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पद्मनाभस्वामी मंदिर का रोचक इतिहास

पद्मनाभस्वामी मंदिर का रोचक इतिहास

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पद्मनाभस्वामी मंदिर पहली बार कब बनाया गया, इसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। हालाँकि इस स्थान का महाभारत समेत कई पुराणों में वर्णन है। मंदिर का पहला जिक्र 9वीं सदी के ग्रंथों में मिलता है। मंदिर की संरचना में लगातार सुधार होते रहें है, वर्तमान पद्मनाभस्वामी मंदिर को 1733 ईस्वी में उस समय के राजा मार्तण्ड वर्मा ने बनवाया था। राजा मार्तण्ड वर्मा ने अपनी सारी संपत्ति मंदिर को दान कर दी थी और अपने आपको ‘ईश्वर का प्रतिनिधि‘ घोषित करके शासन किया। आज भी मंदिर की देखभाल का जिम्मा राजा मार्तण्ड के शाही घराने की देख-रेख में एक प्राइवेट ट्रस्ट करता है। मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा है जिसमें भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। इस मूर्ति के दर्शन के लिए लाखों भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं। यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को ‘पद्मनाभ‘ कहा जाता है, जिस पर इस मंदिर का नाम पड़ा। पद्मनाभस्वामी मंदिर में केवल हिंदू ही प्रवेश कर सकते है, भले ही वो किसी भी जाति का हो। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य है।साल 2011 में जब मंदिर के 6 में से 5 तहख़ानों को खोला गया तो उनमें से सोने – चाँदी के रूप में करीब दो लाख करोड़ रुपए की संपत्ति प्राप्त हुई। प्राप्त होने वाली कुछ मुख्य वस्तुएं इस तरह से हैं- साढ़े तीन फुट लंबी भगवान विष्णु की सोने की मूर्ति जिस पर कई हीरे, जवाहरात और कीमती पत्थर जड़े हुए हैं। शुद्ध सोने से बना एक सिंहासन जो शायद भगवान विष्णु की एक साढ़े पांच मीटर की मूर्ति को शयन अवस्था में रखने के लिए बनाया गया था। इस पर कई हीरे और जवाहारात जड़े हुए हैं। 18 फुट लंबा एक सोने का हार जिसका वज़न साढ़े 10 किलो है। 36 किलोग्राम वज़नी सोने का परदा। 2200 साल पुराने सोने के सिक्के जिन का कुल वज़न 800 किलो तक है। सोने–चांदी के हजारों बर्तन। अंग्रेजों के जमाने के सोने के सिक्के जिनका कुल वज़न 20 किलो है। कई ऐसे कीमती बर्तन जिनमें हीरे, जवाहारात और कीमती पत्थर भरे पड़े हैं। सोने-चांदी के हजारों गहने। पद्मनाभस्वामी मंदिर के छठे तहख़ाने को अभी तक खोला नहीं गया है और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे खोलने पर पाबंदी लगाई हुई है। कहा जाता है कि इस तहख़ाने में बाकी तहखानों से भी ज्यादा दौलत है और इसकी गुफ़ा समुद्र तट तक जाती है। आप जानकर हैरान होंगे कि छठे तहख़ाने में ना तो कोई कुंडी है और ना ही कोई बोल्ट। कहा जाता है कि इस गेट को 16 वी सदी का कोई सिद्ध पुरुष, योगी जा तपस्वी ही ‘गरूड़ मंत्र‘ का शुद्ध उच्चारण करके खोल सकता है। छठे तहख़ाने के गेट पर सांपों की तस्वीर है जो यह दर्शाती है कि वह तहख़ाने की रक्षा कर रहे हैं। कुछ लोग यह भी कहते है कि इस का अर्थ यह भी है कि इस तहख़ाने को खोलने से कुछ अशुभ घटित हो सकता है।


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