Soma Singh

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मसीहा

मसीहा

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आज का दिन बिंदु के लिए खास है और हो भी क्यूँ नहीं, पिछले दस वर्षों में उसने दिन रात एक कर दिये थे अपनी रिसर्च को पूरा करने में ,अब जब उसने मसकुलर डिसट्रोपी की वैक्सीन खोज ली है तो भारत ही नहीं विश्व भर के मरीजों की मसीहा बन गई है वह। 

जैव प्रोद्योगिकी के क्षेत्र मे उसकी रिसर्च मील का पत्थर साबित हुई है। बिदुं की आँखो के आगे आज भी वो मंज़र तैरने लगा है जब वह और शंशाक पार्क में अयान के साथ क्रिकेट खेल रहे थे। शशांक ने गेंद फेंकी, गेंद बिंदु के बैट से टकरा कर दायीं ओर चली गई। "भागो अयान, गेंद पकडो़, शशांक चिल्लाये।" अरे ये क्या अयान तो भागा ही नहीं। मेरा चौका हो चुका था और शशांक की झल्लाहट बढ़ गई थी।

पार्क से घर आते हुए भी शशांक अयान से नाराज रहे और बेचारा अयान सहम सा गया था। मेरे

पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी थी जब बैंगलोर व दिल्ली के बड़े हस्पतालों मे अयान के इलाज होने के बा्वज़ूद अयान की स्थिति मे सुधार न हुआ। अपितु अब तो वह अपने पैरों पर खड़ा भी न हो पाता।

तेरह बरस का अयान डयूचेन मस्कुलर डिसट्रोपी जैसी लाइलाज बीमारी की चपेट में आ चुका था। अपने इकलौते बच्चे को अपनी नज़रों के सामने लाचार होते देखकर शशांक गुमसुम रहने लगे। माँ हूँ, मेरा दिल जानकर भी न मानता कि मेरे लाल के जीवन की डोर धीरे-धीरे हाथ से छूट रही थी। 

तभी शशांक के एक सम्बन्धी से पता कि शरीर मे मस्कुलर डिस्ट्रोपी के विकास की प्रक्रिया को होम्योपैथिक इलाज द्वारा धीमा किया जा सकता है। फिर क्या था, दौड़ पड़े हम अयान को लेकर, नोएडा के होम्योपैथिक केन्द्र। 

आज अयान छब्बीस वर्ष का हो रहा है। उसने संगीत की दुनिया मे अपना नाम बना लिया है। और साथ ही मेरी डिस्ट्रोफिन प्रोटीन अणुओं को संश्लेषित करने की प्रक्रिया भी पेटेंट हो गयी।

बिंदु ख्यालों से निकल पाती इससे पहले ही मंच से उसका नाम पुकारा गया कि इस वर्ष का आण्विक जीवविज्ञान का नोबेल पुरस्कार जाता है भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर बिंदु तोमर को। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मंच पर चढते हुए उसकी आँखों से आँसू बह रहे हैं और बिंदु निश्चिंत है कि अब किसी दूसरे अयान की दुनिया व्हील चेयर तक नहीं सिमट जाएगी।


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