पेअर ऑफ़ सैंडल”


हा-हा-हा, उसकी अब ज़रूरत नहीं है। तुम्हें पता नहीं ये कोई मामूली सैंडल नहीं है।

मतलब?

अमित ने मेरे लिए कल ही सैंडल ली थी और आज ये टूट गई, इसका मतलब समझे?

"नहीं"

दिस सैंडल इज़ डिवाइन जस्ट लाइक आवर रिलेशनशिप।

क्या बकवास है।।।तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है?

"तुम नहीं समझोगे कपिल" शिखा ने कहा।

मैं समझना भी नहीं चाहता मैं तो बस इतना कह रहा हूँ कि देखो वो वहां मुंबई में है तुम यहाँ। उससे बोलो फ़ास्ट कोरियर कर दे, लेकिन तब तक के लिए तुम्हें मैं एक सैंडल दिला देता हूँ। डिवाइन न सही, कामचलाऊ तो होगी।

नो, अब तो मैं वो ही सैंडल पहनूंगी।

ऐसा कहते हुए, शिखा अपनी डेस्क पर पहुँच गई।

दोपहर में जब लंच टाइम हुआ, तो शिखा ने तुरंत अमित को फ़ोन लगाया। अमित तब एक कांफ्रेंस में था। लेकिन जब शिखा का फ़ोन आया तो उठाना तो पड़ेगा न। वो “एक्सक्यूज़ मी” बोल कर केबिन से बाहर आ गया।

अरे यार, रियली मुझे समझ नहीं आ रहा मैं इतनी एक्साइटेड क्यों हो रही हूँ वो भी एक सैंडल के लिए। तुम प्लीज़ एक काम करो न, सैंडल को जल्दी से कोरियर कर दो न।

शिखा, तुम यार सरप्राइज का मतलब समझती हो?

हाँ, लेकिन।।।

लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। तुम खुद बताओ मैंने यहाँ इतनी मुश्किल से इतनी प्यारी सैंडल तुम्हारे लिए ढूंढी और तुम बोल रही हो कोरियर कर दूँ।।।

तो तुम क्या चाहते हो?

वही जो तुम चाहती हो।

और मैं क्या चाहती हूँ?

तुम! तुम ये चाहती हो कि मैं तुम्हारे सामने और तुम मेरे, और मैं अपने हाथों से तुम्हें ये सैंडल पहनाऊं। बताओ तुम ऐसा नहीं चाहती क्या?

हाँ, मैं चाहती हूँ।

तो फिर किस बात की ज़िद? तुम यहाँ छुट्टी ले कर आ जाओ तब तो असल मज़ा होगा सरप्राइज का।

अमित, आई लव यू।

तभी अमित के बॉस पीछे से आ गये और फ़ोन कट गया।

उधर शिखा सेकेण्ड फ्लोर पर थी, जहाँ पर सामने पारदर्शी कांच था। कांच के बाहर फुटपाथ के पास बड़ी सी फुटवेयर की दूकान थी। कपिल वहां खड़ा था जिसके दोनों हाथों में सैंडल थी।   

कपिल ऑप्शन भी दे रहा था और गुजारिश भी कर रहा था।

लेकिन शिखा ने उसकी तरफ़ पीठ कर ली।

कपिल फ़िर भी भागता हुआ ऑफिस आया।

कपिल, एक काम कर सकते हो प्लीज़?

वही तो कर रहा था,,

अरे सुनो तो, देखो आज थर्सडे है, मैं मंडे तक ऑफिस ज्वाइन कर लूंगी, मेरी प्लीज़ कल की छुट्टी सेंक्शन करा दे यार।

कपिल ने अपने माथे पर हाथ दे मारा।

“अब ये मत कहना कि तुम वो सैंडल लेने के लिए हैदराबाद से मुंबई जाने वाली हो”

शिखा ने मासूमियत से “हाँ” में सिर हिला दिया।


उस रात शिखा को सुकून मिला।

फ्री कालिंग का दौर शुरू हुआ था। कपल सिम मिला करती थी। शिखा हर रात की तरह उस रात भी अमित से बात कर रही थी।

तुमने न इतनी सी चीज़ को ले कर कितना एक्स्साईटमेंट क्रिएट कर दिया है।

इतनी सी चीज़? जब वही चीज़ तुम्हारे पैरों को आराम देती है तो बहुत इम्पोर्टेंट हो जाती है। इतनी सी चीज़ के लिए जब तुम ख़ुद घन्टों विंडो शोपिंग करती हो, तब वो बड़ी चीज़ हो जाती है।

अरे छोडो न, मेरी रात को ट्रेन है, कल तो मैं आ ही रही हूँ। तुम्हारा सरप्राइज भी सरप्राइज ही रहेगा और हम मिल भी लेंगे। एक काम करो न, प्लीज़ तुम अब एट लीस्ट फोटो तो दिखा दो उस सैंडल की।

तुम सच में मानोगी नहीं न?

