नादान कदमों का सफ़र
नादान कदमों का सफ़र
“प्रिया उठो,सुबह के साढ़े सात हो गये हैं,तुम्हें आठ पच्चीस में मुम्बई दर्शन वाली बस पकड़नी है न,समय पर नहीं पहुँचोगी तो तुम्हें छोड़ कर चला जाएगा।“
शुभा दी कब से उसे आवाज लगा रही थीं। प्रिया है कि उठने का नाम ही नहीं ले रही। हर आवाज पर करवटें बदल लेती। अबकि शुभा दी ने उसके पास आकर तीखे स्वर में बोला-
"चलो उठो! नहीं तो बस वाला तुम्हें छोड़कर चला जाएगा। एक घंटे से तुम्हें उठा रही हूँ। घर का सारा काम हो गया,कामवाली बाई भी आ कर चली गई। बच्चे भी स्कूल चले गए। पर तुम उठने का नाम ही नहीं ले रही हो।“
“जल्दी करो, नाश्ता बन गया है। दो पराठे रास्ते के लिए भी पैक कर दिया है मैंने।“
प्रिया दिल्ली में अकेले रहकर प्राइवेट कम्पनी में जॉब करती है ।मुंबई घूमने आई हुई है। अपनी मर्जी की मालकिन। सोमवार से शुक्रवार तक टाइट रुटीन लाइफ। सुबह जल्दी उठना , नाश्ता बनाना, उसी को लंच के लिए भी पैक करना और फिर ऑफिस के लिए दौड़ लगाना।
स्वभाव से बेहद शांत और मूडी प्रिया को खुद नहीं पता होता कि कुछ देर में उसका मूड कैसा होगा।
मेट्रो शुरु होने के बाद उसकी जिंदगी थोड़ी सी आसान हो गई है। वरना सुबह-शाम बस से ट्रैवेल करना किसी नर्क से गुजरने के समान लगता। एक तो बस ज्यादा देर स्टॉप पर रुकती नहीं थी । उस पर से ऑफिस आवर में सबको जल्दी मची रहती। किसका पैर कुचला , किसको धक्का लगा , कौन चढते वक्त गिर पड़ा । इसकी चिंता दिल्ली की हवा में हवा हो जाती। सीट मिल जाए, समय पर ऑफिस पहुँच जाएं ,यही सबको बस पड़ी रहती।
कंडक्टर भी ठूस-ठूस कर सवारियाँ भर लेता। महिलाओं की यात्रा भेंड़- बकरियों की तरह मिमियाते- चिचियाते , गिरते-पड़ते गंदी नजरों और गंदे हाथों से अपने- आपको बचाते संपन्न होती । कभी-कभी तो उतरते-उतरते बस चल पड़ती। रोज यह आफत अपने नियत समय पर शुरु होती। जिस दिन सीट मिल जाती और कम भीड़ होती और बिना धक्का खाये सही सलामत समय पर ऑफिस और शाम को घर पहुँचती, उस दिन उसे लगता कोई जंग जीत लिया है।
एक बार की बात है उसने नई लम्बी कुर्ती पहनी थी ।जैसे ही उसने बस से उतरने के लिए अंतिम पायदान पर दाहिना पैर रखा ही था कि चरररर की आवाज आई। पीछे मुडी तो देखा उसके बाद वाली सवारी ने उतरने की जल्दबाजी में उसकी कुर्ती पर ही पैर रख दिया था। साइड से ऊपर तक कुर्ती दो फांक में बंट गई । ऑफिस पहुँचने के बाद सेफ्टीपिन की मदद से उसने पूरा दिन निकाला।उस दिन ऑफिस में इस घटना के साथ बस में होने वाली कई दिल दहला देने वाली घटनाएं कलीग से सुनने को मिली।
उसकी कलीग ने बताया कि नोएडा से दिल्ली आनेवाली बस में एक लड़की की उतरते वक्त दुपट्टा का एक छोर बस के दरवाजे में फंसा रह गया और बस चल पड़ी जिसकी वजह से वो लड़की कुछ देर तक बस के साथ घिसटती चली गई थी और उसका हाथ बुरी तरह से फ्रैक्चर गया था।उसकी दो हफ्ते बाद शादी थी। शादी तो पोस्टपोंड हो गई ही गई, नौकरी भी छूट गई। उसका हाथ ठीक होने में छ: महीने लगे।
