नाकामयाब
नाकामयाब
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इठलाता रेगिस्तान बढ़ा चला आ रहा था रास्ते में पेड़ों का समूह आया गुरुर से भरे रेगिस्तान ने कहा – “चल हट, आगे जाने दे मुझे”
पेड़ ने दृढ़ता से कहा – “नहीं”
रेगिस्तान की सारी कोशिशें बेकार
गुरुर टूटा
इठलाना भूला
पड़ा रहा वही कई वर्षो तक एक दिन कसमसा के ऊठा
आँखों में चमक लिए बोला– “पीछे देख अब मुझे तू न रोक पायेगा”
पेड़ ने पीछे देखा और अनमने मन से रेगिस्तान को रास्ता दे दिया
पीछे एक इंसान कुल्हाड़ी लिए आ रहा था