मोबाइल
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मैं मोबाइल हूं। मुझे बहुत से नामो से जाना जाता है जैसे - दूरसंचार यंत्र , दूरभाष यंत्र, स्मार्टफोन, सेलफोन आदि। मैं बहुत से कामो में सहायक हूँ जैसे - किसी से बात करना, कहीं जाना , समय बताना आदि। हम दो भाई है एक का नाम टेलीफोन है और मै यानी मोबाइल। हम दोनों के जनक अलग अलग है। मेरे बड़े भाई के जनक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल है और मेरे जनक मार्टिन कूपर। बड़े भाई का जन्म सन् 1847 में हुआ था और मेरा उनके जन्म के लगभग 123 साल बाद हुए। मेरा जन्म 1970 में हुआ था। उस समय मै बहुत बहुत बड़ा और भारी हुआ करता था और कुछ खास काम ना कर पता था। बस बड़े भाई की तरह बात करवा लेता था। लेकिन मुझमें और बड़े भाई में बस इतना फर्क था कि भारी होने के साथ साथ मय कहीं भी आ जा सकता था। फिर मै और विकसित हुआ सन् 2001 आते आते मैं इतना विकसित हो चूका था कि मुझमें मल्टीमीडिया, ब्राउज़र छोटा सा एक कैमरा आदि हो चुका था। लेकिन मेरा चेहरा (स्क्रीन) बहुत छोटा था। फिर मेरा चेहरा और बड़ा होने लगा
और मैं स्मार्टफोन कहलाने लगा। और मेरा चेहरा अब बड़ा हो गया था और मै अब टच स्क्रीन का हो गया। शुरुआत में अभी भी ज्यादा विकसित ना हुआ था बस मेरा स्क्रीन ही बड़ा हो गया था। बस बाकी काम मय छोटे फोन जैसा ही करता था। फिर समय गुजरता गया और मै विकसित होता गया और फिर 2016 -2017 आया। यहां तक आते आते मैं काफी सस्ता और विकसित हो चुका था। मुझमें बड़ा सा स्क्रीन अच्छा, सा कैमरा, तेज इंटरनेट और जीपीएस आदि आ गया था और भी बहुत कुछ मेरे अंदर विकसित हो चूका था जैसे रैम ,रोम आदि आ गया था। और अब आज का समय है कि अब मुझमें 3 4 कैमरा बहुत बड़ी स्क्रीन और भी बहुत कुछ विकसित हो गया। अब मै आम हो गया हूं बड़े तो बड़े बच्चे भी मेरा उपयोग करने लगे। अब मै बहुत से काम में सहायक हो गया हूं। हर जगह मै उपयोग होने लगा। अब व्यक्ति अपने ज़िन्दगी के लगभग समय मेरे इर्द गिर्द ही व्यतीत करता है। लेकिन मुझे अभी भी लगता है कि मै अभी बहुत विकसित होना बाकी हूँ शायद समय के साथ साथ और भी विकसित हो जाऊँ।