पेंसिल
पेंसिल
राहुल आज फिर कक्षा में गुमसुम सा बैठा था खुद में ही खोया मायूस सा थोड़ी झिझक और डर भी उसके चेहरे से झलक रहा था और सहमी आँखे अमन और नमन को देख रही थी क्योकि ये दोनों राहुल को परेशान करने का एक भी मौका हाथ से नहीं जाने देते थे।
इधर अमन और नमन के बीच गुप्तगू चल रही है। अमन- “देख मेरे पास दो पेंसिल है तेरे पास तो एक ही है।”
नमन-“दो-दो पेंसिल क्यू है ,काम मे तो एक ही आती है”। अमन गर्वीले स्वर में -“मेरी मम्मी ने दी है मुझे”। नमन-“ऐसा कैसे हो सकता है? मेरी मम्मी तो हमेशा पेंसिल घिस-घिस के बहुत छोटी हो जाती है तब भी आसानी से नहीं देती है मेरी जिद्द के आगे देती है वरना वो तो पूरी पेंसिल खत्म होने पर देवे”। अमन-“मेरी मम्मी मुझसे बहुत प्यार करती है इसलिए जो भी मांगू मना नहीं करती है”। नमन उदासी भरे स्वर में बोलता है “मुझे तो डांटती है फालतू जिद्द करू तो” । तभी अचानक से जैसे ही मेम ने कक्षा में प्रवेश किया वैसे ही राहुल का डर जून की तपन की तरह और अधिक बढ़ गया क्योकि कल मेम के द्वारा दिया गया गृह कार्य वह कर नहीं पाया था । उपस्थिति लेने के पश्चात मेम ने सबसे पूछा “ कल का गृहकार्य सबके पूरा हो गया ?” राहुल के अलावा सबकी “हां” एक ही स्वर में निकली। सबके कार्य की जाँच हो गयी पर राहुल मायूस मुँह लटकाये बैठा रहा तभी अचानक मेम की तेज क्रोधपूर्ण आवाज सुनाई दी “राहुल !! तूने आज भी गृह कार्य नहीं किया” । राहुल चुप था । मेम ने फिर बोला-“ बेटा तू पढ़ने में तो होशियार है पर कार्य समय पर क्यों नहीं करता है, पिछले सप्ताह भी तुझे इसी बात को लेकर सारे स्टाफ की डांट पड़ी थी न ?फिर आज वापस भूल गया”।राहुल की गर्दन नीचे थी और स्वर मौन वह बार बार पूछने पर भी मौन ही रहा। अचानक से मेम का हाथ उठने ही वाला था कि उसी पल राहुल ने मेम को रोका और बोला “”रुको मेम ! मेने जानबूझ के कोई लापरवाही नहीं की,मै तो गृहकार्य और पढ़ाई समय पर करना चाहता हु पर ….। “पर क्या?” मेम बोली। राहुल “पर मेम पिछले सप्ताह भी दीदी ने मुझे पेंसिल दिलवाई थी और दूसरे ही दिन वो गुम हो गयी ,जैसे तैसे करके दीदी ने मुझे वापस नई और सुन्दर सी पेंसिल दिलाई और वो भी कल मेरे बेग से गायब हो गयी ,तो मै गृहकार्य कैसे करता मेम” राहुल सिसकते-सिसकते बोला। मेम ने पूरी कक्षा को चेतावनी देकर पूछा “जिसने भी राहुल की पेंसिल चुराई है चुपचाप मेज पर रख जाये वरना….”। किसी ने कोई जवाब नहीं दिया मेम सबसे पूछ के चली गयी । राहुल मायूस आँखो से व सिसकती आहो से सबको देखता रहा ।
नमन अमन की तरफ शंका भरी नजरो से देखता है तभी अमन दबी आवाज और टूटे फूटे शब्दों में बोलता है “तू ! तू ! मुझे ऐसे क्यों देख रहा है मेने थोड़े ना राहुल की पेंसिल ली है”। नमन-“मेने कब बोला कि तूने ली है ,पर मुझे ये समझ नहीं आया कि तेरी दोनों पेंसिलों का रंग अलग-अलग क्यों है । अमन-“मम्मी अलग-अलग दुकान से लायी थी । नमन –“ऐसा नहीं होता है, मुझे लग रहा है तू झूठ बोल रहा है”। अमन-“ तू अपने सबसे अच्छे दोस्त को चोर समझ रहा है,चल तेरे से बाात नहीं करता” । नमन –“मै गलत हु तो तू अपनी पेंसिले दे ,मै राहुल को दिखा के पूछ लूंगा,किसकी है किसकी नहीं” । अमन-“नहीं दिखाऊ मेरी ही है ये ,तू क्या कर लेगा”। नमन गुस्से में “मै पूरी कक्षा को और मेम को बुला के बता दूंगा तेरे पास दो दो पेंसिले है ,चोरी तूने ही की है” । अमन हड़बड़ा जाता है और डरते-डरते बोलता है “तू तो मेरा प्यारा दोस्त है ना,चल मै तेरे को दे दूंगा ये पेंसिल पर तू किसी को कुछ मत बोलना”। नमन कुछ सोच के हाँ बोल देता है और उनके बीच समझोता होता है कि वे दोनों उस पेंसिल को आधा-आधा रख लेंगे और किसी को कुछ नहीं बताएंगे ।
