नानी जी की हॉरर स्टोरी
नानी जी की हॉरर स्टोरी
नानी जी हमें हमेशा खुश करके , बाद में हॉरर स्टोरी सुनाकर रोंगटे खड़े करवा देते हैं , नानी जी ऐसी कहानियां रात के समय में ज्यादा सुनाते थे
मेरी नानी जी पाकिस्तान के सिंध राज्य के थारपारकर जिले के छोटे से गांव मैयार से एक राजपूत परिवार से थे । वर्तमान में नानी जी राजस्थान के बाड़मेर जिले में रहते हैं , यह बात 1971 के पहले हिंदुओं के पलायन से पहले की हैं।
मेरे नानी के भाई थे , जिनका नाम ठाकुर दलपतसिंह था , दलपत सिंह जो कद काठी में हष्ठपुष्ट , लंबे बाल , और एक कुख्यात डकैत थे , ठाकुर दलपतसिंह ज्यादा समय अपने खेत में बिताते थे , क्योंकि उन पर 3 मर्डर और 4 डकैती के केस लगे हुए थे ,सिंध सरकार द्वारा भगोड़े घोषित किए गए थे , उनका एक दोस्त था , जिसका नाम जमाल ख़ान मेहर था , जो मुस्लिम समुदाय से तालुक रखते थे , वो दलपतसिंह के बहुत करीबी थे ।
ठाकुर दलपतसिंह रात के समय में ही अपने घर आते थे , पूरा दिन वो फरारी में बिताते थे ।
ठाकुर दलपतसिंह के खेत और घर के बीच में उनके प्रिय मित्र जमाल खां मेहर की ढाणी पड़ती थी , कभी कभी वो वहां रुक जाते थे और वहां ही रात्रिवास ले लेते थे । बहुत गप्पे सुनाते थे ,
ठाकुर दलपतसिंह के पास एक सिंधी नस्ल का घोड़ा था , जो राजन के नाम से जाना जाता था।
उस समय पाकिस्तानी में एक महामारी चलती थी , जिसकी चपेट में बहुत लोग आए , यह एक संक्रमित बीमारी थी , और जमाल खां मेहर भी इस बीमारी के चपेट में आ गए , और उनका आकस्मिक इंतकाल उनकी ढाणी में ही हो गया था ।
उनकी मौत रात के समय हुई थी , इसलिए उनके समुदाय के लोगों ने उनके जनाजे को सुबह दफनाने का सोचा , लेकिन एक सुनसान ढाणी में 3-4 लोग रात्रि के समय नहीं रह सकते थे । क्योंकि वो एक खतरनाक स्थान था , इसलिए उनके समुदाय के लोगों ने जमाल ख़ान की अर्थी को
एक चारपाई से बांधा और उस चारपाई को एक झोंपड़े में ही उसी हाल में छोड़कर चले गए ।
इधर ठाकुर साहब को पता नहीं था , कि उनके दोस्त इस दुनिया में नहीं रहे ।
वो शाम को राजन पर सवार होकर अपने गांव की तरफ जा रहे थे । रात बहुत ज्यादा हो गई थी , और सर्दी पर ज्यादा थी , ठाकुर साहब के लगाम पकड़े हुए हाथ कांप रहे थे । उन्होंने सोचा अब जमाल की ढ़ाणी भी आ गई है , अब यही रूक जाता हूं ।
उन्होंने झोंपड़े के बाहर एक नीम के वृक्ष से अपना घोड़ा बांधा ।
और जमाल को बाहर से आवाज दी ।
अरे जमाल ! ओ जमाल..!
रात के 12:00 बज चुके थे , और और बिजली कड़क रही थी , बादल गरज रहे थे ।जमाल अब प्रेतयोनी में चला गया था ।
जमाल की लाश ने आवाज दी- ओह दलपत तू बाहर क्यों खड़ा हैं , सर्दी ज्यादा हैं , जम जाएगा ।
अंदर आजा "!
