STORYMIRROR

Charumati Ramdas

Children Stories

2  

Charumati Ramdas

Children Stories

रुदाकोव की माइक्रो कहानियाँ

रुदाकोव की माइक्रो कहानियाँ

2 mins
543

 सातवाँ अंक


लकी, वह, बेशक, उन्हें नहीं खाती, जैसी कड़े कानून की माँग है, मगर हमेशा दिखाती, ट्राम का हर टिकिट जाँच से गुज़रता । यंत्रवत् करती रही, बिना सोचे: पर्स में टिकट रखने से पहले, पहले तीन और अगले तीन अंकों को जोड़ती तो ? कभी जोड़ मिलता। हटा लेती और ख़ुशी के बारे में भूल जाती...अक्तूबर में सात अंकों का नम्बर आया। भीतर कुछ टूट गया। लपूखोव ख़ुद चला गया। सीरियल देखने लगी। ऑर्थोपेडिक मोज़े ख़रीदे। हर चीज़ के लिए पैसे क्यो। ख़रगोश बन गई। खरगोशनी।            

व्वा!


भटकता जंगल में, छूता न किसी को। अचानक:

“भागा दूर मैं दादी से, दादा से, हिरन से, भेड़िए से, और तुझसे भी, ऐ रीछ, भाग ही जाऊँगा!”

झाड़ियों में कुछ लुढ़का।

व्वा, सोचता हूँ।

लकड़ी की क्यों है? ज़िंदा को बूढ़े ने काट दिया...

मैं उसकी ओर : चर्र, चर्र। देखा, मेरा पंजा उबल रहा बर्तन में, रोंएँ बिखरे हैं – मतलब, बुढ़िया ने नोच लिया। छुप गई भट्टी पे, सोचती है, मुझे पता नहीं चलेगा, और बुढ़ऊ घुस गया टब के नीचे।

खा डाला मैंने उन्हें।

सोचता हूँ

सर्कस


देखिए, पहले सब बढ़िया था। ख़तरे के पूर्वाभास के बिना जोकर ने अपने गलोशों से दिल बहलाया, एक घोड़े पर दस घुड़सवारों ने कई चक्कर लगाए।

फिर गड़बड़ होने लगी। नट रस्सी से उड़ा , तलवार-निगलू कुर्सी से चिपक गया, जादूगर की आस्तीन से बेवकूफ़ ख़रगोश बाहर उछला।

सौभाग्य से ट्रेनर ने परिस्थिति को संभाल लिया। बुद्धि पर भरोसा करकेसंभावित ख़तरे के बारे में न सोचते हुए, उसने भयानक जानवर के सामने अपना सिर पेश किया और हमने कृतज्ञतापूर्वक तालियाँ बजाईं...





Rate this content
Log in