हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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मुकद्दर हो तो ऐसा

मुकद्दर हो तो ऐसा

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सखि, 

मुकद्दर भी बड़ी गजब की चीज है । सबका मुकद्दर एक सा नहीं होता बल्कि हर आदमी का अलग अलग मुकद्दर होता है । आदमी तो आदमी , कुत्तों का भी अलग अलग मुकद्दर होता है । कुछ कुत्ते तो सड़कों पर ही पैदा होते हैं और सड़कों पर ही मर जाते हैं । किसी गाड़ी के नीचे दबकर स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़ते हैं । कुछ कुत्ते "कुतियापा" करते करते भगवान को प्यारे हो जाते हैं तो कुछ कुत्ते आपस में ही लड़ भिड़कर "वीरगति" को प्राप्त हो जाते हैं । कुछ कुत्ते मालिक की चापलूसी में दुम हिला हिला कर ही मर जाते हैं और कुछ कुत्ते भौंक भौंक कर ही अपनी जान दे देते हैं । 


मगर कुछ कुत्ते ऐसे भी होते हैं जो अपना मुकद्दर अपने मन माफिक लिखवा कर साथ लाते हैं । ये वो कुत्ते होते हैं जिन्हें हसीनाओं से बड़ा लगाव होता है । इस तरह के कुत्ते अपने मुकद्दर में ऐसी ऐसी हसीनाओं का "मालिकाना हक" लिखवाकर लाते हैं जो "ब्यूटी क्वीन" , "मिस यूनिवर्स" या "मिस वर्ल्ड" हो । ये कुत्ते इन सुंदरियों की गोदी में ही चलते हैं । ये सुंदरियां इतनी नफीस होती हैं कि अपने बच्चे को भी गोदी में लेना पसंद नहीं करती हैं । मगर कुत्ते को अपनी गोदी से एक पल को भी अलग करने की सोच भी नहीं सकती हैं । सखि, मैं तो इन सुंदरियों के "कुक्कुर प्रेम" को देखकर भाव विभोर हो जाता हूं । जो सम्मान इनके पति और बच्चों को नहीं मिलता है , वो इन कुत्तों को नसीब होता है । सच में , कितने भाग्यशाली हैं ये कुत्ते" । 


सखि, यह तो सोचो कि ऐसे कुत्ते जो पर्यावरण प्रेमी हैं , जिन्हें खुली खुली हवा में सांस लेना , टहलना और खुले में ही "नित्य कर्म" करना पसंद है और वह भी दिल्ली जैसे महानगर में ? मजाक जैसा नहीं लगता है यह ? अरे, दिल्ली में लोगों को खुली हवा मिलती नहीं है सांस लेने के लिये , और तुम कुत्तों की बात करती हो ? मगर ये मजाक नहीं है । कुछ कुत्ते इतने महान होते हैं जो अपना ऐसा मुकद्दर "ऊपर" से लिखवाकर लाते हैं । 


सखि, इस देश में "ऊपर" का बहुत बड़ा योगदान है । मुकद्दर "ऊपरवाला" लिखता है । सरकारी काम तभी होते हैं जब "ऊपरवाले" का फोन आ जाये या कुछ "ऊपरी" जुगाड़ हो जाये । मनुष्य जितना "ऊपर" उठता है वह उतना ही अहंकारी हो जाता है । लोग "ऊपर" जाने के लिए क्या क्या नहीं करते हैं ? चुगलखोरी, मक्कारी, धूर्तता , दोगलापन, बेईमानी वगैरह वगैरह । "ऊपर" उठने के लिये सब प्रकार के षड्यंत्र जायज हैं । इसके लिए तो तलवे चाटना भी मंजूर है लोगों को । वैसे भी तलवे चाटने में बुराई भी क्या है ? मन माफिक काम हो जाता है और जुबान की कसरत भी तो हो जाती है । आम के आम और गुठलियों के दाम । 


सखि, एक बात बताओ कि ये कुछ वी वी आई पी टाइप के कुत्ते अपना मुकद्दर कैसे लिखवा कर लाते हैं "ऊपर" से ? क्या वहां पर भी "माथा देखकर तिलक लगाने" का रिवाज है या "नजराना, जबराना, मेहनताना" का प्रताप है ? पर जो भी हो , ये वी वी आई पी कुत्ते "कुत्ते" होकर भी इंसानों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं । 