ठाकुर जैसे ही झोंपड़े के पास गया , झोपड़ा बाहर से लॉक था ,
ठाकुर असमझ में पड़ गया , फिर भी उन्होंने जमाल से पूछा ।
अरे जमाल-
इस झोंपड़ी को बाहर से बंद किसने किया , तू तो अंदर बैठा है ।
लाश से आवाज आई -: सिंधी भाषा में - अरे मुंहिजा 3 भाई आया तो उंवा पांतरे सा बंद कियो हे ( अरे मेरे 3 भाई थे , वो गलती से बंद करके चले गए ।
तू बाहर से खोलकर आजा ।
ठाकुर ने दरवाजा खोला , झोंपड़ी में बहुत अंधेरा था ,
ठाकुर ने जमाल से कहा - अरे में सर्दी से कांप रहा हूं , तो चूल्हा जला हाथ सेंकने हैं ।
लाश से आवाज आई - दोस्त मेरी तबियत ठीक नहीं है आज ,
तू चूल्हा जला मैं सो रहा हूं ।
ठाकुर ने जैसे -तैसे माचिस खोजने की कोशिश की , लेकिन माचिस नहीं मिली ।
इतनी बाहर कड़क रही बिजली की चमक सीधी लाश पर पड़ी जो एक सफेद कफ़न में लिपटी हुई एक खड़ी चारपाई से बंधी हुई थी । यह देखकर ठाकुर साहब एक हकबका हो गये ।
दोबारा बिजली की चमक पड़ते ही ठाकुर को पुरा पता चला गया , कि अब जमाल जिंदा नहीं है , उसका भूत हैं ।
कहते हैं ना कि मरने के बाद कोई भी किसी का करीबी नहीं होता ।
ठाकुर साहब ने बातें जारी रखी ताकि लाश को पता न चले की ठाकुर को पता चल गया है ।
ठाकुर पसीना पसीना जरूर हुआ , लेकिन उन्होंने हिम्मत दिखाते हुए धीरे -धीरे झोंपड़े से बाहर निकलते ही लॉक दे दिया ।
इतने में लाश को चल गया , कि अब ठाकुर भाग जाएगा !
ठाकुर घोड़े पर चढ़ा इतने में लाश भी चारपाई सहित झोंपड़े का दरवाज़ा तोड़कर बाहर आ गई ।
ठाकुर ने घोड़े की एडी लगाई तेज भगाया।
लेकिन वो चारपाई भी उसके पीछे पीछे दौड़ने लगाई ।
जिस में जमाल की लाश बंधी हुई थी।
चारपाई से आवाजे आनी लगी
, भीच दलपत रूक , भीच
( यानी रूक दलपत रूक )
दलपत ने कहा अब मैं नही रुकूंगा
तू मार डालेगा ।
ठाकुर दलपत ने घोड़ा बहुत तेज भगाया और वो गांव पहुंच गया ।
उधर उसकी चारपाई 4 किलोमीटर तक उसका पीछा करती रही ।
इतने में ठाकुर मौलवियों को और कुछ संतो को लेकर वापिस चारपाई के सामने आ गया ।
मौलवियों और संतो ने अपनी मंत्र शक्ति से उस चारपाई को बड़ी मुश्किल से उस चारपाई को वहां रुकवाया ।
ठाकुर ने भी राहत की सांस ली ।
अगर राजन घोड़ा ना होता तो , ठाकुर साहब राम को प्यारे हो जाते ।
फिर लाश से आवाज आई ,
ठाकुर दलपत !
शुक्रिया अदा कर इन मौलवियों का नहीं तो तुझे साथ ले जाने का
प्लान था ।
मौलवियों ने जहां चारपाई रुकवाई , वहां पर जमाल की कब्र खोदी गई , आज भी जमाल की दरगाह उस जगह हैं ।
ठाकुर दलपत का परिवार जमाल की इबादत करता हैं ।
यह दरगाह आज भी सिंध में "जमाल_मेहर_जी_दरगाह" से जानी जाती हैं ।
यह काल्पनिक नहीं रियल स्टोरी हैं ।
उसके बाद पुलिस से आदेश आया कि ठाकुर दलपत को मार दो , जैसे ही पुलिस ने उन पर गोलियां चलाई , जमाल के चमत्कार से गोलियां उल्टी चलने लगी । और सभी पुलिस कर्मी मरने लगे , जो बचे- खुचे थे वो डरकर भागने लगे ।
उसके बाद मेरी नानी का परिवार उनकी इबादत करता था ,
आज भी उस दरगाह पर सिंध के हिंदू इबादत करते हैं ।
यह कहानी हिंदू मुस्लिम भाईचारे को भी दर्शाती हैं ।