इस घटना के बाद प्रिया बहुत अपने पहनावे को लेकर कांसस हो गई । बहुत मुश्किलों के बाद उसे जॉब मिली थी । उसे किसी भी तरह से गवाना नहीं चाहती थी। उसने सलवार –कमीज के साथ दुपट्टा लेना कम कर दिया और जींस – टी सर्ट, पैंट, कैपरी यही प्रीफर करने लगी और फ्री भी महसूस करती।कुछ ही सालों में मेट्रो ने बस में होने वाली रोज की जद्दोजहद और असुरक्षा से भी मुक्ति दे दी ।
पाँच सालों से रुटीन लाइफ जीते आ रही प्रिया ने इस बार कहीं घूमने जाने की सोची । जब भी छुट्टी मिलती वो मम्मी-पापा के पास चली जाती। शुरुआत में ऑफिस के कलिग उसे फिल्म देखने या कभी बाहर घूमने के लिए इनवाइट करते पर अपने आप में ही मस्त-मगन प्रिया मना कर देती। दरअसल 8 घंटे ऑफिस की हेक्टिक शेडयूल के बाद उसे शांति से अकेले खुद के साथ समय बिताना पसंद था । पर हर बार मना कर देने के बाद सभी उससे खफा रहने लगे थे। उसकी अव्यवहारिकता और हर बात में बहस करने की प्रवृति के कारण सबने उससे किनारा करना शुरु कर दिया । इस बात का भी एहसास उसे महीनों बाद हुआ ।
आ कि तुझ बिन इस तरह ए दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं।
किशोर जो दूसरे डिपार्टमेंट में था , उसकी अच्छी बनती थी। टी और लंच टाइम में अक्सर वह उसके पास चला आता |किशोर ने कई बार दिल्ली घूमने, फिल्म देखने के लिए उसे ऑफर दिया । प्रिया उसे भी बिना कुछ सोचे सीधे मना कर देती। अब तो वो भी उससे चिढ़ा सा रहता। कुछ महीनों के बाद किशोर ने नये दोस्त बना लिये और प्रिया से दूरी बना ली। ऐसा नहीं था कि उसने मनाने की कोशिश नहीं कि मगर जब दोस्ती में गलतफहमी की गाँठ पड़ जाये तो खोलना सबके वश की बात नहीं होती। खैर! जो होना था हो गया ।उसे किशोर की दोस्ती टूटने का ग़म तो था साथ ही समय पर टूटती दोस्ती को नहीं संभाल पाने का मलाल भी लंबे समय तक कचोटता रहा। मगर अकेले रहने की जिद उसकी बढती ही गई।
दरअसल वह किसी भी बंधन में नहीं बंधना चाहती थी । किशोर उसे लाइक करता था और सभी उसे बढ़ावा दे रहे थे, उसे उसकी गर्ल फेंड बनाने के लिए। मगर प्रिया को गर्ल फ्रेंड बनने और रिलेशनशिप में कोई रुची नहीं थी। इसलिए उसने किशोर को करीब नहीं आने दिया था। वह सिर्फ दोस्ती रखना चाहती थी।
पृतिसत्तामक समाज की मानसिकता कभी भी स्त्री-पुरुष को सिर्फ दोस्त बने नहीं रहने दे सकते। किशोर के कलिग उसे रिलेशनशिप के लिए उकसाते रहते । प्रिया की नजर में सारे इशारेबाजियाँ थी मगर वह इन सब चीजों के बारे में अभी सोचना नहीं चाहती थी। वह समय चाहती थी। प्रिया का फंडा था अगर प्यार हो जाएगा तो शादी करेगी अन्यथा नहीं। मगर पहले दोस्ती होना जरुरी है। मगर ऐसा कुछ होने से पहले ही दोस्ती टूट गई। दोस्ती टूटने का कारण कुछ प्रिया की नासमझी, किशोर की जल्दबाजी और कलिग द्वारा पैदा की गई गलतफहमियों का भी हाथ था।
