फागुन आयो
फागुन आयो
फागुन आयो...!
फागुन आते ही पूरी प्रकृति सदाबहार खिलति है। प्रकृति भी होली का फागुन खेलने के लिए तैयार हो जाती है।रंगीन हो उठती है।
आम्र मंजरी लहलहाने
लगती है। केसूडे के वृक्षपर केसरिया पुष्प खिलने लगते है।
नयी कलियाँ खिलने पर पुरा उपवन और वन लहलहाने
लग जाता है।
फूलो के उपर भ्रमर नये सूर में गान करते करते मंडराने लगते है।
अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य प्रेमी दिलों में नया उन्माद पैदा करता है।
प्रकृति का भी जोबन परवान चढने लगता है।
मोर,मोरनी,बपैया,कोयल,बुलबुल, मैना,लैला ओर पोपट अपने ही सूर मे गान करने लगते है। और वातावरण को और मनमोहक बना देते है।
फुलो की मादक खूशबू सबको मदहोश कर देती है।
चारो तरफ रंगबिरंगी पुष्प ओर पर्ण के रंग मनमोहक नजारा बनाते है।
ऐसी सदाबहार फागुन का वर्णन अवर्णनीय है।
उसमे फीर रंगोना का त्योहार होली आता है।
प्रेमी युगलों का प्रेम परवान चलता है। डबल जोश से वो यह त्योहार बहुत महत्वपूर्ण तरीके से मनाते है।
कृष्ण प्रेम में दिवानी राधा जैसे कृष्ण के साथ फाग मनाने के लिए व्याकुल रहेती थी ,उसी तरह सब प्रेमी युगल भी फाग खेलने के लिए व्याकुल हो जाते है।
फागुन फोरम बनके, रुमझुम करते आया है,
तो हो जाईए तैयार ।
रंगो के इस त्योहार को बडी धूमधाम से मनाने के लिए।
रंगरसिया संग बन जाईए घैर खेलने के लिए घेरैया,ढोल के ताल पे नाचने के लिए, ठंडाई की मोज चखने के लिए, गुझिया की मीठी मिठास को खाने के लिए।
करो पिचकारी तैयार, रंगोकी रंगत खेलने के लिए।
यह गीत गाते गाते पहुंच जाईए प्रेमीका के घर पर।
यह गीत गुनगुनाते,
प्रेम भरे दिल के साथ,आया हूं तेरे द्वारे में ।
बहार निकल तू तेरे संग में फाग खेलने आया में।
