मरा मरा से राम राम ….. मोह मोह से ॐ ॐ
मरा मरा से राम राम ….. मोह मोह से ॐ ॐ
मोह मोह से ॐ ॐ….एक सेठ जी बड़े ही दयालु पूजा पाठ वाले इंसान थे. दूसरों की सेवा करना उनका जैसे अपना काम था सेठ जी का व्यापार भी बहुत बढ़िया था एक दिन जैसे ही सुबह सेठ जी पूजा के लिए तैयार हो रहे थे और पूजा के आसन पर बैठ कर पूजा कर रहे थे पीछे से किसी ने हाथ लगाया जैसे ही सेठ जी ने पीछे मूड कर देखा भगवान उनके पीछे खड़े थे .. सेठ जी की आँखो में आँसू भर आए और सेठ जी भगवान के चरणो से लिपट गए भगवान ने सेठ जी को अपने सीने से लगाया और कहा मैं तेरी भक्ति व दूसरी की सेवा से बहुत ख़ुश हूँ आज मैं तेरे को वरदान देना चाहता हूँ सेठ जी ने भगवान से सिर्फ़ ये कहा हे ईश्वर मैं तो सिर्फ़ ये चाहता हूँ मेरे सभी बेटे पूजा पाठ करते रहे और दूसरों की सेवा भी करते रहे दूसरों के दुःखों को अपना दुःख समझे …ठीक हैं …पर सेठ तुम अभी भी मोह में हो … आज से तुम को एक मंत्र दे रहा हूँ सिर्फ़ अब तुम्हें “मोह मोह “ का उच्चारण करना ऐसा कह कर भगवान चले गए … सेठ जी भगवान की बात मान गए और मोह मोह का उच्चारण कर ने लगे … समय गुजरता रहा … सेठ जी जैसे ही “मोह मोह”का उच्चारण करते”ॐॐ” का उच्चारण होने लगा …लगता सेठ जी बहुत खुश भगवान बड़े ही दयालूँ
हैं एक ऐसा मंत्र दे दिया जो कभी किसी ने सोचा भी न था … भगवान सेठ की भक्ति देख एक बार फिर सेठ को भगवान ने दर्शन दिए और सेठ जी भगवान से कहने लगे ही भगवान आपने ने “मोह मोह” के उच्चारण से भी “ॐ ॐ” का उच्चारण करवा दिया आप बड़े ही कृपा करने वाले हो मेरा तो जीवन धन्य हो गया और अब कुछ नहीं बचा मैं अब आपके साथ ही चलूँगा… ठीक हैं लेकिन अभी तुमको बहुत काम करने हैं अभी बहुत सेवा करनी हैं दुखियों की … जाते जाते भगवान सेठ को एक इस वरदान दे गए जिसपर भी हाथ रख थे वो धन्य हो जाए और हाँ जाते जाते एक काम और बोल गए तेरे को एक ऐसी भगवद्गीता का पता लगाना हैं जो दर्पण छवि में लिखी हो …सेठ जी सोच में पड़ गए इसमें भी भगवान को कोई न कोई राज छिपा हैं कुछ न कुछ बताना चाहते हैं सेठ जी को गहन अध्ययन करने पर पता चला उन्होंने दर्पण छवि में भगवद्गीता इस लिए लिखी अगर सीधी न पढ़ पाए उल्टी पढ़ लो क्यूँकि उनका सीधा संदेश था पूरी दुनिया के लिए “मरा मरा” बोलने से “राम राम”निकला और रामायण लिख थी … सीधी नहीं उल्टी ही पढ़ लो एक बार … पढ़ तो लो … “मोह मोह”से “ॐ ओम्”और “मरा मरा”से “राम राम”….सेठ जी इतना कह कर पता नहीं कब शून्य में विलीन हो गए.