घरवालों ने कई रिश्ते भेजे।घर में सबकी इच्छा थी कि अपने मन का जॉब कर लिया है। अब किसी को तो पसंद कर ले और शादी कर जिंदगी में आगे बढ़े। पर उन्हें भी उसने ठुकरा दिया। उसे अरेंज मैरेज का खयाल ही बहुत दकियानूसी लगता । उसे इस बात से बड़ी चिढ़ होती कि घरवाले उसे किसी से मिलवायेंगे फिर पसंद आ गई तो, दहेज फलाना -ढेकाना की मांग ।परम्परा के नाम पर लड़केवालो के स्वागत –सत्कार में पानी जैसे पैसे बहाना, भले ही इसके लिए कर्ज में गले तक डूबना पड़े।उसके बाद भी लड़केवालो के सौ नखरे सहो । उसे इन सब चीजों से नफरत थी। उसने अपने रिश्ते के चाचा और मामा के बेटियों को देखा था । कैसे लाखो रुपये खर्च कर शादी की गई थी । उसके बावजूद उन्हें अपने ससुराल में ताने सुनने पड़ते हैं। और उनके पतियों के नखरे । बाप रे बाप । साथ में आते तो लगता कोई एहसान कर रहे हैं। ममेरी दीदी ने एल.एल.बी किया था। शादी के बाद नौकरी करना चाहती थी ।मगर उनके ससुरालवाले नहीं चाहते थे कि वो नौकरी करे। उनके पति ने उनकी सारे सर्टिफिकेट जला दिए । समय -समय पर तलाक की धमकी अलग देते रहते। वे जब भी मायके आती उनके चेहरे पर अजीब सी मायूसी घेरे रहती। खुल कर हँसना-बोलना तो वो जैसे भूल ही गई थी।
बचपन में सुनी एक और घटना उसके मन पर गहरी जमी हुयी थी |मम्मी की बड़ी बहन यानि बड़ी मौसी बहुत ही सुंदर और सर्वगुण संपन्न थी । उनकी बहुत ही पैसे वाले घर में शादी हुई थी। मौसा जी उस खानदान के इकलौते वारिस थे । मौसी को बहुत मानते थे पर जैसा होता है हर पैसेवाले घर में , वे बहुत ड्रिंक करते थे। एक दिन बहुत पिये हुए ही कार ले कर जाने लगे तो मौसी ने उनके हाथ से चाभी छिन लिया। ड्रिंक कर ड्राइव करने में जान को खतरा हो सकता था।वे नहीं चाहती थी कि कोई एक्सीडेंट हो । मौसा जी चाभी छिनने पर मौसी को अपने नशे में बहुत खरी-खोटी सुना दी। जिससे मौसी के कोमल मन को बहुत ठेस पहुँची ।उसी वक्त कमरे में खुद को बंद कर लिया फिर केरोसीन डाल कर आग लगा ली।इतनी जल गई की कोई नहीं बचा पाया था । बचपन में ऐसे कितने किस्से सुनने को मिले। जिसके कारण शादी के नाम पर ही उसे वित़ृष्णा सी हो गई थी।
बड़ी होने पर यही सब घटनाएं अपने आस-पड़ोस में भी देख ही रही थी। जिसके कारण उसने मन ही मन सोच लिया था ।घरवालों को दहेज देकर तो कभी अपनी शादी नहीं करने देगी उसके अंदर स्वाभिमानी स्त्री के कीड़े जोर मारते रहे, उकसाते रहे।वह आर्थिक रुप से सबल है। जो काम भाईयों ने माँ-पापा के लिए नहीं किया । वह कर के दिखाएगी । उसे किसी कि जरुरत नहीं है । हाँ !अगर कभी किसी से प्यार हो गया। और वह बंदा उसे और उसके सपनो को समझेगा,उसके आर्दशों की इज्जत करेगा तब शादी करेगी अन्यथा अकेली ही रहेगी। मगर यहाँ वह नादानी कर बैठी । उसने अपनी सोच को ही महत्व दिया। उसने उस बंदे के बारे में नहीं सोचा कि वो क्या चाहता होगा। उसकी जिंदगी के प्रति क्या नजरिया होगा।उसके क्या सपने होंगे। उसने अपने लाइफ पार्टनर से क्या अपेक्षाएं पाल रखी होंगी। इसी एक तरफा सोच रखने की वजह से किशोर को खो दिया । आगे भी कई प्रपोजल आये । मगर अपनी जिद में किसी की कोई परवाह नहीं किया। कठोरता से सबको अपनी बात कह दूरी बना लेती।
प्रेम तो दिल का सौदा है।प्रेम में “मैं” का कोई स्थान नहीं होता ।पहले खुद को खोना पड़ता है। प्रेम की सुगंध को पकड़ना आसान नहीं।साथी की भावनाओं और इच्छाओं को समझना होता है। कहते है रिश्ते बनाने के लिए खुद को ढलना होता है। नादान लड़की ने भावनाओं के खेल को गंभीरता के कुहासा में बदल दिया । जहाँ कुछ भी नहीं दिखता । ना वर्तमान, ना ही भविष्य।