आज मैं एक ऐसे ही कुत्ते के मुकद्दर के बारे में बताना चाहता हूं सखि । दिल्ली में एक आई ए एस दंपति रहते हैं । बड़े पदों पर विराजमान हैं । उनकी आंखों के इशारों से ही राजपाट चलता है । ऐसे दंपति के घर में अगर कोई कुत्ता आ जाये तो उस कुत्ते के मुकद्दर से अच्छे अच्छे व्यक्ति को रश्क होने लगेगा । वाह , क्या मुकद्दर पाया है उस कुत्ते ने ? पता नहीं कितना "माल" खिलाकर ऐसा मुकद्दर लिखवाया है उस कुत्ते ने या फिर उसने भगवान की "चमचागिरी" करके इन आई ए एस दंपति के घर "अवतरित" होने का वरदान पाया है । पर जो भी हो , मुकद्दर बड़ा जबरदस्त लेकर आया है वह । 


दरअसल, यह कुत्ता बड़े गजब का पर्यावरण प्रेमी है । दिल्ली जैसे सबसे अधिक प्रदूषित महानगर में जहां "खुले में सांस लेना" सबसे बड़ा "डेयरिंग" जॉब है । शुद्ध और ताजी हवा ईमानदारी और सच्चाई की तरह कहीं छिपी बैठी है किसी स्टेडियम में । चूंकि इन कुत्ते महाशय को खुली हवा में सांस लेने और खुली हवा में ही "मल-मूत्र विसर्जन" करने का "शौक" था । शायद मैं गलत कह गया । शौक नहीं था, मजबूरी थी । क्योंकि केंद्र सरकार ने इंसानों के लिए तो जगह जगह शौचालय बना दिए मगर "जानवरों" के लिए तो कुछ व्यवस्था की ही नहीं । फिर ये जानवर खुले में नहीं जायें तो कहां जायें । वैसे भी कुत्तों को खंभों से बहुत प्रेम होता है । खंभों से इनका इतना लगाव होता है कि ये कुत्ते लोग जब भी कोई खंभा देख लेते हैं , अमृत वर्षा करने लग जाते हैं और उस खंभे को "पवित्र" करके ही आते हैं । सरकार को चाहिए के वे कुत्ते प्रजाति के लिए विशेष प्रकार के शौचालय बनवाये जिनमें "खंभों" की विशेष व्यवस्था की जाये । 


सखि, तो उन आई ए एस दंपति को इस कुत्ते के पर्यावरण प्रेम का पता था इसलिए उन्होंने "त्यागराज स्टेडियम" में रोज शाम को सात साढे सात बजे कुत्ते को टहलाना शुरू कर दिया । अब तुम कहोगी कि स्टेडियम में आने वाले खिलाड़ियों और जनता का क्या होगा ? तो सखि, बात ऐसी है कि इस देश में लोगों को आदत है इंतजार करने की । बड़े लोगों के लिए छोटे लोगों की सुविधाऐं छीनने का "टशन" बहुत पुराना है यहां पर । वी आई पी की गाड़ी के लिए बाकी लोगों को बीच सड़क पर रोक दिया जाता है । अगर एक आई ए एस दंपति के "कुत्ते" को "घुमाने" के लिए उस स्टेडियम का उपयोग करके आम जनता और खिलाड़ियों को भगा दिया जाता है तो इसमें गलत क्या है ? आखिर आम आदमी की सरकार जो है वहां पर । 


पर लोगों को कुत्ते के "ठाठ" पसंद नहीं आए । और लोग उच्च न्यायालय में चले गए । वहां से फरमान जारी हो गया कि स्टेडियम रात के 10 बजे तक आम आदमी के लिए खुलेगा । अब तुम ही बताओ सखि, कि बेचारे "कुत्ते" कहां जाएं ? क्या उनके कोई "कुत्ताधिकार" नहीं होते हैं ? किसी "कुत्ताधिकार कार्यकर्ता" को पकड़कर एक रिट सीधे माननीय उच्चतम न्यायालय में लगवानी पड़ेगी । तभी कुछ काम हो पाएगा , नहीं तो सालों लग जाते हैं फैसला आने में । एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है कि "दादा करे और पोता सुनें" । मतलब दावा दादा करे और फैसला पोता सुने । 


सखि, लोग चर्चा कर रहे हैं कि यह सरकार बहुत निर्दयी, तानाशाह और अत्याचारी है । "कुत्ता प्रेमी आई ए एस दंपति का स्थानांतरण दिल्ली से बाहर कर दिया गया है । एक को लद्दाख और दूसरे को अरुणाचल प्रदेश भेज दिया गया है । यह कोई अच्छी बात नहीं है । दोनों को एक जगह तो रखते कम से कम । अब तो यह सिद्ध हो गया कि सरकार निर्दयी और तानाशाह है । 


अच्छा तो अब चलते हैं सखि । बाय बाय 



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