"नहीं"

एक काम करता हूँ मैं शुरू से शुरू करता हूँ।

"हम्म"     

मैं जब मार्केट गया वहां अजीब सी खुशबु थी। मुझे पता नहीं क्योँ वो एक फूटवेयर शोरूम में खींच ले गई। वहां इतने सारे तमाम तरह के लोग अपनी अपनी पसंद की जूते-जूती अपनी साइज़ और अपनी आमदनी के साइज़ के हिसाब से देख रहे थे। कुछ मॉडल टाइप , कम हाईट की लड़कियां तो इतनी ऊंची-ऊंची हील की सैंडल्स देख रही थीं कि मुझे लगा कि इनकी हील्स के नीचे अगर मैं आ गया तो दब के मर ही जाऊंगा।

शिखा मुस्कुराती है “अच्छा, फिर” 

लेकिन मैंने किसी की तरफ़ नहीं देखा। मैं तो बचते बचाते बस उस सैंडल की ख़ोज में लग गया जो मैं तुम्हें पहने देखना चाहता था। भीड़ से बचते हुए मैं वहां पंहुचा जहाँ एक सैंडल पर सबकी नज़र थी। टाइटेनिक जैसी लाजवाब। मैं उसे छूना चाह रहा था लेकिन डर लग रहा था कि अभी दुकानदार आ कर डांट देगा कि कि मैंने उस पर दाग लगा दिया।


अमित वहां खड़ा था। तभी शिखा कपिल के हाथ में हाथ डाले एक सफ़ेद दरवाज़े से बाहर आई। अमित को समझ नहीं आया कि वो क्या देख रहा है। सैंडल के पास एक सीढ़ी थी। कपिल ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, शिखा ने अपना कोमल नाज़ुक पैर उसके हाथ पर रख दिया और उस सैंडल को ऊपर से निहारा। उसके अन्दर का तलवा एकदम सफ़ेद मलमल की तरह दिख रहा था। शिखा उस सैंडल के अन्दर बड़े आराम से लेट गई और और सो गई। कपिल अमित की तरफ़ देख उसे चिढ़ा सा रहा था।

अमित की नींद खुल गई। पता नहीं कब शिखा से बात करते करते आँख लग गई थी। देखा तो ११:३० बज गए थे। शिखा 1 बजे मुंबई पहुँचने वाली थी। अमित ने अपना फ़ोन देखा, वो भी स्विच ऑफ हुआ पड़ा था। उसने फ़ोन चार्जिंग में लगाया और बाथरूम की तरफ़ फ्रेश होने दौड़ पड़ा।

फेश हो कर लौटते ही उसने शिखा को कॉल किया। शिखा ने बताया उसे ट्रेन 2 घंटे लेट है। अमित तैयार हो कर मार्केट निकल पड़ा। 

अमित जब मार्केट पहुंचा तो कुछ गुम सा गया। इतने सारे इतने प्रकार के सैंडल। ऊपर से तरह तरह के लोगों की चुभती आवाज़ें ।किसी को ये पसंद तो किसी को वो। अमित को तो चक्कर सा आ गया।

उधर शिखा ट्रेन में उत्सुकता के चरम पर थी। उसे अब कोई इंसान दिख ही नहीं रहा था। सिर्फ़ यहाँ से वहां जाते हुए जूते और जूतियाँ। दो फॉर्मल काले रंग के जूते उसके पास आये और उससे टिकिट का पूंछा। जब शिखा ने दोबारा उसकी तरफ़ ध्यान से देखा तो टीटी था। शिखा मन ही मन अपने पागलपन पर मुस्कुरा उठी। वो बस मुंबई पहुचने ही वाली थी।

अमित जैसे तैसे एक स्टोर के पास थोड़ी देर रुका। पानी पी कर थोड़ा फ़ोकस करने की कोशिश की। जब वो पलटा तो देखा पीछे फुटपाथ पर एक ब्रांडेड सेल लगी हुई थी। जिस में एक लाल सैंडल अलग ही चमचमा रही थी।

अमित ने न आव देखा न ताव, सीधे जा कर वो सैंडल ख़रीद ली। देखा तो ज़ेब में उतने ही पैसे थे जितनी सैंडल की कीमत थी। अमित ने सैंडल खरीदी और ऑटो को सीधा सिल्वर बीच की तरफ़ चलने के लिए बोल दिया।

शिखा पहले ही वहां पहुँच चुकी थी। बीच की ताज़ी हवा उसे अमित के आने का एहसास दिला रही थी। अमित का ऑटो सही जगह पर कर रुका, एक एटीएम के पास। अमित ने तुरंत अपने गिफ्ट को एटीएम के ऊपर रखा। ज़ेब से वालेट निकाला उसमे उसका एटीएम था। एटीएम को मशीन में डाला, जितनी ज़रूरत थी उतना कैश निकाला। ऑटो वाले को पैसा दिया और सरपट बीच की तरफ़ भागे।

बीच पर पहुँचते ही यहाँ वहां देखा, शिखा दिखाई नहीं दी। तो अमित ने फ़ोन घुमाया।

कहाँ हो?