राहुल की बड़ी बहन रानू जो ज्यादा बड़ी नहीं थी यही कोई पन्द्रह -सोलह वर्ष की उम्र होगी और राहुल की लगभग आठ वर्ष की उम्र है और अभी कक्षा तीसरी में ही पढ़ता है। वर्ष भर पहले हुए दर्दनाक हादसे ने दोनों मासूमो को अनाथ बना दिया उनकी पूरी दुनिया ही सूनी हो गयी थी जब तीन मंजिला इमारत में मजदूरी करते समय उसी इमारत के ढहने से उसमे दबकर राहुल के माता पिता की मृत्यु हो जाती है । तब से रानू ही राहुल के लिए माँ बाबा दोनों बन गयी थी पढ़ाई छोड़ घरों में झाड़ू पोछा का काम करके खुद के लिए व राहुल के लिए दो वक्त का भोजन भी मुश्किल से जुटा पाती थी पर बाबा का सपना था कि दोनों बहन भाई पढ़ लिख कर उनका नाम रोशन करे पर नियति को कुछ और मंजूर था और इस मजबूरी में रानू ने खुद को पढ़ाई से दूर किया ताकि कम से कम वो राहुल की तो पढ़ाई अच्छे से करवा पाए उसे अच्छी परवरिश दे पाए और उसे कभी भी माँ बाबा की कमी महसूस न हो पाए।
रानू ने अपने घरों का कार्य जल्दी से पूरा किया और लहसुन की चटनी और रोटी बनाकर राहुल का विद्यालय से लौटने का इंतजार करने लग गयी तभी मुँह लटकाया हुआ राहुल आया रानू ने खाना खाने को बोला तो मना कर दिया जबकि लहसुन की चटनी उसकी पसन्दीदा थी रानू ने उसकी मायूशी का कारण पूछा
राहुल- “दीदी मुझे माफ़ कर दो,मैने फिर से पेंसिल खो दी”। रानू सर के बैठ जाती है “तूने पिछले सप्ताह भी पेंसिल खो दी थी बड़ी मुश्किल से पैसे जोड़कर मैंने फिर से एक सुन्दर पेंसिल दिलवाई ,और तुमने फिर खो दी”। राहुल-“दीदी मै हमेशा बेग में ही रखता हु, पर पता नहीं कौन बार बार निकाल लेता है”। रानू-“तू ध्यान क्यों नहीं रखता तुझे पता है न अपने लिए एक एक पाई कितना महत्त्व रखती है”।
राहुल सिसकिया लेने लगता है रानू का गला भी भर आता है पर चेहरे पर फीकी मुस्कान लिए राहुल को गले लगा के ढाढंस बांधते हुए बोलती है “तू चिंता ना कर जीजी है ना तेरी और ला देगी,पर पेंसिल चोर को तो पकड़ना पड़ेगा”। रानू स्वयं जानती है उसका एक एक पैसा कमाना कितना मुश्किल है। दो घरो में झाड़ू पोछा करती है दोनों तरफ की महीने भर की पगार तीन सौ रूपये ही हो पाती है क्योकि रानू भी बच्ची ही तो है अतः उसके अनुसार ही उसे बच्चो वाली ही पगार देते है जबकि काम सब पूरा लेते है
रानू को इन तीन सौ रूपये से ही पुरे घर का खर्चा चलाना होता है जिसमे खाना पीना,झुग्गी का किराया राहुल की पढ़ाई आदि शामिल है। कोई भी इन बच्चो पर रहम नहीं करता है रिश्तेदारों ने तो दो वक्त की रोटी के बदले इन बच्चो से भीख मंगवाने जैसा घिनोना काम करवाने की सोची थी पर रानू अपने माँ बाबा के जैसे स्वाभिमानी लड़की थी जिसने अपनी उम्र के बच्चो से ऊपर का सोचा और अकेले ही इस पथरीले राह पर चलने की ठान ली और भाई की जिम्मेदारी अपने नाजुक कंधो पर ले ली ।पर किसी के सामने हाथ नहीं फैलायी क्योकि जो भी गिने चुने रिश्तेदार थे उन्होंने तो पहले ही अपनी निर्दयता और ओछापन दिखा दिया था ,जनाजे में शामिल होने आये तब उन्होंने बेसुध बिलखते मासूमो को सम्हालने के बजाए जो भी घर के सामान थे बर्तन,कपड़े और कुछ माँ के शादी के जेवर जो कोठी में रखे थे सब ले गए फिर रानू ऐसे नीच लोगो से क्या उम्मीद करती। उसने स्वयं को भाई की मुस्कान के लिए मजबूत बनाया और वापस एक छोटा सा घर बसाया जिसमे दोनों मासूम घोर अभावग्रस्त जिंदगी जी रहे थे जिसमे उनके लिए एक एक तिनका कीमती था अतः पेंसिल के खो जाने पर उनका बिलखना तो स्वभाविक था ।