कई सालों तक घरवालों से उसकी शादी नहीं करने की जिद पर बहसबाजी चलती रही। अब तो घर वाले भी उसकी जिद के आगे हार मान गये। उससे अब शादी की बात नहीं छेड़ते।सबकी टोका-टोकी बंद हो जाने के बाद उस पगली को लगा कि अब वो आजाद है। वो जीत गई।
अब प्रिया खूब घूमना चाहती है। दुनिया को अपने नजरिये से देखना चाहती है। अपने मन की जिंदगी जीना चाहती है। बहुत दिनों से मुंबई घूमने का प्लान था पर हर बार माँ-पापा के पास चली जाती थी । इस बार वो अपनी कज़न सिस्टर शुभा दी के यहाँ मुंबई घूमने आई हुई है।
मुंबई पहुँचते ही शुभा दी ने कहा – “तुम्हें अकेले ही घूमना होगा । मैं रिश्तेदारों को मुंबई घुमा-घुमा के बोर हो चुकी हूँ। “
यह सुनते ही पहली बार प्रिया के दिल में एक हूक सी उठी । काश ! मेरे दोस्त होते तो अकेले तो घूमना नहीं पड़ता । कुछ पल को सोचने लगी उसने तो खुद ही अकेले चलने का रास्ता चुना है, फिर यह बैचैनी कैसी है। पहली बार उसे अकेलापन खला ।कोई दोस्त साथ होता तो इस सफ़र का आनंद कितना अलग , कितना मजेदार होता ना।उसका घूमने का उत्साह आधा हो गया।
जीजू मुंबई से बाहर थे ।फोन पर शुभा दी को जीजू से कहते सुना-“ अरे पूरी दिल्ली अकेले छान मारती है। इतने सालों से अकेले रह रही है।बहुत बोल्ड है । आराम से अकेले मुंबई घूम लेगी।“
कल तक अपने बारे में ये बातें उसे गर्व से भर देती ।स्वाभिमान से उसकी गर्दन तन जाती। आज ये बातें उसे उदास कर गई। ये स्वाभिमान वाली बातें ,उसे किताना अंहकारी कितना अकेला कर गई है सिर्फ वही जानती है। सच तो यह है कि सामाजिक बुराईयों का विरोध करते हुए कब वह अपनो और अपने आप के ही विरुद्ध खड़ी हो गई, उसे खुद ही नहीं पता चला। विरोध की भाषा ने उसे छोटी-छोटी खुशियों के प्रति भी उदासीन बना दिया है। वह सिर्फ अपने मन की करती हुई कितनी स्वार्थी होती चली गई कि मम्मी-पापा की भावनाओं को कोई तव्वजो ही नहीं दिया। वे उसके भविष्य के प्रति कितना चिंतित रहते हैं। कितना व्यथित रहते हैं। यह अलग बात है कि उसे अब ये बातें उसे कहते नहीं । अब वह समझने लगी है।मगर समझौता करना वह भूल चुकी है। अपने फैसले को उचित ठहराने की जिद ने उसे हर रिश्ते से दूर कर दिया। रिश्ते-नातें औपचारिकता भर रह गये हैं। अब ये दूरियाँ उसे कचोटती हैं। मगर अब किसी को उसके लिए फुर्सत नहीं है। सबकी शादी हो गई है। सब अपने जीवन में आये नई जिम्मेदारियों में व्यस्त हैं। सबकी जिंदगी की पटरी बदल चुकी है। ।
वह रात-भर पुरानी बातों को याद करते हुए जागती रही थी।रात तीन बजे के आस-पास उसे नींद आई। इसलिए शुभा दी कि आवाज देने पर भी वह आँखे नहीं खोल पा रही थी ।प्रिया जागते ही जल्द से स्नान कर शुभा दी के बताये सभी निर्देश को याद करते अपना बैग और कैमरा उठा , आईपैड पर गुलाम अली को सुनते हुए चल पड़ी, मुंबई दर्शन करने के लिए।
चमकते चांद को टूटा हुआ सितारा बना डाला
मेरी आवारगी ने मुझको ,आवारा बना डाला।