"यहीं बीच पे"।

अरे बीच पे तो मैं भी हूँ। बीच पे कहाँ?

"पीछे देखो"।

शिखा पीछे एक परी की तरह खड़ी थी। अमित ने उसको एक नज़र निहारा और गले लगा लिया। दोनों को एक अचूक सुकून का एहसास हुआ ।

शिखा गले से अलग हुई तो तुरंत पूंछा

“मेरी सैंडल”

अमित ने अपने दोनों हाथों की तरफ देखा, उसे अचानक कुछ याद आया। सैंडल तो वो वालेट निकालते वक़्त एटीएम् पर ही छोड़ आया था। उसने शिखा से कुछ नहीं कहा और वहां से दौड़ पड़ा।

“अरे जा कहाँ रहे हो अमित?"

अमित वहां से एटीएम की तरफ़ भागा। शिखा भी उसके पीछे भागी। अमित ने एटीएम घुसते ही देखा, मशीन के ऊपर सैंडल का पैकेट नहीं था। सूझ-बूझ की बत्ती गुल हो गई। जल्दबाज़ी में अमित ने एटीएम की रसीद के लिए बना डब्बा भी छान मारा लेकिन कहीं पैकेट का नामोनिशान नहीं था। अमित को ध्यान आया कि एटीएम में हमेशा कैमरे लगे होते हैं। उसने केमरे की तरफ़ देखा तो वो भी किसी ओर मुंह ताकें हुए था। एटीएम के बाहर कुछ इमरजेंसी मोबाइल नंबर लिखे हुए थे वो भी अधमिटे हुए थे। कोई गार्ड भी आस पास दिख नहीं रहा था।

इतने में शिखा एटीएम के पास पहुँच गई। उसने अमित को वहां परेशान होते हुए देखा

वो बोली- क्या हो गया इतने क्यों परेशान हो रहे हो? एटीएम कार्ड भूल गये क्या?

"नहीं, शिखा, मैं।।।मैं मैं क्या बोलूं"

"अरे बोलो न, मुझे बताओ तो"

"क्या बताऊँ?"

अमित की आँख में लगभग आंसू आने वाले थे।  

शिखा, मुझे माफ़ कर देना प्लीज़।

अरे लेकिन हुआ क्या, किस चीज़ के लिए माफ़ कर दूँ।

"वो जो सैंडल तुम्हारे लिए मैंने ली थी न"

"हाँ"

"वो चोरी हो गई।"

एक सेकेण्ड के लिए शिखा को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ।

वो बोली, "तुम मज़ाक नहीं कर रहे हो न अमित"?

अमित बोला, "तुम्हें क्या लगता है"?

शिखा दूसरी तरफ़ पलट गई और आगे जाने लगी। अमित में भी उसे रोकने की हिम्मत नहीं थी।

उसके मुंह से सिर्फ़ शिखा ही निकला था कि शिखा पलटी और अमित से एक दो टूक सवाल पूछ लिया।

"अमित तुम झूठ तो नहीं बोल रहे थे न"?    

अमित का दिमाग सन्न रह गया। उसने बिना पलक झपकाए कुछ माइक्रोसेकेंड्स में कितना कुछ सोचा और बोला

“नहीं, शिखा, मैं सच बोल रहा था।”

शिखा अमित के गले लग कर फूट फूट कर रो पड़ी। पहली बार अमित के पास शिखा से कहने के लिए कोई शब्द नहीं थे। वो भी बस उसे बहुत देर तक गले लगाये रहा।

जब शिखा का रोना रुका, पलकें भीगीं थीं। भीगी पलकों में अक्सर आँख पर पड़ती रौशनी भ्रम पैदा करती है।

इसी भ्रम से शिखा को पता नहीं क्यों एक पल के लिए कपिल दिखाई दिया जो हमेशा की तरह दो सैंडल हाथों में लिए खड़ा था लेकिन अगले ही पल कपिल भी ग़ायब हो गया और वो सैंडल भी।

शिखा चुपचाप अमित के गले लगे रही।



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