इधर नमन को पता था कि अमन ने राहुल की पेंसिल चुराई है फिर भी वह अपनी माँ से जिद्द करता है कि वे उसे दो पेन्सिले क्यों नहीं देती अमन को तो उसकी मम्मी बहुत प्यार करती है डाटंती भी नहीं और दो दो पेन्सिल देती है इसलिए मुझे भी दो पेंसिल चाहिए । नमन की मम्मी सोच में पड़ जाती है कि सभी बच्चों को जब तक पेंसिल खत्म नहीं हो जाती,दूसरी नहीं देते फिर अमन की मम्मी बच्चो की बेबुनियाद जिद्द क्यों पूरा करती है वे नमन से पूछती है, “क्या तूने अमन के पास दो पेंसिल देखी है” । नमन-“हां” फिर अचानक कुछ सोचता है और डर के चुप हो जाता है सोचता है कही मम्मी अमन की मम्मी से पूछ न ले,ऐसा हो गया तो उसकी चोरी की डांट मै भी खाऊंगा और मुझे भी सबकी मार पड़ेगी और अचानक से बोलता है “ नहीं! नहीं! मम्मी मुझे तो एक ही पेंसिल चाहिए, अमन तो जिद्दी होगा इसलिए उसकी मम्मी को दो पेंसिल देनी पड़ती होगी,मै नहीं हु जिद्दी मै नहीं लूंगा और आप उसकी मम्मी से भी मत बोलना”। ऐसा कहकर भग जाता है वहा से । उसकी मम्मी को कुछ गड़बड़ होने का अंदाजा लग चूका था । दूसरे दिन पेरेंट्स मीटिंग मै दोनों की मम्मी मिलती है नमन की मम्मी अमन की मम्मी से दो पेंसिल के बारे में पूछती है और बोलती है “ आप इतने छोटे बच्चे को दो पेंसिल क्यों देती है बहुत से बच्चो के पास तो एक भी मुश्किल से आती है फिर ऐसे बच्चे हीनभावना से ग्रसित हो जाते है क्योकि जिनके पास दो होती है वो उन्हें दिखा के चिढ़ाते है मेरा नमन भी अमन के पास देख कर ऐसी जिद्द कर रहा था पर मैने तो उसे डांट दिया आपने कैसे समझदार होते हुए भी अमन की जिद्द मान ली ?”। अमन की मम्मी आश्चर्य से बोलती है मै तो एक ही पेंसिल देती हु जब तक वो चलती है दूसरी नहीं देती फिर उसके पास दो कैसे आगयी”। नमन की मम्मी-“ अब आप ही पूछो अपने लाडले से उसे देख के ही मेरा नमन भी जिद्दी बन रहा है आजकल”। अमन-नमन दोनो बच्चो को बुलाया जाता है अमन की चोरी पकड़ी जाती है और साथ ही नमन का झूठ भी, दोनों की माँ अपने अपने बच्चो को पीटने लग जाती है ,विद्यालय स्टाफ भी वहा आ जाता है और फिर सब मिलकर दोनों को खुब फटकार लगाते है और उनसे पूछा जाता है कि ये पेंसिल किसकी है फिर राहुल को बुलाया जाता है उसे उसकी सुन्दर पेंसिल वापस मिल जाती है पर दो टुकड़ो में बंटी हुयी थोडा मायूस होता है पर ये सोच के खुश होता है कि कुछ दिन और ये लिखने के काम आएगी और दीदी को परेशान नहीं होना पड़ेगा और वो दौड़कर कर खुशी से दीदी के लिपट जाता है
अमन और नमन को डांट के साथ हिदायते दी जाती है कि “चोरी करना कितना बड़ा पाप है और साथ ही अनैतिक कार्य भी इसके अलावा जिसकी वस्तु चुराई जाती है वह उसके लिए क्या महत्व रखती है ये उसी को पता होता है और जब वही वस्तु चोरी हो जाये तो उसे कितना दुःख होता है यह भी वही महसूस कर सकता है इसलिए जीवन में कभी भी चोरी नहीं करनी चाहिए फिर चाहे वो वस्तु कितनी भी छोटी क्यू न हो”
अमन-नमन डांट फटकार खाते हुए एक दूसरे को गुस्से में देखते है हुए अपनी-अपनी माँ की अँगुली पकड़े अपने अपने घर लौट आते है। रानू और राहुल भी अपनी अभावग्रस्त अँधेरी दुनिया में लौट आते है जहां से उन्हें रोशनी से चकाचोंध दुनिया बहुत दूर नजर आती है .......