प्रसून की नज़्म
प्रसून की नज़्म
1 min
189
परवाने को पता था कि जल जायेगा,
जलते दिए में ही वो अपनी जां गंवाएगा
गया करीब तो दीयें से एक लौ निकली,
बिखर कर जमीन पर पल भर ही फड़फड़ाएगा
मेरे हिस्से की सारी खुशियां लेने वाले गुमनाम बने बैठे हैं
बस फकत हम ही गम का बोझ उठाए उनका गुणगान किए बैठे हैं।
